बुधवार, 23 जुलाई 2025

पाठ्यचर्या का मूल्यांकन (Evaluation of Curriculum)

 

पाठ्यचर्या का मूल्यांकन (Evaluation of Curriculum)

1. पाठ्यचर्या मूल्यांकन (Evaluation of Curriculum)

पाठ्यचर्या मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से यह जांचा जाता है कि निर्धारित पाठ्यक्रम:

  • शिक्षण उद्देश्यों को किस हद तक पूरा कर रहा है,
  • विद्यार्थियों के अधिगम में क्या सुधार हो रहा है,
  • और उसमें क्या परिवर्तन या सुधार की आवश्यकता है।

यह मूल्यांकन केवल परीक्षाओं तक सीमित नहीं होता, बल्कि शिक्षण प्रक्रिया की प्रभावशीलता को भी परखता है।

2. पाठ्यचर्या मूल्यांकन के प्रकार:

(क) प्रारूपिक मूल्यांकन (Formative Evaluation):

परिभाषा:

यह मूल्यांकन शिक्षण प्रक्रिया के दौरान किया जाता है। इसका उद्देश्य है –

  • शिक्षण में सुधार,
  • विद्यार्थियों की अधिगम आवश्यकताओं की पहचान,
  • और शिक्षण पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन।

 विशेषताएँ:

  • सतत और नियमित प्रक्रिया
  • शिक्षक को फीडबैक देता है कि क्या सिखाया जा रहा है और कैसे
  • छात्र की प्रगति को सुधारने पर ज़ोर

 उदाहरण:

  • कक्षा में पूछे गए मौखिक प्रश्न
  • गृहकार्य और अभ्यास कार्यों की जांच
  • समूह गतिविधियाँ और प्रस्तुतियाँ

(ख) संपूर्णात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation):

परिभाषा:

यह मूल्यांकन पाठ्यक्रम के अंत में किया जाता है ताकि यह आंका जा सके कि विद्यार्थी ने कितनी जानकारी और कौशल अर्जित किए हैं।

विशेषताएँ:

  • सीखने के अंतिम परिणामों का मूल्यांकन
  • प्रमाणपत्र, ग्रेड या पदोन्नति देने के लिए प्रयुक्त
  • आमतौर पर परीक्षा-आधारित

उदाहरण:

  • त्रैमासिक, छमाही या वार्षिक परीक्षा
  • प्रोजेक्ट रिपोर्ट का अंतिम मूल्यांकन
  • बोर्ड परीक्षा

3. NCF 2005 में पाठ्यचर्या मूल्यांकन की प्रासंगिकता:

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 (NCF 2005) ने मूल्यांकन को एक समेकित, सतत और बालकेंद्रित प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया।

NCF 2005 के अनुसार मूल्यांकन की विशेषताएँ:

  1. CCE (सतत और व्यापक मूल्यांकन) पर ज़ोर।
  2. मूल्यांकन का उद्देश्य केवल अंक देना नहीं, सीखने में सुधार लाना है।
  3. मूल्यांकन को सहायक, संवादात्मक और गैर-डराने वाला बनाया जाए।
  4. फॉर्मेटिव मूल्यांकन को प्राथमिकताताकि अधिगम यात्रा को बेहतर बनाया जा सके।
  5. संपूर्णात्मक मूल्यांकन को भी संतुलित किया जाए – ताकि अंतिम निष्कर्ष प्राप्त हो सकें।

इस तरह, NCF 2005 ने मूल्यांकन को केवल परीक्षा नहीं बल्कि अधिगम के समर्थन के रूप में देखा।

4. स्थानीय विशिष्ट मुद्दों के संदर्भ में पाठ्यचर्या विकास की स्वायत्तता (Autonomy):

स्वायत्तता की आवश्यकता क्यों?

  • भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक, भाषाई, पर्यावरणीय और सामाजिक विविधताएँ हैं।
  • हर क्षेत्र की अपनी-अपनी समस्याएँ और संसाधन होते हैं।

मूल्यांकन में स्थानीय प्रासंगिकता कैसे लाई जाए?

  1. स्थानीय मुद्दों पर आधारित परियोजनाओं को मूल्यांकन का हिस्सा बनाना।
  2. स्थानीय भाषा और अनुभव को शिक्षण और मूल्यांकन में शामिल करना।
  3. गैर-पारंपरिक मूल्यांकन विधियों का उपयोग – जैसे:
    • प्रस्तुति
    • नाटक/रोल प्ले
    • स्थानीय समस्याओं पर रिपोर्ट लेखन

उदाहरण:

  • ग्रामीण क्षेत्र: पानी की समस्या पर एक सामाजिक विज्ञान प्रोजेक्ट।
  • शहरी क्षेत्र: कचरा प्रबंधन पर रिपोर्ट बनाकर प्रस्तुति।
  • आदिवासी क्षेत्र: स्थानीय लोककथाओं का भाषा शिक्षण में प्रयोग और मूल्यांकन।

 5. मूल्यांकन से संबंधित चुनौतियाँ:

चुनौती

समाधान

केवल परीक्षा-आधारित सोच

CCE (सतत और व्यापक मूल्यांकन) को लागू करना

शिक्षकों में मूल्यांकन कौशल की कमी

मूल्यांकन उन्मुख प्रशिक्षण कार्यक्रम

पाठ्यक्रम और मूल्यांकन का असंबंध

पाठ्यचर्या और मूल्यांकन के समन्वय पर बल

स्थानीय संदर्भों की उपेक्षा

स्थानिक पाठ्यचर्या व वैकल्पिक मूल्यांकन विधियाँ

 

6. निष्कर्ष (Conclusion):

  • पाठ्यचर्या का मूल्यांकन, केवल परीक्षा लेने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि विद्यार्थी की संपूर्ण अधिगम यात्रा का हिस्सा होना चाहिए।
  • प्रारूपिक (Formative) मूल्यांकन सीखने के मार्ग को सुधारता है, और संपूर्णात्मक (Summative) मूल्यांकन अधिगम का अंतिम आंकलन करता है।
  • NCF 2005 मूल्यांकन को सहयोगी, सतत और व्यापक बनाने पर ज़ोर देता है।
  • यदि स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या व मूल्यांकन की स्वायत्तता दी जाए, तो शिक्षा वास्तव में सार्थक, उत्तरदायी और समावेशी बन सकती है।
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