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माध्यमिक शिक्षा में ड्रॉपआउट (Dropout)
1. माध्यमिक शिक्षा में ड्रॉपआउट की समस्याएँ / चुनौतियाँ (Problems / Challenges of Dropout in Secondary Education):
- आर्थिक कारण (Economic Factors):
गरीब परिवारों में बच्चे स्कूल छोड़कर मजदूरी, खेतों में काम या घर की आर्थिक सहायता हेतु कार्य करने लगते हैं।
- परिवार की जिम्मेदारियाँ (Family Responsibilities):
विशेषकर लड़कियों को घरेलू कार्य या छोटे भाई-बहनों की देखभाल के कारण विद्यालय छोड़ना पड़ता है।
- शादी और सामाजिक दबाव (Early Marriage and Social Norms):
किशोरावस्था में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है, जिससे वे माध्यमिक शिक्षा पूरी नहीं कर पातीं।
- शिक्षा में रुचि की कमी (Lack of Interest in Education):
पाठ्यक्रम की नीरसता, व्यावहारिक ज्ञान की कमी और प्रेरणा की अनुपस्थिति से छात्रों में पढ़ाई के प्रति उत्साह कम हो जाता है।
- विद्यालयों की दूरी (Distance from School):
ग्रामीण या दूरदराज़ क्षेत्रों में माध्यमिक विद्यालयों की दूरी अधिक होने के कारण विशेषकर बालिकाओं को विद्यालय जाना कठिन होता है।
- शिक्षकों की अनुपस्थिति और गुणवत्ताहीन शिक्षा (Poor Quality Education):
प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी, नियमित न पढ़ाया जाना और छात्र-अनुकूल वातावरण का अभाव छात्रों को शिक्षा छोड़ने की ओर ले जाता है।
- भाषाई एवं सांस्कृतिक अवरोध (Language and Cultural Barriers):
जनजातीय, अल्पसंख्यक और प्रवासी समुदायों के बच्चे अक्सर भाषा या सांस्कृतिक भिन्नता के कारण शिक्षा से कट जाते हैं।
- शारीरिक या मानसिक अक्षमता (Disabilities):
दिव्यांग बच्चों के लिए विद्यालयों में उपयुक्त व्यवस्था या सहयोग न होने से वे शिक्षा छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।
2. ड्रॉपआउट रोकने हेतु रणनीतियाँ (Strategies to Prevent Dropout in Secondary Education):
- मुफ्त एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा:
विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण अध्यापन, मूल्य आधारित शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा का समावेश किया जाए।
- आर्थिक सहायता योजनाएँ:
छात्रवृत्ति, मिड-डे मील, निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें, यूनिफॉर्म, साइकिल आदि की व्यवस्था कर आर्थिक बोझ को कम किया जाए।
- लचीली शिक्षा प्रणाली (Flexible Education):
ओपन स्कूलिंग, ऑनलाइन शिक्षा, शाम के विद्यालय जैसे वैकल्पिक मॉडल से स्कूल छोड़ चुके छात्रों को दोबारा जोड़ने की व्यवस्था हो।
- माता-पिता एवं समुदाय की भागीदारी:
जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से अभिभावकों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया जाए।
- परामर्श एवं मार्गदर्शन (Counseling and Guidance):
छात्रों के मनोवैज्ञानिक, शैक्षणिक और कैरियर संबंधी समस्याओं को हल करने हेतु नियमित काउंसलिंग दी जाए।
- प्रेरक वातावरण का निर्माण:
खेल, सांस्कृतिक गतिविधियों, भ्रमण आदि के माध्यम से विद्यालय को रोचक बनाया जाए।
- विशेष ध्यान योग्य छात्रों की पहचान:
कमजोर छात्रों के लिए रेमेडियल कक्षाएँ, व्यक्तिगत ध्यान और ब्रिज कोर्स का आयोजन हो।
3. सरकारी हस्तक्षेप / योजनाएँ (Government Interventions to Reduce Dropout):
समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan):इस योजना में ड्रॉपआउट दर को घटाने हेतु विशेष कार्यक्रम चलाए जाते हैं जैसे - विशेष प्रशिक्षण, सामुदायिक सहभागिता, बालिकाओं हेतु सुविधाएँ आदि। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA):माध्यमिक शिक्षा की पहुंच, गुणवत्ता और प्रतिधारण सुनिश्चित करने हेतु चलाया गया कार्यक्रम। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV):वंचित वर्ग की बालिकाओं के लिए आवासीय विद्यालयों की स्थापना ताकि वे शिक्षा से जुड़ी रहें। शाला सिद्धि, प्रेरणा, विद्यांजलि आदि पहलें:विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने व छात्र-अनुकूल माहौल तैयार करने की दिशा में प्रयास। राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS):ड्रॉपआउट बच्चों को पुनः शिक्षा में जोड़ने का एक सशक्त माध्यम जो लचीले पाठ्यक्रम और समय-सारणी के साथ कार्य करता है।4. सुझाव (Recommendations):
- शिक्षा को रोजगार से जोड़ना जिससे छात्र उसमें मूल्य देख सकें।
- लड़कियों के लिए सुरक्षित एवं सुविधाजनक परिवहन की व्यवस्था।
- ड्रॉपआउट छात्रों का डेटा एकत्र कर उनके लिए व्यक्तिगत पुनः नामांकन योजनाएँ बनाना।
- शिक्षकों की जिम्मेदारी तय करना – एक भी बच्चा ड्रॉपआउट न हो।
निष्कर्ष (Conclusion):माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट की समस्या बहुआयामी है – जिसमें सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, और शैक्षणिक कारण निहित हैं। एक समग्र दृष्टिकोण, जिसमें सरकार, समुदाय, विद्यालय और अभिभावकों की भागीदारी हो, ही इस चुनौती का समाधान दे सकता है।
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