ब्लॉग पर टिप्पणी और फ़ॉलो जरूर करे ताकि हर नयी पोस्ट आपकों मेल पर मिलें।माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षण (पूर्व-सेवा एवं सेवाकालीन) की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्रणालीगत कारकSystemic Factors Influencing the Quality of Pre and In-Service Education of Secondary School Teachersशिक्षक प्रशिक्षण की गुणवत्ता किसी एक घटक पर नहीं, बल्कि एक समूची प्रणाली पर निर्भर करती है। यह प्रणाली शिक्षा नीति, नियामक संस्थाएं, पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण संस्थान, शिक्षकों की भर्ती प्रणाली, संसाधन, निगरानी व्यवस्था, और समुदाय के साथ जुड़ाव जैसे अनेक कारकों से मिलकर बनती है। नीचे इन प्रणालीगत कारकों का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. नीति और नियामक ढाँचा (Policy and Regulatory Framework)
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) जैसे दस्तावेज़ों का प्रभाव शिक्षक प्रशिक्षण की दिशा और प्राथमिकताओं पर पड़ता है।
- शिक्षकों की पात्रता (Eligibility) एवं प्रशिक्षण संस्थानों की मान्यता के लिए NCTE जैसी संस्थाएं दिशानिर्देश जारी करती हैं।
2. शिक्षक शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता (Quality of Teacher Education Institutions)
- कई संस्थानों में योग्य संकाय की कमी है।
- संसाधनों, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होती।
- प्राइवेट संस्थानों में व्यावसायीकरण के कारण गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
3. प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता (Relevance of Curriculum)
- B.Ed./M.Ed. जैसे पाठ्यक्रम अक्सर व्यावहारिक शिक्षण से कटे हुए होते हैं।
- बदलते समय के अनुसार पाठ्यक्रम का अद्यतन नहीं होता।
- स्थानीय आवश्यकताओं और नवाचारों को नजरअंदाज किया जाता है।
4. फील्ड वर्क और स्कूल अनुभव (School-Based Practical Exposure)
- स्कूलों में प्रशिक्षुओं को पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण-अभ्यास (internship) नहीं मिल पाता।
- प्रायोगिक शिक्षण गतिविधियाँ केवल औपचारिकता बन जाती हैं।
5. शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया (Recruitment System)
- भर्ती की पारदर्शिता और योग्यता आधारित मूल्यांकन की कमी।
- कई बार योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति में देरी या अनियमितताएँ होती हैं।
6. सेवाकालीन प्रशिक्षण का अभाव (Lack of Effective In-Service Training)
- सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम अक्सर औपचारिक और रटंत होते हैं।
- इनका कोई निरंतर मूल्यांकन या फीडबैक नहीं होता।
- ICT, नवीन शिक्षण विधियों, समावेशी शिक्षा आदि पर कम ध्यान दिया जाता है।
7. शिक्षकों की प्रेरणा और व्यावसायिक विकास (Teacher Motivation and Professional Growth)
- अत्यधिक कार्यभार, कम वेतन और पदोन्नति की अस्पष्ट नीति से शिक्षक हतोत्साहित होते हैं।
- नवाचारों और अनुसंधान के लिए प्रेरणा नहीं दी जाती।
8. समन्वय की कमी (Lack of Coordination among Stakeholders)
- DIET, SCERT, NCERT, NCTE और विश्वविद्यालयों के बीच समन्वय की कमी।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम एक-दूसरे से असंगत रहते हैं।
9. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का समावेशन
- अधिकांश प्रशिक्षण संस्थानों में ICT की पहुंच सीमित होती है।
- डिजिटल साक्षरता का अभाव प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर प्रभाव डालता है।
10. शिक्षा में सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों की उपेक्षा
- प्रशिक्षण में स्थानीय भाषा, संस्कृति, सामाजिक विविधता आदि को उचित महत्व नहीं दिया जाता।
- इससे शिक्षक समुदाय से जुड़ाव नहीं बना पाते।
11. शिक्षक मूल्यांकन और फीडबैक प्रणाली की कमजोरियाँ
- प्रशिक्षण के बाद शिक्षक के प्रदर्शन की निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली कमजोर होती है।
- फीडबैक तंत्र प्रभावी नहीं होता जिससे सुधार के अवसर चूक जाते हैं।
12. फंडिंग और बजट सीमाएं
- कई राज्यों में प्रशिक्षण संस्थानों को अपर्याप्त बजट मिलता है।
- इससे कार्यक्रमों की गुणवत्ता और संसाधनों पर असर पड़ता है।
13. भाषाई विविधता और द्विभाषिक प्रशिक्षण की कमी
- माध्यमिक स्तर पर भाषा शिक्षण की विशेष आवश्यकताएँ होती हैं, जिन्हें प्रशिक्षण में पर्याप्त ध्यान नहीं मिलता।
14. शोध एवं नवाचार को प्रोत्साहन का अभाव
- प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शोध की भूमिका सीमित होती है।
- शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में नवाचार को बढ़ावा नहीं मिलता।
15. नेतृत्व और प्रबंधन का अभाव
- संस्थान प्रमुखों एवं शिक्षकों में शैक्षिक नेतृत्व के गुणों का अभाव।
- इससे प्रशिक्षण कार्यक्रम की योजना और क्रियान्वयन प्रभावित होता है।
निष्कर्ष:
माध्यमिक स्तर के शिक्षकों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए एक समग्र प्रणालीगत सुधार की आवश्यकता है। केवल पाठ्यक्रम बदलने या कुछ कार्यशालाएं आयोजित करने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि नीति से लेकर व्यवहार तक हर स्तर पर एकीकृत और गुणवत्ता-आधारित दृष्टिकोण अपनाना होगा।
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