सोमवार, 9 जून 2025

प्रायोगिक एवं अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन(Experimental and quasi–Experimental Studies)

प्रायोगिक एवं अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन

(Experimental and quasi–Experimental Studies) 

 1: परिचय एवं परिभाषाएँ

1.1 परिचय:

- शिक्षा, मनोविज्ञान व सामाजिक विज्ञानों में जब हम किसी कारण और प्रभाव के संबंध को समझना चाहते हैं, तब प्रायोगिक और अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन उपयोगी होते हैं।

1.2 प्रायोगिक अध्ययन की परिभाषा:

- यह एक ऐसी विधि है जिसमें शोधकर्ता नियंत्रण (control), चयन (randomization) और हस्तक्षेप (treatment) का उपयोग करता है।

1.3 अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन की परिभाषा:

- इसमें कुछ नियंत्रण होते हैं लेकिन पूर्ण नियंत्रण और यादृच्छिक चयन नहीं होता। यह व्यवहारिक परिस्थितियों में प्रयोग करने की सुविधा देता है।

 2: प्रायोगिक अध्ययन की विशेषताएँ

2.1 नियंत्रण: शोधकर्ता सभी बाहरी कारकों को नियंत्रित करने की कोशिश करता है।

2.2 यादृच्छिककरण: प्रतिभागियों को यादृच्छिक रूप से समूहों में बाँटा जाता है – नियंत्रण समूह और परीक्षण समूह।

2.3 पूर्व-परीक्षण एवं पश्चात्-परीक्षण: पहले विषयों की स्थिति का परीक्षण किया जाता है, फिर हस्तक्षेप किया जाता है, फिर पुनः मूल्यांकन।

2.4 कारण-प्रभाव संबंध: इसका मुख्य उद्देश्य किसी कारण (intervention) का प्रभाव (result) जानना होता है।

2.5 प्रयोगशाला आधारित या क्षेत्र प्रयोग: प्रयोगशाला में सख्त नियंत्रण के साथ या वास्तविक कक्षा में प्रयोग किए जा सकते हैं।

3: अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन की विशेषताएँ

3.1 आंशिक नियंत्रण: शोधकर्ता को पूर्ण नियंत्रण नहीं मिलता, जैसे यादृच्छिक चयन की सुविधा नहीं।

3.2 वास्तविक जीवन की सेटिंग: यह अध्ययन विद्यालय, समुदाय या संस्थान जैसी व्यवहारिक स्थितियों में किया जाता है।

3.3 तुलनात्मक समूह: अध्ययन में दो या अधिक समूहों की तुलना होती है, लेकिन वे यादृच्छिक रूप से चुने नहीं जाते।

3.4 लचीलापन: यह विधि अधिक व्यावहारिक और सुलभ होती है, विशेषतः शिक्षा जैसे क्षेत्रों में।

3.5 नीति निर्माण हेतु उपयोगी: सरकारी योजनाओं, पाठ्यक्रमों या शिक्षण विधियों के मूल्यांकन में उपयुक्त।

 4: अंतर व तुलनात्मक विश्लेषण

प्रमुख अंतर:

पहलु

प्रायोगिक अध्ययन

अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन

1. नियंत्रण

पूर्ण नियंत्रण

आंशिक नियंत्रण

2. यादृच्छिकता

होती है

नहीं होती

3. विश्वसनीयता

अधिक

कम

4. व्यवहारिकता

कम

अधिक

5. उपयोग

प्रयोगशाला में अधिक

वास्तविक सेटिंग में अधिक

6. उदाहरण

नई औषधि का परीक्षण

स्कूल की नई नीति का मूल्यांकन

5: निष्कर्ष, उपयोगिता व सीमाएँ

5.1 उपयोगिता:

- प्रायोगिक अध्ययन: वैज्ञानिक परीक्षणों, नई शिक्षण तकनीकों के परीक्षण आदि में।

- अर्ध-प्रायोगिक अध्ययन: जब पूर्ण प्रयोग संभव न हो – जैसे स्कूलों में नीति मूल्यांकन।

5.2 सीमाएँ:

- प्रायोगिक विधियाँ महँगी व समयसाध्य होती हैं।

- अर्ध-प्रायोगिक में निष्कर्ष पूर्ण रूप से विश्वसनीय नहीं होते क्योंकि सभी कारक नियंत्रित नहीं होते।

5.3 निष्कर्ष:

- दोनों विधियाँ अनुसंधान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

- जहाँ पूर्ण नियंत्रण संभव हो वहाँ प्रायोगिक विधि श्रेष्ठ है, वहीं व्यवहारिक परिप्रेक्ष्य में अर्ध-प्रायोगिक विधि अधिक उपयुक्त होती है।

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Dr. D R BHATNAGAR 

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