बुधवार, 19 मई 2021

पाठ्यचर्या का अर्थ और आवश्यकता

पाठ्यचर्या का अर्थ और आवश्यकता
Meaning & need of curriculum


पाठ्यचर्या का शाब्दिक अर्थ:-
पाठ्यचर्या दो शब्दों से मिलकर बना है “पाठ्य” और “क्रम”। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि “पाठ का क्रम” अर्थात किसी कक्षा के लिए सभी विषयों, उपविषय (टॉपिक) तथा उससे संबंधित शिक्षण सामग्री का सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुतीकरण “पाठ्यचर्या” कहलाता है।

    पाठ्यचर्या शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘करीक्यूलम’ (Curriculum) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘करीक्यूलम’ शब्द लैटिन भाषा से अंग्रेजी में लिया गया है तथा यह लैटिन शब्द ‘कुर्रेर’ से बना है। ‘कुर्रेर’ का अर्थ है ‘दौड़ का मैदान’। दूसरे शब्दों में, ‘करीक्यूलम’ वह क्रम है जिसे किसी व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है। अतः पाठ्यचर्या वह साधन है, जिसके द्वारा शिक्षा व जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। यह अध्ययन का निश्चित एवं तर्कपूर्ण क्रम है, जिसके माध्यम से शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा वह नवीन ज्ञान एवं अनुभव को ग्रहण करता है।
 
बबिट महोदय के अनुसार - ‘‘उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और चैबीस घण्टे की जा रही समस्त क्रियायें पाठ्यचर्या के अन्तर्गत आ जाती है।’’
 
वाल्टर एस. मनरो के शब्दकोष के अनुसार - ‘‘पाठ्यचर्या को किसी विद्यार्थी द्वारा लिये जाने वाले विषयों के रूप में परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए। पाठ्यचर्या की कार्यात्मक संकल्पना के अनुसार इसके अन्तर्गत वह सब अनुभव आ जाते है जो विद्यालय में शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त किये जाते है।’’
इस संकल्पना के अनुसार पाठ्यचर्या विकास के अन्तर्गत प्रयुक्त किये जाने वाले अनुभवों के आयोजन में पाठ्यचर्या को व्यवस्थित करने, उसे क्रियान्वित करने तथा उसका मूल्यांकन करने सम्बन्धी पक्ष सम्मिलित होते है।
 
ब्लांडस के शिक्षा कोष के अनुसार - ‘‘पाठ्यचर्या को क्रिया एवं अनुभव के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए न कि अर्जित किये जाने वाले ज्ञान और संकलित किये जाने वाले तथ्यों के रूप में। विद्यालय जीवन के अन्तर्गत विविध प्रकार के कलात्मक, शारीरिक एवं बौद्धिक अनुभव तथा प्रयोग सम्मिलित रहते है
 
राबर्ट एम. डब्ल्यू. ट्रेवर्स से अपनी पुस्तक ‘इण्ट्रोक्शन टू रिसर्स’ में पाठ्यचर्या की गत्यात्मकता पर बल देते हुए लिखा है- ‘‘एक शताब्दी पूर्व पाठ्यचर्या की संकल्पना उस पाठ्य-सामग्री का बोध कराती थी जो छात्रों के लिए निर्धारित की जाती थी, परन्तु वर्तमान समय में पाठ्यचर्या की संकल्पना में परिवर्तन आ गया है। यद्यपि प्राचीन संकल्पना अभी भी पूर्णरूपेण लुप्त नहीं हुई है, लेकिन अब माना जाने लगा है कि पाठ्यचर्या की संकल्पना में छात्रों की ज्ञान - वृद्धि के लिए नियोजित सभी स्थितियाँ, घटनायें तथा उन्हें उचित रूप में क्रमबद्ध करने वाले सैद्धांतिक आधार समाहित रहते है।’’
 
सी.वी. गुड द्वारा सम्पादित शिक्षा कोष में पाठ्यचर्या की तीन परिभाषायें दी गई है, जो इस प्रकार है -
‘‘अध्ययन के किसी प्रमुख क्षेत्र में उपाधि प्राप्त करने के लिए निर्धारित किये गये क्रमबद्ध विषयों अथवा व्यवस्थित विषय-समूह को पाठ्यचर्या के नाम से अभिहित किया जाता है।’’
‘‘किसी परीक्षा को उत्तीर्ण करने अथवा किसी व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए किसी शिक्षालय द्वारा छात्रों के लिए प्रस्तुत विषय-सामग्री की समग्र योजना को पाठ्यचर्या कहते है।’’
‘‘व्यक्ति को समाज में समायोजित करने के उद्देश्य से विद्यालय के निर्देशन में निर्धारित शैक्षिक अनुभवों का समूह पाठ्यचर्या कहलाता है।
कनिंघम के अनुसार ‘‘पाठ्यचर्या कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में ढाल सके।’’

डीवी के अनुसार-’’सीखने का विषय या पाठ्यचर्या, पदार्थो, विचारों और सिद्धांतों का चित्रण है जो निरंतर उद्देश्यपूर्ण क्रियान्वेषण से साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं।’’

सैमुअल के अनुसार -’’पाठ्यचर्या में शिक्षार्थी के वे समस्त अनुभव समाहित होते हैं जिन्हें वह कक्षाकक्ष मे, प्रयोगशाला में, पुस्तकालय में, खेल में मैदान में, विद्यालय में सम्पन्न होने वाली अन्य पाठ्येतर क्रियाओं द्वारा तथा अपने अध्यापकों एवं साथियों के साथ विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त करता है।’’
 
होर्नी के शब्दों में -’’पाठ्यचर्या वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता ह। यह सीखने की क्रियाओं तथा शान्तिपूर्वक अध्ययन करने से कहीं अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास तथा क्रियायें सम्मिलित होती है। इस प्रकार यह विद्यार्थी के स्नायुमण्डल में होने वाले गतिवादी एवं संवेदनात्मक तत्वों को व्यक्त करता हैं समाज के क्षेत्र में यह उन सब की अभिव्यक्ति करता है जो कुछ जाति ने संसार के सम्पर्क में आने से किये हैं।’’
 
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार -’’पाठ्यचर्या का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो विद्यालयों में परम्परागत रूप से पढ़ाये जाते हैं, बल्कि इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी सम्मिलित होती है, जिनको विद्यार्थी विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेक अनौपचारिक सम्पर्को से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यचर्या हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके संतुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।
 
वेण्ट और क्रोनोबर्ग के अनुसार -’’पाठ्यचर्या का पाठ्यवस्तु का सुव्यवस्थित रूप है जो बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तैयार किया जाता है।’’

फ्रोबेल के मतानुसार -’’पाठ्यचर्या सम्पूर्ण मानव जाति के ज्ञान एवं अनुभव का प्रतिरूप होना चाहिए।’’
  • पाठ्यचर्या की उपरोक्त सभी परिभाषाओं का विवेचन करने के बाद निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि पाठ्यचर्या का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। यह छात्र के जीवन के सभी पहलुओं को स्पष्ट करता है फिर चाहे वह शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय, बौद्धिक या नैतिक किसी से भी जुड़े हो। वर्तमान समय में पाठ्यचर्या शिक्षकों को गॉड स्थान देकर तथा विद्यार्थी की क्षमताओं एवं अभिरुचियों को केंद्र में रखकर बनाया जाता है।
  • इसका ध्येय बालक का सर्वांगीण विकास करना एवं बालक को इस योग्य बनाना होता है कि वह अपने साथ साथ अपने समाज समुदाय व देश का भी विकास व उद्धार कर सके।
  • प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कुछ विशेष साधनों का उपयोग किया जाता है। पाठ्यचर्या भी एक ऐसा ही साधन है जिसकी सहायता से प्रत्येक विद्यार्थी को उसके समय के सदुपयोग एवं ज्ञानार्जन की दिशा में सजग रखा जा सकता है। इसके साथ ही साथ शिक्षकों को भी उनके कर्तव्यों की पूर्ति हेतु सही दिशा मिलती रहती है।
  • इस प्रकार शिक्षा की प्रक्रिया में पाठ्यचर्या का विशेष महत्व है। पाठ्यचर्या ही संपूर्ण शिक्षण क्रिया का आधार होता है। पाठ्यचर्या के अभाव में शिक्षण कार्य न तो सफलतापूर्वक संपन्न हो सकता है और न ही अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि शैक्षिक प्रक्रिया में पाठ्यचर्या केंद्र बिंदु का कार्य करता है, जिसके चारों ओर शिक्षक एवं शिक्षार्थीगण अपने कर्तव्यों की पूर्ति व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।

पाठ्यचर्या की आवश्यकता Need of Curriculum

पाठ्यचर्या के द्वारा ही विद्यालय का कार्य संगठित व संतुलित रूप से चल सकता है। पाठ्यचर्या का आवश्यकता व महत्व उसके द्वारा संपादित किए जाने वाले कार्यों के रूप में समझा जा सकता है। पाठ्यचर्या की आवश्यकता महत्व इस प्रकार है-

  1. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक
  2. शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक
  3. शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायक
  4. विषय सामग्री के विभाजन में सहायक
  5. चरित्र निर्माण में सहायक
  6. व्यक्तित्व के विकास में सहायक
  7. अनुसंधान एवं अविष्कार में सहायक
  8. दर्शन एवं शिक्षा की प्रवृत्तियों को दर्शाने में सहायक
  9. तत्कालीन घटनाओं के ज्ञान में सहायक

1. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक

प्रत्येक अवधारणा का निर्माण कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। उद्देश्यों के अभाव में कोई भी प्रक्रिया सही मार्ग पर नहीं चल सकती है। शिक्षण प्रक्रिया के संबंध में भी यह बात सत्य सिद्ध होती है। बिना उद्देश्यों के चलने वाली शिक्षण प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार होती है जैसे पतवार के बिना नाव।

इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में पाठ्यचर्या ही सहायता करता है। यह एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं तथा उपयुक्त पाठ्यचर्या के अभाव में हम शिक्षा के उद्देश्य प्राप्त करने के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

2. शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक

प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए समय सारणी का निर्माण किया जाता है। जिसके अंतर्गत प्रत्येक विषय के लिए निश्चित समय का आवंटन किया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक विषय एवं विषय वस्तु का शिक्षा प्रक्रिया में विशेष महत्व है।

शिक्षक व शिक्षार्थी विषय वस्तु या अध्ययन वस्तु से अनभिज्ञ रहते हैं तथा इस बात का उन्हें ज्ञान नहीं होता कि उन्हें क्या पढ़ना है, तब तक वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा भी प्राप्त नहीं कर सकते। इस प्रकार पाठ्यचर्या ही शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक होता है।

3. शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायक

सफल शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक को उचित शिक्षण विधियों का ज्ञान हो। यह ज्ञान अध्यापक को पाठ्यचर्या ही प्रदान करता है। पाठ्यचर्या ही विभिन्न कक्षाओं के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री ओं का निर्धारण करता है तथा उन विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्रियों के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षण विधियों का निरूपण करता है। प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिए अलग-अलग प्रकार की शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है। पाठ्यचर्या के अभाव में शिक्षक को इस बात का ज्ञान नहीं हो सकता है कि किस कक्षा में किस प्रकार की विषय वस्तु को किस विधि से पढ़ाना है। इस प्रकार पाठ्यचर्या शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायक होता है।

4. विषय सामग्री के विभाजन में सहायक

पाठ्यचर्या की विषय सामग्री का निर्धारण करता है तथा साथ ही साथ इस बात का भी निर्धारण करता है कि वह विषय वस्तु विभिन्न स्तरों के अनुरूप किस प्रकार की हो। पाठ्यचर्या छोटी कक्षाओं के लिए सरल व रोचक विषय वस्तु का सुझाव देता है। माध्यमिक कक्षाओं के लिए तर्कपूर्ण व ज्ञानवर्धक अध्ययन वस्तु का निर्देशन करता है तथा कुछ कक्षाओं के लिए गहन व चिंतनशील तथा प्रयोगात्मक अध्ययनक्रम की रूपरेखा रखता है। विभिन्न स्तरों के अनुरूप विषय वस्तु का विभाजन वैज्ञानिक एवं उचित ढंग से करने में पाठ्यचर्या ही सहायता करता है। पाठ्यचर्या के अभाव में ऐसा तर्क सम्मत विभाजन होना संभव नहीं है।

5. चरित्र निर्माण में सहायक

पाठ्यचर्या एक व्यापक व वृहद अवधारणा है। इसके अंतर्गत केवल पाठ्य विषय ही नहीं बल्कि विभिन्न पाठ्य सहायक गतिविधियां व पाठ्येत्तर क्रियाकलाप भी सम्मिलित होते हैं। इसके अंतर्गत अनेक खेलों का आयोजन, एनसीसी व स्काउटिंग का निर्धारण तथा विभिन्न पर्वों का विशेष महत्व के दिवसों का आयोजन किया जाता है।

जिसका उद्देश्य बालकों का चरित्र निर्माण एवं उचित नागरिकता का विकास करना है। इस प्रकार उचित पाठ्यचर्या चरित्र विकास में सहायक होता है। दूसरे शब्दों में चरित्र निर्माण व नागरिकता के लिए उत्तम गुणों का विकास पाठ्यचर्या के द्वारा ही संभव है।

6. व्यक्तित्व के विकास में सहायक

बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने में पाठ्यचर्या अपना पूर्ण योगदान करता है। व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू होते हैं यथा शारीरिक मानसिक सामाजिक बौद्धिक नैतिक आध्यात्मिक व्यावसायिक तथा सांस्कृतिक आदि।

पाठ्यचर्या विभिन्न खेलकूद की प्रवृत्तियों द्वारा शारीरिक विकास करता है। विभिन्न पाठ्य सहायक गतिविधियों द्वारा नैतिक आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विकास करता है तथा आवश्यक विषयों के ज्ञान एवं सही दिशा निर्देशन के द्वारा व्यावसायिक विकास करता है। इस प्रकार पाठ्यचर्या बालक के व्यक्तित्व के विकास में सहायता करता है।

7. अनुसंधान एवं आविष्कार में सहायक

जैसा कि हमें पूर्वविदित है, पाठ्यचर्या केवल अध्ययन वस्तु तक ही सीमित न होकर एक व्यापक अवधारणा है। वर्तमान पाठ्यचर्या में बालक को केंद्र बनाकर भावी जीवन की तैयारी के उद्देश्य से सभी आवश्यक कार्यक्रमों को संगठित किया जाता है। यह जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करके उनके संतुलित विकास में सहायता करता है।

पाठ्यचर्या उन अनुभवों क्रियाओं तथा जीवन की उन परिस्थितियों का योग है जिनके माध्यम से बालक ज्ञान अर्जित करता है। पाठ्यचर्या उच्च स्तर पर छात्रों का अनुसंधान एवं नित्य नवीन खोज करने के लिए विषय वस्तु, क्षमता एवं पूर्ण सहयोग प्रदान करता है।

8. दर्शन और शिक्षा की प्रवृत्तियों को दर्शाने में सहायक

भारत देश में अनेकों दर्शन की धाराएं प्रचलन में रही है। अनेकों दार्शनिक शिक्षक भी रहे हैं। जिनमें महात्मा गांधी, अरविंदो, रविंद्र नाथ टैगोर आदि। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण दार्शनिक विचार रखे। इन्होंने अपने विचारों द्वारा बालकों के लिए पाठ्यचर्या की अवधारणा का निरूपण किया, जिसमें इनके दार्शनिक विचारों की झलक प्राप्त होती है।

इसी प्रकार वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक, गुलामी के समय तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा व्यवस्था विभिन्न परिवर्तनों से गुजरी है, उन सब की भी झलक हमें पाठ्यचर्या द्वारा प्राप्त होती है। इस प्रकार पाठ्यचर्या शिक्षा की विभिन्न प्रवृत्तियों तथा विभिन्न दर्शनों के परिवर्तनों को दर्शाता है।

9. तत्कालीन घटनाओं के ज्ञान में सहायक

वर्तमान युग में औद्योगिककरण का युग है। विज्ञान व तकनीकी अपने चरम पर है। देशों के मध्य की दूरियां घट रही हैं व उनके मध्य अनेकों संबंध व समझौते हो रहे हैं। विकसित व विकासशील दोनों ही प्रकार के देश अपने आप को सक्षम बनाने में जुटे हुए हैं। ऐसे में आज के युवक-युवतियों के लिए यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि उन्हें वर्तमान युग की तत्कालीन घटनाओं का पूर्ण व सटीक ज्ञान हो।

उद्देश्यों की प्राप्ति वर्तमान पाठ्यचर्या के द्वारा की जा सकती है। अपने सामाजिक व भौतिक वातावरण की समझ प्रदान करने के लिए अनेकों विषयों व पाठ्येत्तर क्रियाओं का सहारा लिया जाता है, देश विदेश की विभिन्न घटनाओं से अवगत कराया जाता है, तथा पाठ्यचर्या के द्वारा उन्हें प्रत्येक भौतिक व सामाजिक परिस्थितियों से परिचित कराया जाता है। ताकि बालक अपने आप को तेजी से बदलते हुए भौतिक परिवेश में ढाल सके तथा भावी जीवन के लिए तैयार होकर अपने देश व समाज को सक्षम बना सके।

 


 

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