शैक्षिक निर्देशन
Educational Guidance
निर्देशन(Guidance)
- निर्देशन का शाब्दिक अर्थ निर्दिष्ट करना, बहलाना, मार्ग दिखाना आदि।
- निर्देशन वह सहायता है, जो व्यक्ति की योग्यताओं रूचियों, क्षमताओं, समस्याओं आदि को समझ कर उसे इस उद्देश्य से दी जाती है।
- निर्देशन द्वारा समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता बल्कि व्यक्ति को समस्या का समाधान करने के योग्य बनाया जाता है।
- विशिष्ट क्षेत्रों में कियाग या पथ प्रदर्शन उस विशिष्ट क्षेत्र से संबंधित निर्देशन कहा जा सकता है। यह शब्द सभी प्रकार की शिक्षा में जुड़ा हैं - औपचारिक, अनौपचारिक, निरोपचारिक एवं व्यावसायिक शिक्षा आदि जिसमें व्यक्ति की सहायता करना ही उद्देश्य होता है ताकि वह अपने पर्यावरण में भावात्मक रूप से समायोजन कर सके।
शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)
- एक अधिक अनुभवी व्यक्ति द्वारा कम अनुभवी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से कुछ जटिल/बड़ी समस्याओं को हल करने में सहायता दी जाती है।
परिभाषाएँ -1.कार्टर वी गुड़ - निर्देशन छात्रों /व्यक्तियों को ज्ञान या विवेक प्राप्त करने में सहायता देने और आत्म निर्देशन की दिशा में अग्रसर करने की दबाव या आदेश से युक्त व्यवस्थित सहायता है।2.स्किनर के अनुसार - नवयुवकों को अपने प्रति, दूसरों के प्रति तथा परिस्थितियों के प्रति समायोजन में सहायता करने की प्रक्रिया निर्देशन है।3.मुदालियर (डाॅ. ए. लक्ष्मण स्वामी) आयोग - निर्देशन छात्र एवं छात्राओं के अपने भविष्य के विवेकपूर्ण नियोजन हेतु दी जाने वाली सहायता की वह कठिन कला है जो उनके स्वयं के संबंधित तथ्यों को पूर्ण जानकारी तथा उस विश्व के सम्बन्ध में जिसमें वह रहत है तथा कार्य करता है, के ज्ञान के आधार पर आधारित है।परिभाषाओं के आधार पर निर्देशन व्यक्तियों को समस्याओं के संबंध में सहायता देने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति को शैक्षिक, व्यावसायिक, मनोरंजन, सामाजिक सेवाओं और समस्त मानवीय क्रियाओं को तैयार करने में, उनमें प्रवेश पाने में और सफलता एवं उन्नति दिलाने में सहायता देती है।अतः निर्देशन एक सेवा है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को उसकी पूर्ण परिपक्वता प्राप्त करने में सहायता करना है ताकि वह समाज की सेवा कर सकें।शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों में स्कूली वातावरण के साथ सामजस्य स्थापित करने की योग्यता का विकास करना तथा विद्यार्थी में आवश्यक जागरूकता एवं संवेदनशीलता पैदा करना ताकि वे उचित अधिगम लक्ष्यों, उपकरणों, परिस्थितियों आदि का स्वयं चयन कर सके।जाॅन्स के अनुसार - शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध विद्यालय पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय और विद्यालय चयन तथा अनुकूलन हेतु छात्रों को दी जाने वाली सहायता से है।शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता (Need of Guidance )
- शिक्षा और निर्देशन के पारस्परिक सम्बन्ध एवं यथेष्ट विकास के लिए शिक्षा के क्षेत्र में निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।
- जीवन और संस्कृति, व्यावसाय एवं धम्र सभी के पुराने मानदण्ड तेजी से बदल रहे है, जिसके कारण निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक अनुभव की जा रही है।
- व्यक्ति और समाज की दृष्टि से निर्देशन के आधारभूत कारणों को दो दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक (निर्देशन की आवश्यकता दो कारणों से नजर आती है। सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक)
निर्देशन का समाजशास्त्रीय आधार1. व्यक्ति के मौलिक महत्व की स्वीकृति के लिए।2. मानवीय क्षमता का समुचित उपयोग एवं उसका संरक्षण के लिए।3. यांत्रिक सभ्यता के विकास के कारण तथा सामाजिक आवश्यकताओं का जटिल होना।4. विज्ञान की उन्नति से समाज के बदलते मानदण्ड और उससे उत्पन्न नई परिस्थितियों5. कार्यो एवं सेवाओं में विशेषीकरण की बढ़ती हुई प्रवृति के लिए।6. उचित नियोजन की आवश्यकता।7. स्त्रियों के लिए रोजगार की आवश्यकता के लिए।8. शिक्षा संस्थाओं में विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या9. निर्देशन के बीना जीवन में प्रगति असंभव है।10. प्रत्येक व्यक्ति मूलतः अच्छा है बुरी संगत में पढ़क रवह बुराई को अपनाता है।11. प्रत्येक व्यक्ति अनन्य (विशेष) है उसका वह गुण उसे जीवन और समाज में प्रगति करने की पे्ररणा प्रदान करता है।12. प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रूचि के अनुसार कार्य करने की सुविधा आवश्यक है।13. प्रत्येक व्यक्ति में समायोजन करने की क्षमता होनी चाहिए।निर्देशन का मनोवैज्ञानिक आधार1. व्यक्तिगत भिन्नताओं का महत्व - कोई भी दो व्यक्ति पूर्णतः समान नहीं होते। उसका शारीरिक गठन, विकास में अन्तर, रूचि, बुद्धि, दृष्टिकोण एवं मानसिक विकास में अन्तर पाया जाता है। व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों, स्वभाव एवं क्षमताओं के अनुरूप, शैक्षिक एवं व्यावसायिक क्षेत्रों में उचित समायोजन के लिए निर्देशन आवश्यक होता है।2. एक ही व्यक्ति की विभिन्न विषयों एवं क्षेत्रों में प्रगति सम्बन्धी भिन्नता निर्देशन सेवा द्वारा दिये गये मूल्यांकन एवं परीक्षण से एक व्यक्ति की विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति मे अन्तर किया जा सकता है। गणित में अच्छे अंक तो भ्पेजवतल - स्ंदहनंहम में नहीं, कोई भ्पेजवतल में तो कोई डंजीे में कम। इस प्रकार भिन्नता को ध्यान में रखकर निर्देशन प्रदान किया जा सकता है।3. व्यक्ति को संतोष प्रदान करने समाज में समुचित समायोजन की आवश्यकता निर्देशन के अभाव में शिक्षा की व्यवस्था इतनी संगठित नहीं हो पाती कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचित और योग्यता के अनुरूप व्यावसायिक चुनाव करने में सफल हो सके।4. व्यक्ति की भावात्मक समस्याएँ - समाज में व्यक्ति का भावात्मक समायोजन समुचित रूप से हो सके इसके लिए निर्देशन सहायक होता है अधिकांश बच्चे पारिवारिक वातावरण में भावात्मक समायोजन की समस्या का अनुभव करते है। भावात्मक समस्याओं का जन्म व्यक्ति के जीवन में अन्य क्षेत्रों में उपस्थित होने वाली कठिनाईयों से होता है। निर्देशन व्यक्ति की उन कठिनाईयों को हल खोजने में उसकी सहायता कर सकता है।5. व्यक्तित्व के उचित विकास की आवश्यकता - व्यक्ति का शरीर और मन स्वभाव और अर्जित व्यवहार इत्यादि सभी कुछ व्यक्ति के सम्पूर्ण निजी अस्तित्व के साथ समाहित है। व्यक्तित्व में अनुवांशिकता से प्राप्त गुणों को प्रकाश लाने एवं समाज के बीच व्यक्ति के प्रभावशाली व्यवहार को विकसित करने में निर्देशन का महत्व है।6. पाठ्यक्रम चयन में7. शैक्षिक उपलब्धि स्तर बनाये रखने में8. अनुशासनहीनता दूर करने में9. व्यवसाय चयन में10. अपव्यय एवं अवरोधन रोकन में11. व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार शिक्षा देने में12. सार्थक अधिगम स्तम्भ पहचान करने में13. व्यावहारिकता14. लचीलापन
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Dr. D R BHATNAGAR
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