ज्ञान के वर्गीकरण के आधार
Basis of Categorization of Knowledge
ज्ञान के वर्गीकरण की प्रक्रिया को किस आधार पर सम्पन्न किया जाय यह एक महत्त्वपूर्ण विषय है । ज्ञान का वर्गीकरण ज्ञान की भाँति एक व्यापक एवं जटिल प्रक्रिया है । इसके लिये उन आधारों का चुनाव करना चाहिये जिससे यह वर्गीकरण सफल माना जा सके । आज प्रत्येक अभिभावक विद्यालय एवं विद्यालयी ज्ञान से यह अपेक्षा करता है कि उसके बालक का सर्वांगीण विकास हो तथा बालक को समाज , राष्ट्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त हो । ज्ञान का वर्गीकरण उन सभी अपेक्षाओं एवं मान्यताओं के आधार पर होना चाहिये जिससे कि वह समग्र रूप में प्रस्तुत किया जा सके । ज्ञान के वर्गीकरण को समग्र एवं त्रुटिरहित बनाने के लिये ही इसमें समय - समय पर सुधार किये जाते हैं । इस प्रकार ज्ञान के वर्गीकरण को निम्नलिखित आधारों पर प्रस्तुत किया जाना चाहिये जिससे कि इस वर्गीकरण पर एक समग्र एवं सार्वभौमिक पाठ्यक्रम तैयार किया जा सके
1. दार्शनिक आधार ( Phisolosophical basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण का प्रमुख आधार दार्शनिक विचारधाराओं को माना जाता है । दार्शनिक विचारधाराओं का अस्तित्व समाज में हो या न हो परन्तु ज्ञान के विकास एवं संगठन में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है । वर्तमान में एक छात्राध्यापक को आदर्शवाद , प्रकृतिवाद एवं प्रयोजनवादी विचारधाराओं का ज्ञान प्रदान किया जाता है । इसका उपयोग करके छात्राध्यापक द्वारा छात्रों के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त किया जाता है । यदि एक छात्र से आदर्शों को निष्कासित कर दिया जाय तो उसका ज्ञान घातक सिद्ध होगा ; जैसे- आतंकवादी संगठनों के पास आदर्श रहित ज्ञान होता है जिसका उपयोग वह हिंसा के लिये करते हैं । यदि उनके ज्ञान में आदर्शों को डाल दिया जाय तो वही आतंकवादी ज्ञान का सदुपयोग करके गरीबों की रक्षा करेंगे । अतः प्रत्येक स्थिति में दार्शनिक विचारधाराओं को उनकी आवश्यकता , उपयोगतििा एवं समसामयिकता के आधार पर स्थान प्राप्त होना चाहिये । इससे ज्ञान का वर्गीकरण समग्र एवं सार्वभौमिक बन सकेगा ।
2. सामाजिक आधार ( Social basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण की प्रक्रिया सामाजिक
मान्यताओं एवं परम्पराओं के आधार पर सम्पन्न की जानी चाहिये ; जैसे- भारतीय समाज में प्रत्येक अभिभावक अपने बालकों को सामाजिक कुशलता प्रदान करने के लिये विद्यालय में भेजता है जिससे उसको समाज में सम्मान प्राप्त हो सके । इस आधार पर विद्यालय में पाठ्यक्रम का स्वरूप एवं विषयों का वर्गीकरण भी उस रूप में होना चाहिये जो कि सामाजिक नियम एवं परम्पराओं के अनुरूप हो । इस आधार पर ही पाठ्यक्रम में उन कहानियों , कविताओं एवं निबन्धों को सम्मिलित किया जाता है जो कि सामाजिक गुणों एवं मूल्यों की शिक्षा प्रदान करते हैं । अत : ज्ञान का वर्गीकरण सामाजिक सन्दर्भ में किया जाना चाहिये ।
3. राजनीतिक आधार ( Political basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण में राजनीतिक व्यवस्था एवं नीतियों को भी ध्यान में रखना चाहिये ; जैसे- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर आधारित है तो भारतीय विद्यालयों में समानता एवं स्वतन्त्रता पर आधारित शिक्षा प्रदान की जाती है । शैक्षिक अवसरों की समानता एवं सार्वभौमीकरण शिक्षा की व्यवस्था सरकार द्वारा की जा रही है । इस आधार पर ही ज्ञान का वर्गीकरण एवं पाठ्यक्रम का स्वरूप निश्चित किया जा रहा है । राजनीतिक व्यवस्था में सभी व्यक्ति ज्ञान के व्यापक प्रचार - प्रसार के लिये वचनबद्ध है तो निश्चित रूप से इन सभी तथ्यों पर ज्ञान के वर्गीकरण में ध्यान देन की आवश्यकता होगी ।
4. प्राकृतिक आधार ( Natural basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण में प्राकृतिक व्यवस्था को भी सम्मिलित करना चाहिये । प्राकृतिक व्यवस्था में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का उपयोग वर्गीकरण में उचित रूप में किया जाना चाहिये ; जैसे- प्राथमिक स्तर पर छात्रों को प्राकृतिक पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान प्रदान किया जाता है तथा उनको बताया जाता है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किस प्रकार करना चाहिये तथा ये संसाधन हमारे लिये किस प्रकार से उपयोगी हैं । इस प्रकार के ज्ञान को पृथक् विषय पर्यावरणीय शिक्षा , परिवेशीय शिक्षा एवं प्राकृतिक संसाधनों सम्बन्धी शिक्षा आदि रूपों में विभक्त करना चाहिये । इस प्रकार ज्ञान के वर्गीकरण में प्राकृतिक व्यवस्था पर पूर्ण ध्यान देना चाहिये ।
5. आर्थिक आधार ( Economic basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण को आर्थिक आधार पर प्रस्तुत करना चाहिये । ज्ञान के विविध रूप आर्थिक विकास से सम्बन्धित होते हैं । वर्तमान भौतिकवादी युग में अर्थ को प्रधानता प्रदान की जाती है । इसलिये विशेष औद्योगिक व्यवस्था के सन्दर्भ में ज्ञान को वर्गीकृत रूप में प्रस्तुत करना चाहिये ; जैसे- प्राथमिक स्तर पर छात्रों को विविध प्रकार के उद्योग - धन्धों का ज्ञान प्रदान किया जाता है जिससे वह समझ सके कि औद्योगिक विकास जीवन में रोजगार तथा धनार्जन के लिये आवश्यक है । इस आधार पर छात्र ज्ञान को रुचिपूर्ण ढंग से स्वीकार करेंगे । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का वर्गीकरण औद्योगिक व्यवस्था एवं आर्थिक व्यवस्था के सन्दर्भ में व्यापक रूप से प्रस्तुत करना चाहिये ।
6. नैतिक आधार ( Moral basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण का प्रमुख आधार नैतिकता को माना जाता है । समाज में नैतिकता की स्थिति सर्वोच्च रूप में होने पर समाज का कल्याण होता है । इसी आधार पर समाज का उन्नयन होता है ; जैसे- प्राचीनकाल में समाज में नैतिकता थी । समाज में भ्रष्टाचार कम था । आज समाज में नैतिकता का अभाव है तो भ्रष्टाचार अधिक है । इस आधार को ध्यान में रखते हुए आज भी छात्रों को प्राथमिक स्तर से ही नैतिक शिक्षा को अनिवार्य रूप से प्रदान किया जाता है जिसमें बालक के कोमल मन में नैतिक दायित्वों का समावेश सम्भव होता है ।
7. मानवीय आधार ( Human being basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण का प्रमुख आधार मानवीय आवश्यकता एवं विकास होना चाहिये । प्राय : इस आधार पर ही ज्ञान को वर्गीकृत रूप प्रदान किया जाता है जिससे मानव अपनी आवश्यकता एवं रुचि के अनुरूप ज्ञान की प्राप्ति कर सके ; जैसे - विज्ञान में रुचि रखने वाले छात्र विज्ञान विषय सम्बन्धी ज्ञान को प्राप्त कर सकें तथा दर्शन में रुचि रखने वाले छात्रों द्वारा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया जा सके । इसके साथ - साथ ज्ञान के वर्गीकरण का आधार मानवीय गुणों के विकास को भी माना जाता है । विश्व बन्धुत्व एवं भाईचारे के विकास से सम्बन्धित गुणों को ज्ञान वर्गीकरण का प्रमुख आधार बनाया जाता है । इस प्रकार ज्ञान वर्गीकरण का प्रमुख आधार मानव को माना जाता है ।
8. आध्यात्मिक आघार ( Spiritual basis ) - भारतीय समाज एवं संस्कृति में आध्यात्मिकता का महत्त्वपूर्ण स्थान है । किसी भी छात्र का सर्वांगीण विकास उस स्थिति में ही पूर्ण होता है जब उसका आध्यात्मिक विकास सम्भव होता है । इसलिये ज्ञान के वर्गीकरण में आध्यात्मिक विषयों की श्रृंखला एवं साहित्य को पृथक् स्थान दिया गया है । प्राथमिक स्तर पर छात्रों को योग शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा प्रदान करना छात्रों के आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया से सम्बन्धित माना जाता है । आध्यात्मिक ज्ञान के प्राप्त होने के पश्चात् मानव पशु से मानव बनता है । अत : ज्ञान के वर्गीकरण का आधार आध्यात्मिक व्यवस्था होना चाहिये ।
9. सार्वभौमिक आधार ( Universal basis ) – ज्ञान के वर्गीकरण के सार्वभौमिक आधार की प्रक्रिया का आशय ज्ञान में उन सभी तथ्यों एवं मान्यताओं को समाहित करने से है जो कि सम्पूर्ण विश्व में समानता से स्वीकार की जाती हैं ; जैसे- विश्व शान्ति के लिये ज्ञान , विश्व संस्कृति के लिये ज्ञान , सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय के लिये ज्ञान , अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिये ज्ञान , अन्तर्राष्ट्रीय विकास के लिये ज्ञान तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये ज्ञान आदि । इन सभी तथ्यों को ज्ञान का वर्गीकरण करते समय ध्यान में रखा जाय तो ज्ञान का वर्गीकरण सार्वभौमिक आधार पर सम्भव हो सकेगा ।
10. सांस्कृतिक आधार ( Cultural basis ) - सांस्कृतिक आधार का आशय ज्ञान के वर्गीकरण में उन सभी तथ्यों को ध्यान में रखने से है जो कि राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृति से सम्बन्ध रखते हैं , जैसे- बालकेन्द्रित शिक्षा व्यवस्था , विद्यालय संस्कृति , विद्यालय जलवायु , वैश्विक परम्पराएँ , वैश्विक व्यवहार , वैश्विक स्तर पर विचार - विमर्श एवं वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय सम्मेलन आदि । इन सभी तथ्यों को ज्ञान के वर्गीकरण के समय ध्यान में रखा जाय तो ज्ञान का वर्गीकरण प्रभावी एवं उपयोगी रूप में सम्भव हो सकेगा ।
11. धार्मिक आधार ( Religious basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण का आधार धर्म भी होना चाहिये । प्राचीनकाल में शिक्षा धर्म की सहगामिनी थी । इस काल में व्यक्ति ईमानदार एवं कर्त्तव्यनिष्ठ था । आज धर्म निरपेक्षता की स्थिति में भ्रष्टाचार एवं कर्त्तव्य विमुखता की स्थिति व्यापक रूप से देखी जाती है । अतः धर्म ज्ञान का मूल तत्त्व है । ज्ञान के वर्गीकरण में सदैव ज्ञान के मूल तत्त्वों को ध्यान में रखना चाहिये ; जैसे - नर सेवा नारायण सेवा , अहिंसा , सहिष्णुता , दरिद्र नारायण का रूप है , सभी मनुष्य आदि शक्ति की सन्तान हैं तथा मनुष्य को मनुष्य के लिये जीवन समर्पित करना चाहिये आदि । इन सभी आधारों को ध्यान में रखकर किया गया वर्गीकरण सर्वश्रेष्ठ रूप में होगा ।
12. वैज्ञानिक आधार ( Scientific basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण में रूढ़िवादिता , अन्ध विश्वास एवं सामाजिक बुराइयों के पूर्ण समापन की व्यवस्था होनी चाहिये तथा स्वस्थ परम्पराओं एवं वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश होना चाहिये ; जैसे- प्राथमिक स्तर पर छात्रों के समक्ष सूर्य एवं चन्द्र को ग्रह के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तथा सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण को खगोलीय घटनाओं के रूप में स्वीकार किया जाता है । इससे सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण के सन्दर्भ में विविध प्रकार के भ्रमों को दूर किया जाता है । इस प्रकार छात्रों में प्रत्येक घटना के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने वाले प्रसंगों को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना चाहिये जिससे छात्रों में वैज्ञानिक अनुसन्धानों के प्रति रुचि उत्पन्न हो सके ।
13. विकासात्मक आधार ( Developmental basis ) -ज्ञान के वर्गीकरण का प्रमुख आधार विकास होना चाहिये । छात्रों के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया में ज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । जब छात्रों के लिये विद्यालय में सभी पक्षों के विकास से सम्बन्धित ज्ञान उपलब्ध होगा निश्चित रूप से छात्रों का सर्वांगीण विकास हो सकेगा । प्राथमिक स्तर से ही छात्रों के समक्ष उन गतिविधियों को प्रस्तुत किया जाता है जो कि उसके सर्वांगीण विकास से सम्बन्धित होती हैं .ज्ञान के स्वरूप और विद्यालयों में इनका संगठन जैसे - नैतिक शिक्षा , परिवेशीय शिक्षा , विज्ञान , गणित , योग शिक्षा एवं सांस्कृतिक शिक्षा आदि के विषय सम्बन्धी ज्ञात से सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होता है ।
14. सृजनात्मकता सम्बन्धी आधार ( Creativity related basis ) - ज्ञान के वर्गीकरण का प्रमुख आधार सृजनात्मकता होनी चाहिये ज्ञान का प्रयोग सृजन के लिये ही किया जाता है । इसी आधार पर बालकों के अध्ययन के क्षेत्र का निर्माण किया जाता है । प्राथमिक स्तर पर ही बालकों को समाजोपयोगी उत्पादक कार्यों के रूप में मिट्टी के खिलौने बनाना सिखाया जाता है । वृक्षारोपण , उद्यान में स्वच्छता , विद्यालयी स्वच्छता तथा परिवेशी स्वच्छता से सम्बन्धित ज्ञान बालकों को प्रदान किया जाता है । इस प्रकार ज्ञान के माध्यम से बालकों में सृजनात्मकता का बीजारोपण किया जाता है । उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञान के वर्गीकरण के प्रमुख आधार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा के उद्देश्यों एवं मानव के सर्वांगीण विकास से सम्बन्धित हैं । ज्ञान के क्षेत्र का वर्गीकरण इन आधारों पर करने से ज्ञान का स्वरूप उपयोगी एवं निरन्तर विकास की प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करेगा । ज्ञान के वर्गीकरण के आधारों में समसामयिक एवं आधुनिक तथ्यों के आधार पर परिवर्तन भी हो जाते हैं ।
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