शैक्षिक प्रबन्धन
Educational Management
प्र्बन्धन की अवधारण
प्रबन्धन के द्वारा समस्त मानवीय एवं भौतिक संसाधनों की व्यवस्था तथा उनकी अधिकतम उपयोग किया जाता है। इससे कार्य प्रणाली में गति आ जाती हैं, साधनों का मितव्ययता पूर्ण उपयोग होता हैं। तथा उद्देश्यों की पूर्ति सहजता के साथ हो जाती है। प्रबन्धन ही वह तत्त्व हैं जिसके द्वारा हम पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को कम से कम समय तथा परिश्रम के साथ प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान में हमारे चारों ओर अनेक औपचारिक, अनौपचारिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यावसायिक, प्रशासनिक एवं राजनीतिक संगठन फैले हुए है। ऐसे संगठनों कों निर्देशित, समान्वित तथा एकीकृत करने हेतु प्रबन्धन की आवश्यकता पड़ती हैं।
औद्योगिक जगत में प्रबन्ध का स्थान एवं महत्त्व निरन्तर बढ़ता गया तथा उसका एक पृथ्क शास्त्र का विकास हुआ। आज विश्व में प्रबन्ध का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। प्रबन्धन के द्वारा नियोजन का कार्य किया जाता हैं। नियोजन के कारण हम शिक्षण मेें अनिश्चितता तथा को दूर कर अपनें कार्योे तथा उद्देश्यों में स्पष्टता तथा सोदेश्यता लाते हैं। प्रबन्धन से नेता की कार्य-दक्षता में वृद्धि होती हैं ’’प्रबन्धन मंें केवल अधिकारत्व भी शामिल नही हैं अपितु इसमें वैज्ञानिक चिन्तन व्यवस्थापन, दिशा-निर्देशन तथा नियंत्रण आदि भी शामिल होते है।’’ इस प्रकार कार्य को व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न कराने को प्रबन्धन कहा जाता है।
प्रबन्धन का अर्थ
प्रबन्धन एक व्यापक अवधारणा है। प्रबन्ध की विचारधारा इतनी जटिल हैं कि विद्वान इसे अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं और उद्देश्य कों ध्यान में रखकर समझाने की कोशिश करते है। कार्य को व्यवस्थित ढंग से करानें की कला, परन्तु इस अर्थ का प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र में नही किया जाता चूंकि प्रबन्ध मानवीय संगठन में किसी न किसी रूप में पाया जाता हैं, चाहे विद्यालय, सरकार, संगठना, सेना, परिवार।
प्रबन्धन की परिभाषा
एफ. डब्ल्यू टेलर के अनुसार’’ प्रबन्धन यह जानने की कला हैं कि आप व्यक्तियो से वास्तव में क्या काम लेना चाहते हैं? तथा यह देखना कि वे उसकों मितव्ययी तथा उत्तम ढंग से पूरा करते हैं।’’“Management is an art of knowing exacty what you want man to do and then seeing they do it in the best and economical way.”
जैक डंकन के अनुसार ’’प्रबन्धन में उन सभी संगठनात्मक क्रियाओ को सम्मिलित किया जाता हैं जो उद्देश्यपूर्ति तथा प्राप्ति कार्य-मूल्याकंन तथा उस कार्यात्मक दर्शन के विकास से सम्बन्धिन हैं, जों सामाजिक प्रणाली में संगठन के अस्तित्व कों सुनिश्चित करती है।’’
सी. डब्लयू. विलसन के अनुसार ’’प्रबन्ध एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मानवीय शक्तियों के प्रयोग एवं निर्देशन की प्रकिया हैं।’’“Management is a process of relasing and directing human energies towards attaining a definite goal.”
शैक्षिक प्रबन्ध की अवधारणा
शैक्षिक प्रबन्धन के क्षेत्र में वंछित शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए की जाने वाली प्रक्रिया हैं जिससे शिक्षण एवं अधिकतम की प्रक्रिया को ध्यान में रखा जाता हैं। लोककल्याणी राज्य में शिक्षा की व्यवस्था व्यापक रूप से सामनें आई इस बढती विधार्थियों की संख्या एवं उदेश्यों की विस्तृता के कारण शैक्षिक प्रबन्ध आवश्यक हो गया। शैक्षिक प्रबन्ध से तात्पर्य शिक्षा से सम्बन्धित सारी व्यवस्थाओं में कार्य करने की कला व्यवस्था एवं प्रबन्ध से हैं।
विधालय में इस प्रकार का प्रबन्ध हो कि उसे उचित संरक्षण एवं शिक्षा भली भाॅति प्राप्त करने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। सम्पूर्ण प्रक्रिया प्रबन्धन की ओर संकेत करती हैं क्योंकि शैक्षिक प्रबन्धन के अभाव से छात्रों को सर्वांगीण विकास के अवसर विधालय में उपलब्ध नहीं हो सकते हैं।शैक्षिक प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषाए
शैक्षिक प्रबन्ध दो शब्दों का सयुक्त है - शैक्षिक (शिक्षा) एक प्रबन्ध (व्यवस्था) अतः शैक्षिक प्रबन्ध का अर्थ हुआ शिक्षा प्रक्रिया की व्यवस्था (प्रबन्ध) करना। विद्यालय में इस प्रकार का प्रबन्ध हो कि उसे उचित संरक्षण एवं शिक्षा भली-भाति प्राप्त करने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करायी जानी चाहिए। सम्पूर्ण प्रक्रिया शैक्षिक प्रबन्धन की और संकेत करती है क्योकि शैक्षिक प्रबन्धन के अभाव से छात्रों को सर्वागीण विकास के अवसर विद्यालय में उपलब्ध नही हो सकते है।
शिक्षा प्रबन्धन का आशय सामान्या बांलचाल की भाषा में इस प्रकार निकलते है। कि मनुष्य अन्तनिर्हित शक्तियों का विकास किस माध्यम से कर सकता है। उन माध्यमों को व्यवस्थित क्रमबद्ध एवं एकीकृत करना। यह शिक्षा प्रबन्धन की नवीनतम अवधारणा है। जिसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का संतुलित विकास एवं समाज में समायोजित करने का अधिकतम अवसर प्रदान करना। तथा शिक्षा को जीवन से धनिष्ठ रूप से जोडने की आवश्यकता को ध्यान में रखकर शिक्षा के उद्धेश्यों को ध्यान में रखा गया।
विद्यालयी प्रबन्ध में मानव (शिक्षक व छात्र), मशीन (विद्यालय), साधन (उपकरण), माल (शैक्षिक प्रक्रिया), निष्पति, मुद्रा बाजार (शुल्क) अर्थव्यवस्था तथा मानव शक्ति नियोजक तथा संगठन (प्रबन्धक, प्रधानाचार्य शिक्षक, छात्र, कर्मचारी, अभिभावक) इन सबको गतिशील बनाए रखता है अर्थात् शिक्षण एक व्यवसाय है। इसमें शिक्षक अपने ज्ञान तथा कौशल की सेवाएॅ धन के बदले छात्रों को देता है। इस प्रक्रिया की सफलता उत्तम प्रबन्ध पर निर्भर करती है।
शिक्षण-अधिगम के प्रबन्धन का कार्य प्रमुख रूप से अध्यापक का होता है। इस हेतु शिक्षक ही प्रबन्ध कर्ता की भूमिका अदा करता है। शिक्षण अधिगम के प्रबन्धन के लिए वह योजना बनाता है। व्यवस्था करता है। अग्रेषित करता है। तथा नियंत्रण करता है। अध्यापक इन विभिन्न प्रकार के शेैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार की शैक्षिक क्रियाएँ करते है।“ प्रबन्ध यह जानने की कला है कि क्या करना है। तथा इसे करने का सर्वोतम तरीका क्या है।“ -एफ. डब्ल्यू. टेलर।
शैक्षिक प्रबन्ध शिक्षा के क्षेत्र मेे वांछित शासकीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए की जाने वाली प्रक्रिया है। इसका सम्बन्ध शिक्षा संस्थाओं से हैं जिसमें शिक्षण एवं अधिगम की प्रक्रिया एवं उसके परिणामों को ध्यान में रखा जाता र्है। और आज शैक्षिक प्रबन्ध ने एक विस्तृत एवं गतिशील अवधारणा का रूप ले लिया और उसके कार्यक्षेत्र का भी विस्तार हुआ।
POSDCORB
लूथर-गुलिक ने शैक्षिक प्रबन्ध के कार्य को “POSDCORB” के प्रबन्ध सूत्र मे पिरोया है।
परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष -
- शैक्षिक प्रबन्ध अमुर्त होता है।
- शैक्षिक प्रबन्ध अनवरत चलनें वाली प्रक्रिया है।
- शैक्षिक प्रबन्ध सामूहिक योगदान पर सफल होता है।
- शैक्षिक प्रबन्ध उपलब्ध साधनों का अधिकतम प्रयोग करता है।
- समन्वित दृष्टिकोण होता है।
- शैक्षिक प्रबन्ध एक व्यवसाय के रूप में धंसा जा रहा हैं ।
- शैक्षिक प्रबन्ध एक उद्देश्य पूर्ण क्रिया है।
- शैक्षिक प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया है।
- प्रबन्ध का दायित्व काम करवाना है।
- शैक्षिक प्रबन्ध कला और विज्ञान दोनों है।
- शैक्षिक प्रबन्ध एक समूह संज्ञा है।
- शैक्षिक प्रबन्ध में नियोजित एवं क्रमबद्ध रूप में कार्य होते है।
- शैक्षिक प्रबन्ध में सहयोग की भावना निहित होती है।
शैक्षिक प्रबन्ध की विशेषताए
CHARACTERISTICS OF EDUCATIONAL MANAGEMENT
1. नियोजित व्यवस्था - शैक्षिक प्रबन्ध की महत्त्वपूर्ण व्यवस्था नियोजन से सम्बन्धित है। विद्यालय मे सम्पूर्ण व्यवस्था पूर्ण नियोजन होती हैं । सम्पूर्ण शैक्षिक कार्यों को कमबद्ध तरीके से किया जाता हैं ं। यह प्रबन्ध के क्षेत्र की सबसे आधारभूत विशेषता मानी जाती है।2. शैक्षिक प्रबन्ध एक समन्वयकारी संसाधन है- शैक्षिक प्रबन्ध के माध्यम से शिक्षा के विभिन्न साधनों में समन्वय स्थापित करता है। प्रबन्ध एक जटिल अर्थ वाली प्रक्रिया है, इसका सम्बन्ध अधिकारियों से है। यह एकीकरण की प्रक्रिया द्वारा वह शिक्षा की प्रक्रिया को सफल बनाता है।3. अनवरत चलने वाली प्रक्रिया-शैक्षिक प्रबन्ध अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। इसमेें योजना बनाने, निर्णय करने, संगठन करने, निर्देशन, समन्वय आदि के बारे में निरन्तर कार्य किए जाते है। इसका सम्बन्ध प्रबन्धक की नीतियों को क्रियान्वित करने से है।4. सामूहिकता- शैक्षिक प्रबन्ध में प्रधानाध्यापक, अध्यापक, विधार्थी अभिभावक सभी में सामूहिक उतरदायित्व की भावना पर बल दिया जाता है। इसीलिए विद्यालयों मेे अध्यापक-अभिभावक परिषद् बनाई जाती है। और समय पर अभिभावको से सम्पर्क किया जाता है। सभी के सामूहिक योगदान पर ही शैक्षिक प्रबन्ध सफल हो सकता है।5. उद्धेश्यपूर्ण- प्रबन्ध के प्रत्येक क्षेत्र में प्रबन्ध का उद्धेश्यपूर्ण होना चाहिए शैक्षिक उद्धेश्य की प्राप्ति ही शैक्षिक प्रबन्ध का मुख्य उद्धेश्य हैं । शैक्षिक प्रबन्ध का मुख्य विधार्थियों का सर्वागीण विकास करना है। तथा शिक्षा से जुडे सम्बन्धित महत्वपूर्ण अधिकारियों के सूझावों को भी स्थान दिया गया है।6. प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया हैं- मनुष्य के समाजीकरण में जो स्थान समाज को प्राप्त है। वही स्थान शिक्षा के क्षेत्र में प्रबन्ध का हैं7. उपलब्ध साधनों का उपयोग- शैक्षिक प्रबन्ध में उपलब्ध साधनों का अधिाकतम उपयोग किया जाता हैै आज हमारे विद्यालय में सीमित मात्रा मे साधन उपलब्ध है। और शैक्षिक प्रबन्ध के द्वारा इन उपलब्ध साधनों का उपयोग अधिकतम लाभ के लिए किया जाता है।8. प्रबन्ध एक सार्वभौमिक क्रिया है।- शैक्षिक प्रबन्ध के द्वारा पूर्व निर्धारित शैक्षिक लक्ष्योे को आसानी से पूरा किया जा सकता है। क्योकि यह एक सार्वभौमिक प्रक्रिया होने से किसी भी शैक्षिक लक्ष्य तक पहुचने के लिए समुचित दिशा मिल जाती हैं नियोजन, संगठन, नियंत्रण तथा निर्दंेशन आदि सभी सार्वभौमिक प्रकृति के कार्य है।9. कला एवं विज्ञान- शैक्षिक प्रबन्ध को कला एवं विज्ञान दोनों ही माना गया है। शैक्षिक प्रबन्ध को कला मानवीय सम्बन्धों पर आधारित होने के कारण आधारित होने के कारण तथा इसमें वैज्ञानिक की तरह निष्पक्ष रहकर अध्ययन किया जाता है। अतः यह विज्ञान एवं कला दोनोे की श्रेणी मे आता है।10. व्यवसाय के रूप में -वर्तमान मेे वैज्ञानिको द्वारा औधोगिक क्षेत्रों मंे नमी जान देने से प्रबन्ध का दबदबा प्रत्येक क्षेत्र मेे बढ गया है। इस प्रकार आज के समय में शैक्षिक क्षेत्र बहुत विस्तृत एवं जटिल होता जा रहा हैं इसलिए शैक्षिक प्रबन्ध भी एक व्यवसाय के रूप में प्रतिष्ठित होता जा रहा है।11. समन्वित-दृष्टिकोण- शिक्षण संस्थानों की प्रगति मानवीय एवं समन्वित दृष्टिकोण पर निर्भर करती हैं, इसके द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति भली-भाॅति सम्भव हैं। शेैक्षिक प्रबन्ध से छात्र-छात्राएं, शिक्षको आदि से सम्बधिंत व्यवस्थाएं होती है। प्रबन्ध के अन्य क्षेत्रों की तुुलना में इस शैक्षिक प्रबन्ध के ज्यादा समन्वित माना गया है।12. अमूर्त- शैक्षिक प्रबन्ध में हमारें कार्यो की सफलता का ज्ञान बहुुत समय बाद लगता है। शैक्षिक प्रबन्ध में बालकों को इतनी सफलता मिली, इसका ज्ञान काफी समय बाद चला पाता हैं, अतः शैक्षिक प्रबन्ध अमूर्त माना जाता है।13. वैज्ञानिक दृष्टिकोण- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तात्पर्य यही है कि हम सभी निर्णय पूर्व धारणाओं से दूर रहकर करें। पूर्व धारणाओं या परम्परागत अवधारणाओं के आधार पर किए गए निर्णय सही नही होते हैं इसलिए विज्ञान में कार्य- कारण सम्बन्धों पर आधारिक ज्ञान को स्थान दिया जाता है जिसमें किसी भी तरह का सन्देह नही किया जाता हैं। इस प्रकार शैक्षिक प्रबन्ध के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक हैं।14. प्रबन्ध एक जन्मजात प्रतिभा- व्यक्ति के वंशानुगत प्रभाव उनकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं यही प्रबन्ध व्यक्ति को नेतृत्व प्रदान करता हैं जिसका प्रभाव आनें वाली भावी पीढियों पर भी पड़ता है।
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