Process of Construction of Knowledge
ज्ञान के निर्माण की अवधारणा प्राचीनकाल से ही समाज में विद्यमान रही है । ज्ञान के निर्माण के विविध रूप समाज में प्राचीनकाल से ही देखने को मिलते हैं । विविध प्रकार के पुस्तकालय एवं विविध प्रकार के ग्रन्थ ज्ञान निर्माण के प्रमुख उदाहरण हैं । भारतीय वेद एवं पुराणों को प्राचीनकालीन ज्ञान की संरचना के रूप में स्वीकार किया जाता है । इसी प्रकार रामायण को भी ज्ञान की संरचना के रूप में स्वीकार किया जाता है । इसमें मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत किया है । आज भी रामायण, वेद एवं पुराणों के आधार पर भारतीय समाज का संचालन होता है ।
वर्तमान समय में ज्ञान के निर्माण का आशय विविध सूचनाओं के संगठन से तथा उनके प्रस्तुतीकरण की विधियों से लिया जाता है । ज्ञान के निर्माण में पुस्तकालय विज्ञान को समाहितकिया जाता है जिसमें एक पुस्तकालय अध्यक्ष विविध प्रकार की पुस्तकों को सूची बनाकर समाहित करता है । ज्ञान के निर्माण का सम्बन्ध दर्शनशास्त्रीय विचारधाराओं , उद्देश्यनिष्ठ जीवन , जीवन समृद्धि , संज्ञानात्मक विकास , भाषायी विकास एवं सामाजिक संरचना से भी होता है । इस प्रकार ज्ञान के निर्माण को एक व्यापक प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है तथा समाज में इसके विविध प्रकार के रूप देखे जाते हैं । जब यही ज्ञान निर्माण सर्वोत्तम रूप में छात्रों के समक्ष उपलब्ध होता है तो छात्रों को इसका लाभ प्राप्त होता है । छात्र सरलता से ज्ञान प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं । ज्ञान के निर्माण को परिभाषित करते हुए विद्वानों ने अपने विचारों को अग्रलिखित रूप में प्रकट किया है
( 1 ) प्रो . एस . के . दुबे के शब्दों में , " ज्ञान के निर्माण का आशय सूचनाओं के संगठनात्मक एवं उपयोगी स्वरूप से है जिसके माध्यम से छात्रों को सर्वांगीण विकास हेतु ज्ञानात्मक सामग्री की उपलब्धता सरलता से होती है तथा छात्र स्वयं बिखरी हुई सूचनाओं एवं अधिगम गतिविधियों को व्यवस्थित करके ज्ञान प्राप्त करता है और स्वयं के सर्वांगीण विकास का पथ प्रशस्त करता है । "
( 2 ) श्रीमती आर . के . शर्मा एवं श्रीमती बरौलिया के अनुसार , " ज्ञान के निर्माण का आशय सूचनाओं के प्रबन्धन , संगठन एवं पुनः प्राप्ति की प्रक्रिया से है जिसमें विज्ञान , तकनीकी , दर्शन एवं सामाजिक व्यवस्थाओं से सम्बन्धित तथ्यों को सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसमें सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया में शिक्षक , शिक्षालय एवं शिक्षार्थी तीनों को ही सहायता मिलती है । "
उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञान का निर्माण एक व्यापक प्रक्रिया है जिसके आधार पर छात्रों द्वारा विविध प्रकार के क्षेत्रों में सत्य एवं वास्तविक तथ्यों को सरलतम रूप में प्राप्त किया जाता है । ज्ञानात्मक निर्माण के आधार पर ही चहुँमुखी विकास की प्रक्रिया सम्पन्न होती है । इसके आधार पर ही बिखरे हुए तथ्यों एवं घटनाओं को क्रमबद्ध एवं सुसंगठित रूप प्रदान किया जाता है । इसके अन्तर्गत प्रदत्त ज्ञान का विभाजन , वर्गीकरण एवं श्रेणीकरण की व्यवस्था की जाती है ।
ज्ञान निर्माण की विशेषताएँ Characteristics of Knowledge Construction
ज्ञान के निर्माण की प्रमुख विशेषताओं के बारे में विद्वानों के विचार एवं परिभाषाओं के माध्यम से स्पष्ट रूप से जाना जाता है । इन सभी विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है
1. सूचनाओं के निर्धारण की प्रक्रिया ( Process of assessment of informa tions ) - ज्ञान के निर्माण के अन्तर्गत विविध प्रकार की सूचनाओं का निर्धारण किया जाता है । यह निर्धारण सामान्य रूप से पुस्तकालय में समावेशित ग्रन्थों की व्यवस्था के आधार पर होता है ; जैसे- एक पुस्तकालय में विविध क्षेत्रों के ज्ञान से सम्बन्धित ग्रन्थ हैं जिनमेंशारीरिक शिक्षा , ज्ञानात्मक शिक्षा , दार्शनिक शिक्षा एवं विज्ञान सम्बन्धी शिक्षा को समाहित किया गया है । इन सभी से सम्बन्धित सूचनाओं को एक क्रम में निर्धारित किया जाता है जिससे इनको आवश्यकता के अनुरूप उपलब्ध कराया जा सके । इसलिये ज्ञान के निर्माण को सूचनाओं के निर्धारण की प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है ।
2. सूचनाओं के समन्वयन की प्रक्रिया ( Process of co - ordination of informa tions ) - सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ एक - दूसरे से सम्बन्धितहोती हैं , जैसे- भौतिक विज्ञान एवं रसायन विज्ञान के ज्ञान का सम्बन्ध गणित से भी पाया जाता है । इसलिये इन तीनों विषयों से सम्बन्धित सूचनाओं एवं पुस्तकों की व्यवस्था एक क्रम में की • जाती है जिसके आधार पर छात्रों को एक ही क्रम में आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध होती है । इसके है । अत : यह माना जाता है कि ज्ञान का निर्माण सूचनाओं के समन्वयन की प्रक्रिया के रूप में है । साथ - साथ शिक्षक द्वारा शिक्षण की प्रक्रिया में भी इन विषयों को सहसम्बन्धित करके पढ़ाया जाता
3. सूचनाओं के संश्लेषण एवं विश्लेषण की प्रक्रिया ( Process of synthesis and analysis of informations ) - ज्ञान के निर्माण में संश्लेषण एवं विश्लेषण की प्रक्रिया को भी सम्पन्न किया जाता है । पुस्तकों में निहित सामग्री का पहले विश्लेषण किया जाता है । इसके पश्चात् एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है , जैसे- भौतिक विज्ञान का प्रमुख सम्बन्ध • गणित से पाया जाता है । गणित का सम्बन्ध गतिज विज्ञान एवं स्थितिज विज्ञान से पाया जाता है । इस प्रकार की स्थिति में प्रत्येक विषय का विश्लेषण किया जाता है । इसके पश्चात् दूसरे विषय के साथ उसका सम्बन्ध जोड़कर एक निश्चित नियम बनाया जाता है । इसस पुस्तकालय व्यवस्था एवं आगे के लिये छात्रों के दिशा - निर्देश में यह उपयोगी रहता है । अतः इसे संश्लेषण एवं विश्लेषण प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है ।
4. सूचनाओं की पुनः प्राप्ति प्रक्रिया के रूप में ( As a process of retrieval of informations ) – कुछ विद्वानों का मानना है कि सूचनाओं की पुन : प्राप्ति ज्ञान के निर्माण का एक प्रमुख अंग है । केन फील्ड ने अपने प्रयोग में बताया कि एक पुस्तकालय व्यवस्था को उसकी पुनः प्राप्ति एवं नियम के अनुसार कार्य करने की गुणवत्ता के रूप में जाना जाता है ; जैसे - एक छात्र पुस्तकालय में पुस्तक प्राप्त करने जाता है तो उसको उसकी आवश्यकता की पुस्तक जो कि उसने एक माह पूर्व पढ़ी थी तुरन्त बिना किसी देर एवं कठिनता के प्राप्त हो जाती है । अत : ज्ञानात्मक निर्माण को पुनः प्राप्ति की प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है । इसमें ज्ञानात्मक ग्रन्थों की उपलब्धि आवश्यकता के अनुरूप पुनः सरलता से की जा सकती है ।
5. ज्ञान का निर्माण पुस्तकालय व्यवस्था के रूप में ( Formation of knowledgeas a library arrangement ) - ज्ञानात्मक निर्माण की प्रक्रिया को पुस्तकालय व्यवस्था के रूप में जाना जाता है । सामान्य रूप से इसमें ज्ञानात्मक सूचनाओं , संज्ञानात्मक सूचनाओं , भाषायी सूचनाओं तथा सामाजिक सूचनाओं को व्यवस्थित रूप में रखा जाता है । जब छात्रों को इसके ज्ञान की आवश्यकता होती है इसको उपलब्ध कराया जाता है । दूसरे शब्दों में , पुस्तकालय की व्यवस्था जितनी अधिक सर्वोत्तम रूप में सम्पन्न होगी उतनी ही अधिक छात्रों की ज्ञान पिपासा शान्त होगी ।
6. ज्ञान का निर्माण एक दार्शनिक प्रक्रिया के रूप में ( Formation of knowledge as a philosophical process ) -ज्ञान के निर्माण को दार्शनिक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है । इसमें विभिन्न प्रकार की दार्शनिक सूचनाओं को क्रमबद्ध एवं संसुगठित रूप में प्रस्तुत किया जाता है ; जैसे - वर्तमान समय में अनेक प्रकार की दार्शनिक विचारधाराएँ प्रचलन में हैं जिनका उद्देश्य छात्रों को ज्ञान के विविध रूपों से परिचित कराना है । आदर्शवादी विचारधारा जहाँ छात्रों को उच्च उद्देश्य का ज्ञान कराती है तो प्रयोजनवादी विचारधारा विविध प्रकार • प्रायोगिक विचारधाराओं को स्पष्ट करती है । इस प्रकार प्रत्येक दार्शनिक विचारधारा संगठित रूप में छात्रों एवं समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली होती है ।
7. ज्ञान का निर्माण उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया के रूप में ( Formation of knowledge as a aimful process ) – सामान्य रूप से विचार किया जाये तो ज्ञान का निर्माण एक उद्देश्यनिष्ठ प्रक्रिया है क्योंकि इसमें ज्ञान का क्रम एक निश्चित उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया है , जैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिये तथा अन्धविश्वासों को दूर करने के लिये विज्ञान सम्बन्धी शिक्षा प्रदान की जाती है तथा आदर्शवादी एवं नैतिक मूल्यों के विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये नैतिक शिक्षा प्रदान की जाती है । इस प्रकार ज्ञान को किसी उद्देश्य विशेष को प्राप्त करने । के लिये तैयार किया जाता है । इसलिये इसे उद्देश्यनिष्ठ प्रक्रिया माना जाता है ।
8. ज्ञान का निर्माण विज्ञान सम्बन्धी सूचनाओं की प्रक्रिया के रूप में ( Formation of knowledge as a process of science related informations ) - ज्ञान निर्माण सम्बन्धी प्रक्रिया को वैज्ञानिक सन्दर्भ में दो रूपों में देखा जाता है । प्रथम ज्ञान सम्बन्धी सूचनाओं को वैज्ञानिक ढंग से विभक्त करके संग्रहीत किया जाता है ; जैसे- कम्प्यूटर में आँकड़ों की सूचना को पृथक् तथा तकनीकी सूचनाओं को पृथक् रूप से संगठित किया जाता है । द्वितीय रूप में विचार किया जाये तो वर्तमान समय में विज्ञान एक महत्त्वपूर्ण विषय है । इसलिये प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान सम्बन्धी प्रयोग , सूचना एवं तथ्य प्रयोग किये जाते हैं । अत : विज्ञान ज्ञान के निर्माण का एक अभिन्न अंग माना जाता है ।
9. ज्ञान का निर्माण तकनीकी सूचनाओं की प्रक्रिया के रूप में ( Formation of knowledge as a process of technical informations ) - ज्ञान के निर्माण का सम्बन्ध वर्तमान समय में तकनीकी ज्ञान एवं सूचनाओं से है । विद्यालय में उपलब्ध होने वाली शिक्षा में तकनीकी सूचनाओं का प्रभाव देखा जाता है । विद्यालय में छात्रों के शिक्षण में शिक्षक द्वारा शिक्षण तकनीकी का प्रयोग किया जाता है । छात्रों को विद्यालय में विविध प्रकार के कौशलों का ज्ञान प्रदान करने के लिये सरल एवं उपयोगी तकनीकी का प्रयोग किया जाता है । इसलिये ज्ञान के निर्माण में विविध क्षेत्रों के ज्ञान से सम्बन्धित तकनीकी एवं उससे सम्बन्धित सूचनाओं का समावेश होता है । इसलिये इसे तकनीकी सूचनाओं की प्रक्रिया माना जाता है ।
10. ज्ञान का निर्माण एक व्यापक प्रक्रिया के रूप में (Formation of knowledge as a broad process) - ज्ञान के निर्माण को एक व्यापक प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसमें ज्ञान से सम्बन्धित सभी पक्षों की क्रमबद्ध व्यवस्था को संगठित रूप में प्रस्तुत किया जाता है । इसी आधार पर छात्रों को विद्यालय में उन सभी तथ्यों का ज्ञान प्राप्त होता है जिनकी आवश्यकता उनको अपने विकास में होती है । जिस प्रकार व्यक्ति के चिन्तन एवं तर्क में वृद्धि होती है ज्ञान का निर्माण भी उसी क्रम में होता है । ज्ञान निर्माण के माध्यम से प्रत्येक तथ्य एवं घटना की सत्यता को ज्ञात किया जाता है । इस प्रकार ज्ञान के निर्माण का क्षेत्र व्यापक होता जाता है ।
11. ज्ञान का निर्माण एक वर्गीकरण की प्रक्रिया के रूप में ( Formation of knowledge as a process of classification ) - ज्ञान निर्माण में प्रत्येक सूचना एवं तथ्यों सम्बन्धी पुस्तकों एवं पत्रिकाओं को पुस्तकालय में विभाजित करके रखा जाता है जिससे आवश्यकता के अनुरूप समय को नष्ट किये बिना ही पुस्तकों की उपलब्धता हो जाये ; जैसे- एक छात्र नैतिक शिक्षा पर पुस्तक पढ़ना चाहता है तो दूसरा छात्र विज्ञान शिक्षा पर पुस्तक पढ़ना चाहता है तो पुस्तकालय में दोनों ही छात्रों की ज्ञान पिपासा की व्यवस्था होनी चाहिये । इसी प्रकार कक्षा कक्ष में भी एक शिक्षक को प्रत्येक छात्र की ज्ञान पिपासा को शान्त करने का प्रयास करना चाहिये । इसलिये ज्ञान के निर्माण को वर्गीकरण की प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है ।
12. ज्ञान का निर्माण एक बौद्धिक ज्ञान की प्रक्रिया के रूप में ( Formation of knowledge as a process of intellectual knowledge ).ज्ञान के निर्माण को बौद्धिक ज्ञान की प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है । सामान्य रूप से जिस प्रकार प्रत्यक्ष रूप में ज्ञान के निर्माण को पुस्तकालय एवं बुक बैंक के माध्यम से संगठित एवं उपयोगी रूप प्रदान किया जाता है । इसी प्रकार स्वतन्त्र रूप से मस्तिष्क में भी ज्ञान की एक संरचना विकसित होती है जो कि प्रत्यक्ष ज्ञान की श्रृंखला की संरचना की भाँति दिखायी नहीं देती है परन्तु उसका अनुमान छात्र का कार्य एवं व्यवहार देखकर लगाया जा सकता है । वर्तमान समय में विविध प्रकार के दार्शनिकों के विचार पुस्तकों के ज्ञान तथा बौद्धिक ज्ञान का समन्वित रूप होते हैं । इस ज्ञान की प्रक्रिया में कुछ ज्ञान व्यक्तिगत एवं बौद्धिक होता है तो कुछ बाह्य स्रोतों से प्राप्त किया जाता है । अत : ज्ञान के निर्माण में बौद्धिक क्षमता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है ।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि ज्ञान का निर्माण एक सूचना विज्ञान है जिसमें विविध प्रकार की घटनाओं , सूचनाओं एवं तथ्यों को संग्रहीत किया जाता है । इन सूचनाओं को संग्रहीत करने में पुस्तक विज्ञान एवं तकनीकी का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । वर्तमान समय में कम्प्यूटर में भी विविध प्रकार की पुस्तकों एवं सूचनाओं को संग्रहीत किया जा सकता है तथा आवश्यकता के अनुरूप खोजा जा सकता है । अत : सूचनाओं के वर्गीकरण एवं प्रस्तुतीकरण का स्वरूप वर्तमान समय में परिवर्तित हो गया है जिससे ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया भी प्रभावित हो गयी है ।
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