सोमवार, 31 मई 2021

निर्देशन की सामूहिक एवं व्यक्तिगत तकनीकी

 
















परामर्श (Counselling)

परामर्श (Counselling)


परामर्श

  • शाब्दिक अर्थ -पूछताछ / विचारो का अदान प्रदान 
  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहकर व्यकित के समक्ष किसी न किसी प्रकार की समस्या का होना स्वाभाविक है इन्हीं समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करने की दिशा में निर्देशन से संबंधित सेवाओं के अन्तर्गत परामर्श सेवा महत्वपूर्ण है। इसलिए परामर्श सेवाओं को निर्देशन सेवाओं का हृदय कहा जाता है। अतः परामर्श के अभाव में निर्देशन का कार्य संभव नहीं हो सकता है। 
  • प्राचीन समय में परामर्श का कार्य सरल एवं सहज था इसलिए शिक्षालयों में शिक्षकों एवं समाज के अन्य लोगों द्वारा परामर्श प्रदान किया जाता है परन्तु इसके विपरित वर्तमान समय जटिल हो गया है। अतः परामर्श प्रक्रिया में परिवर्तन स्वाभाविक है।
  • सन् 1954 में कार्टर वी. गुड़ ने कहा परामर्श अकेले और व्यक्तिगत शैक्षिक व्यावसायिक समस्याओं में सहायता प्रदान करना है जिसमें सभी सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है। 
  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके आधार पर सेवार्थी द्वारा प्रार्थी को सहायता प्रदान की जाती है एवं समस्या समाधान के योग्य बनाया जाता है।

परिभाषाएँ -

1. रूथ स्ट्रेग (Ruth Strang)  - परामर्श (उपबोधन) में आमने-सामने का संबंध होता है जिसमें परामर्श लेने वाला और देने वाला दोनों ही उन्नति की ओर अग्रसर होते है।

2. वैबस्टर शब्दकोष (Webster”s Dictionary) - विचारों का आदान-प्रदान, पारस्परिक तर्क-वितर्क तथा मार्गदर्शन ही परामर्श है। 

3. गस्टेड (Gusted) - परामर्श एक शिक्षण क्रिया है जो व्यक्तियों के बीच सामाजिक वातावरण में होती है। इसका उद्देश्य प्रार्थी को उसके सम्बन्ध में अधिक जानकारी देना और समाज के लिए अधिक उपयोगी 

अतः परामर्श और निर्देशन एक सिक्के के दो पहलु है। परामर्श के बीना निर्देशन व्यर्थ है। परामर्श, निर्देशन की एक केन्द्रिय प्रक्रिया है परामर्श को निर्देशन का हृदय कहा जाता है।

परामर्श एक ऐसी विद्या है जिसमें समस्याग्रस्त व्यक्ति को धीरे-धीरे निडरतापूर्वक संवाद, सक्षमता एवं आत्म संवाद विश्वास के साथ निर्णय लेने की क्षमता एवं समस्या समाधान की योग्यता विकसित की जाती है।

परामर्श की अवधारणा 

आर्थर जे. जोन्स के अनुसार परामर्श की प्रमुख अवधारणाएँ -

1. प्रक्रिया में भाग लेने की इच्छा - विद्यार्थी इन प्रक्रिया में भाग लेने की इच्छा रखता है। विद्यार्थी के पूर्णरूप से भाग लेने पर परामर्श सफल होगा।

2. अनुकूल प्रशिक्षण अनुभव एवं व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रभावशाली - परामर्शदाता के पास अनुकूल प्रशिक्षण अनुभव एवं व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रभावशाली कार्य के लिए है।

3. अनुकूलित परिवेश आवश्यक - परामर्श प्रक्रिया को संचालित करने के लिए सर्वप्रथम अनुकूलित परिवेश का होना आवश्यक है।

4. सामजस्य करने की योग्यता - परामर्शदाता के पास प्रभावशाली कार्य करने के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण, अनुभव, व्यक्तिगत, दृष्टिकोण का होना आवश्यक है तथा विद्यार्थी के साथ सामजस्य करने की योग्यता हो, जिससे उद्देश्यों और लक्ष्यों को निर्धारित करने में सहायता कर सके।

5. किसी विशिष्ट सहायता के आवश्यक - परामर्श इस प्रकार का संबंध प्रदान करे, जो तात्कालिक एवं दीर्घकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। परामर्शदाता उस समय उपलब्ध हो जब सेवार्थी को किसी विशिष्ट सहायता के लिए आवश्यकता हो।

G.W. आलपोर्ट के अनुसार परामर्श की अवधारणा 

1. परामर्श व्यक्ति में परिवर्तन का उत्तरदायित्व लेता है - व्यक्ति व्यवहार को सीखता है और वह सुधार के योग्य होता है। परामर्श व्यक्ति में परिवर्तन का उत्तरदायित्व लेता है और उसमें परिवर्तनों के आधार पर समायोजन करने की क्षमता उत्पन्न करता है।

2. परामर्श सीखने की परिस्थिति है - परामर्श सीखने की परिस्थिति है, जिसमें व्यक्ति जीवन में समायोजन करने की नई विधियों को सीखता है।

परामर्श की आवश्यकता

1. आत्म ज्ञान (स्वयं का मूल्यांकन) - व्यक्ति को स्वयं का मूल्यांकन में सहायता प्रदान करना परामर्श का प्रथम एवं उद्देश्य है व्यक्ति को अपने विषय में जानने अपनी स्वयं की शक्ति योग्यता एवं संभावनाओं के पहचानने हेतु परामर्श की आवश्यकता होती है।

व्यक्ति के आत्मज्ञान के लिए तथा उसके मूल्यांकन हेतु परामर्श की अनेक विधियों का सहारा लिया जाता है। 

2. आत्म स्वीकृति - आत्म स्वीकृति का अर्थ है व्यक्ति द्वारा स्वयं के व्यक्तित्व/प्रतिबिम्ब को स्वीकारना है। कई बार लोग अपने विषय में उचित दृष्टिकोण नहीं बना पाता है। कोई निर्णय लेने में असमर्थ होते है। ऐसे व्यक्तियों को दूसरे व्यक्ति जिस रूप में स्वीकार लेते है वह उसे ही अपना वास्तविक स्वरूप मानने लगे है। किन्तु व्यक्ति का जहां एक-दूसरे व्यक्ति द्वारा स्वीकृत रूप होता है वहां उसको अपने स्वरूप को स्वयं भी स्वीकार करना पड़ता है। अतः व्यक्ति स्वयं के वास्तविक मूल्यांकन के रूप में अपने स्वार्थ स्वरूप को ही स्वीकृति प्रदान करे।

3. सामाजिक सामजस्य - परामर्श का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य व्यक्ति को सामाजिक जीवन में समायोजन के योग्य बनाना भी है। व्यक्ति के समक्ष समाज में उचित समायोजन न कर पाने के कारण अनेक समस्याऐं उत्पन्न हो जाती है। इन समस्याओं से निजात दिलाने में परामर्श की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

निर्देशन और परामर्श में सम्बन्ध/अन्र्त सम्बन्ध/ अन्तर


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                Dr. D R BHATNAGAR 

शनिवार, 29 मई 2021

शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)

 शैक्षिक निर्देशन 
Educational Guidance


निर्देशन(Guidance)

  • निर्देशन का शाब्दिक अर्थ निर्दिष्ट करना, बहलाना, मार्ग दिखाना आदि। 
  • निर्देशन वह सहायता है, जो व्यक्ति की योग्यताओं रूचियों, क्षमताओं, समस्याओं आदि को समझ कर उसे इस उद्देश्य से दी जाती है।
  • निर्देशन द्वारा समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता बल्कि व्यक्ति को समस्या का समाधान करने के योग्य बनाया जाता है। 
  • विशिष्ट क्षेत्रों में कियाग या पथ प्रदर्शन उस विशिष्ट क्षेत्र से संबंधित निर्देशन कहा जा सकता है। यह शब्द सभी प्रकार की शिक्षा में जुड़ा हैं - औपचारिक, अनौपचारिक, निरोपचारिक एवं व्यावसायिक शिक्षा आदि जिसमें व्यक्ति की सहायता करना ही उद्देश्य होता है ताकि वह अपने पर्यावरण में भावात्मक रूप से समायोजन कर सके। 
  • एक अधिक अनुभवी व्यक्ति द्वारा कम अनुभवी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से कुछ जटिल/बड़ी समस्याओं को हल करने में सहायता दी जाती है।
शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)

परिभाषाएँ -

1.कार्टर वी गुड़ - निर्देशन छात्रों /व्यक्तियों को ज्ञान या विवेक प्राप्त करने में सहायता देने और आत्म निर्देशन की दिशा में अग्रसर करने की दबाव या आदेश से युक्त व्यवस्थित सहायता है। 

2.स्किनर के अनुसार - नवयुवकों को अपने प्रति, दूसरों के प्रति तथा परिस्थितियों के प्रति समायोजन में सहायता करने की प्रक्रिया निर्देशन है।

3.मुदालियर (डाॅ. ए. लक्ष्मण स्वामी) आयोग - निर्देशन छात्र एवं छात्राओं के अपने भविष्य के विवेकपूर्ण नियोजन हेतु दी जाने वाली सहायता की वह कठिन कला है जो उनके स्वयं के संबंधित तथ्यों को पूर्ण जानकारी तथा उस विश्व के सम्बन्ध में जिसमें वह रहत है तथा कार्य करता है, के ज्ञान के आधार पर आधारित है।

    परिभाषाओं के आधार पर निर्देशन व्यक्तियों को समस्याओं के संबंध में सहायता देने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति को शैक्षिक, व्यावसायिक, मनोरंजन, सामाजिक सेवाओं और समस्त मानवीय क्रियाओं को तैयार करने में, उनमें प्रवेश पाने में और सफलता एवं उन्नति दिलाने में सहायता देती है।

    अतः निर्देशन एक सेवा है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को उसकी पूर्ण परिपक्वता प्राप्त करने में सहायता करना है ताकि वह समाज की सेवा कर सकें।

    शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थियों में स्कूली वातावरण के साथ सामजस्य स्थापित करने की योग्यता का विकास करना तथा विद्यार्थी में आवश्यक जागरूकता एवं संवेदनशीलता पैदा करना ताकि वे उचित अधिगम लक्ष्यों, उपकरणों, परिस्थितियों आदि का स्वयं चयन कर सके।

जाॅन्स के अनुसार - शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध विद्यालय पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय और विद्यालय चयन तथा अनुकूलन हेतु छात्रों को दी जाने वाली सहायता से है।

शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता (Need of Guidance )

  • शिक्षा और निर्देशन के पारस्परिक सम्बन्ध एवं यथेष्ट विकास के लिए शिक्षा के क्षेत्र में निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। 
  • जीवन और संस्कृति, व्यावसाय एवं धम्र सभी के पुराने मानदण्ड तेजी से बदल रहे है, जिसके कारण निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक अनुभव की जा रही है। 
  • व्यक्ति और समाज की दृष्टि से निर्देशन के आधारभूत कारणों को दो दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक (निर्देशन की आवश्यकता दो कारणों से नजर आती है। सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक)

निर्देशन का समाजशास्त्रीय आधार 

1. व्यक्ति के मौलिक महत्व की स्वीकृति के लिए।

2. मानवीय क्षमता का समुचित उपयोग एवं उसका संरक्षण के लिए।

3. यांत्रिक सभ्यता के विकास के कारण तथा सामाजिक आवश्यकताओं का जटिल होना।

4. विज्ञान की उन्नति से समाज के बदलते मानदण्ड और उससे उत्पन्न नई परिस्थितियों

5. कार्यो एवं सेवाओं में विशेषीकरण की बढ़ती हुई प्रवृति के लिए।

6. उचित नियोजन की आवश्यकता।

7. स्त्रियों के लिए रोजगार की आवश्यकता के लिए।

8. शिक्षा संस्थाओं में विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या

9. निर्देशन के बीना जीवन में प्रगति असंभव है।

10. प्रत्येक व्यक्ति मूलतः अच्छा है बुरी संगत में पढ़क रवह बुराई को अपनाता है।

11. प्रत्येक व्यक्ति अनन्य (विशेष) है उसका वह गुण उसे जीवन और समाज में प्रगति करने की पे्ररणा प्रदान करता है।

12. प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रूचि के अनुसार कार्य करने की सुविधा आवश्यक है।

13. प्रत्येक व्यक्ति में समायोजन करने की क्षमता होनी चाहिए।

निर्देशन का मनोवैज्ञानिक आधार 

1. व्यक्तिगत भिन्नताओं का महत्व - कोई भी दो व्यक्ति पूर्णतः समान नहीं होते। उसका शारीरिक गठन, विकास में अन्तर, रूचि, बुद्धि, दृष्टिकोण एवं मानसिक विकास में अन्तर पाया जाता है। व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों, स्वभाव एवं क्षमताओं के अनुरूप, शैक्षिक एवं व्यावसायिक क्षेत्रों में उचित समायोजन के लिए निर्देशन आवश्यक होता है।

2. एक ही व्यक्ति की विभिन्न विषयों एवं क्षेत्रों में प्रगति सम्बन्धी भिन्नता निर्देशन सेवा द्वारा दिये गये मूल्यांकन एवं परीक्षण से एक व्यक्ति की विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति मे अन्तर किया जा सकता है। गणित में अच्छे अंक तो भ्पेजवतल - स्ंदहनंहम में नहीं, कोई भ्पेजवतल में तो कोई डंजीे में कम। इस प्रकार भिन्नता को ध्यान में रखकर निर्देशन प्रदान किया जा सकता है।

3. व्यक्ति को संतोष प्रदान करने समाज में समुचित समायोजन की आवश्यकता निर्देशन के अभाव में शिक्षा की व्यवस्था इतनी संगठित नहीं हो पाती कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचित और योग्यता के अनुरूप व्यावसायिक चुनाव करने में सफल हो सके।

4. व्यक्ति की भावात्मक समस्याएँ - समाज में व्यक्ति का भावात्मक समायोजन समुचित रूप से हो सके इसके लिए निर्देशन सहायक होता है अधिकांश बच्चे पारिवारिक वातावरण में भावात्मक समायोजन की समस्या का अनुभव करते है। भावात्मक समस्याओं का जन्म व्यक्ति के जीवन में अन्य क्षेत्रों में उपस्थित होने वाली कठिनाईयों से होता है। निर्देशन व्यक्ति की उन कठिनाईयों को हल खोजने में उसकी सहायता कर सकता है।

5. व्यक्तित्व के उचित विकास की आवश्यकता - व्यक्ति का शरीर और मन स्वभाव और अर्जित व्यवहार इत्यादि सभी कुछ व्यक्ति के सम्पूर्ण निजी अस्तित्व के साथ समाहित है। व्यक्तित्व में अनुवांशिकता से प्राप्त गुणों को प्रकाश लाने एवं समाज के बीच व्यक्ति के प्रभावशाली व्यवहार को विकसित करने में निर्देशन का महत्व है।

6. पाठ्यक्रम चयन में 

7. शैक्षिक उपलब्धि स्तर बनाये रखने में 

8. अनुशासनहीनता दूर करने में

9. व्यवसाय चयन में

10. अपव्यय एवं अवरोधन रोकन में 

11. व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार शिक्षा देने में

12. सार्थक अधिगम स्तम्भ पहचान करने में 

13. व्यावहारिकता 

14. लचीलापन

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