1.सम्प्रेषक (Communicator)-आज का युग वैज्ञानिक युग है इसमे यह आवश्यक नही कि प्रत्येक व्यक्ति ही हो सम्प्रेषण पत्र, पत्रिका, अथवा मशीन किसी के द्वारा भी हो सकता है।2.सन्देश (Message)- व्यक्ति द्वारा प्रसारित विचार ही सन्देश होता है यह शाब्दिक तथा अशाब्दिक उभय रूप में हो सकता है जैसे कक्षा में छात्र को अध्यापक (बैठ जाओ) यह कहकर भी बैठा सकता है और मौन स्वीकृती गर्दन हिलाकर भी सन्देश दे सकता है।3.संचार माध्यम (Communication Medium)- संचार माध्यम या चेनल से अभिप्राय उस साधन से है जिसके द्वारा कोई सन्देश, सन्देशवाहक से सन्देश ग्राहक तक पहुँचाना है यह पथ है जिसमें सन्देश भौतिक रूप से प्रेसित होता है जैसे टेलीग्राम में वह वायर जिस पर सन्देश भेजा जाता है। रेडियों वार्ता में रेडियों स्टेशन तथा स्टुडियों है इसी प्रकार किसी लेख के द्वारा समाचार पत्र या मेगजीन सम्प्रेषण माध्यम होता है।4.सन्देश ग्राहक (Communication Receiver)- यह सन्देश प्राप्त करने वाला होता है। सन्देश प्राप्ति वह कही विधियों से कर सकता है जैसे समाचार सुनकर समाचार पढ़कर अथवरा देखकर। अतः सन्देश ग्राहक को भी कहते है।5.प्रतिक्रिया (Counteraction)- प्रतिक्रिया से तात्पर्य संवाददाता द्वारा प्रेषित संवाद का प्राप्तकर्त्ता पर पड़ने वाले प्रभाव के सामने आने से है सम्प्रेषण मात्र संवाद प्रस्तुत करना ही नही अपितु उसका उचित/सही प्रभाव भी संवाद प्राप्तकत्र्ता (व्यक्ति समूह) पर पड़ना चाहिए। सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रतिक्रिया को महत्वपूर्ण तत्व माना गया है क्योंकि यदि संवाद प्राप्तककर्त्ता निर्देशानुसार परिणाम न दे तो सम्प्रेषण प्रभावहीन माना जाएगा।6.शिक्षण युक्तिया (Teaching Tactics)- शिक्षण व्यवस्था को कक्षा-कक्ष में प्रभावी और महत्वपूर्ण बनाने हेतु शिक्षक मात्र पढ़कर ही नही पढ़ाता अपितु अपने उद्देश्य को पाने हेतु उपयुक्त शिक्षण युक्तियो को व शिक्षण आव्यूह को काम में लेता है शिक्षण युक्तियों का सामान्य तात्पर्य अध्यापक या शिक्षक द्वारा छात्रों के समक्ष प्रयुक्त कि जाने वाली उचित विधियो से है इन उचित विधियों में अपने योग्यता वह कुशलता का प्रयुक्त करता है ये युक्तियों छात्रों के लिए सन्देश सुग्राहाय व सरल बन जाता है। इस प्रकार शिक्षक का सम्प्रेषण कार्य संचालित होता है।7.शिक्षण आव्यूह (Teaching strategy)-शिक्षण युक्तियों के समानार्थी सम्प्रेषण के अन्तर्गत एक अन्य शब्द शिक्षण आव्युह प्रयुक्त किया जाता है शिक्षण आव्यूह युक्तियों से कुछ भिन्न अध्यापक कि व्यवसाय कुशलताओ को काम में ली जाने वाली पूर्व योजनाओं (रणनीति) को कहा जाता है।
स्टोन्स एंव मौरिस के अनुसार- ’’शिक्षण युक्ति लक्ष्य से सम्बन्धित होती है। जो शिक्षक के व्यवहार को प्रभावित करती है। इससे वे तरिके सम्मिलित होते है जो शिक्षक अनुदेशनात्मक परिस्थितियों में प्रयोग करता है जिनसे यह ज्ञान होता है कि कक्षा के छात्रों में अध्यापक विभिन्न प्रकार क अनुदेशात्मक क्रियाओं को किस प्रकार समझता है कि दोनो में किस प्रकार यह सम्प्रेसित होता है शिक्षण युक्ति शिक्षण नीति से अधिक व्यापक है इसलिए शिक्षण की एक युक्ति शिक्षण नीति से अधिक व्यापक है इसलिए शिक्षण की एक युक्ति को कई शिक्षण नीतियों मे प्रयुक्त किया जा सकता है।’’
8.अधिगम संरचना (Learning Structure) - वर्तमान समय में अधिगम सिद्धान्त के स्थान पर अधिगम संरचना को अधिक महत्व दिया जाता है।
राँबर्ट गैने के अनुसार- ’’शिक्षण का अर्थ उन अधिगम परिस्थितियों को व्यवस्थित करना है जो अधिगम कत्र्ता के लिये ग्राह्म है इन परिस्थितियों के स्तरानुकूल क्रम में निर्मित करने की आवश्यकता है प्रत्येक स्तर वास्तव में अधिगमकर्त्ता द्वारा अर्जित योग्यताए है जिनको स्थायी के लिए ये वाछित है।’’
शिक्षण अधिगम में सम्प्रेषण की उपयोगिता
(Utility of communication in teaching learning)
शिक्षण अधिगम में सम्प्रेषण की आदत ही उपयोगिता होती है। इसे निम्न आधार पर समझा जा सकता है-
1.कक्षीस अनुदेशन-सम्प्रेषण सिद्धान्तों का कक्षीय अनुदेशन में उपयोगी होता है।
2.अधिगम-सामूहिक व व्यक्तिगत अधिगम के लिए सम्प्रेषण सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है।
3.उपचारात्मक सामुहिक -निदानात्मक उपचारात्मक अनुदेशन व व्यक्तिगत अनुदेशन सामग्री के विकास के लिए सम्प्रेषण सिद्धान्तो का प्रयोग किया जाता है। पृष्ठपोषण का प्रयोग किया जाता है।
4.स्व-शिक्षण- सम्प्रेषण अनुदेशन स्वशिक्षा व स्वमुल्याकंन का यर्थात्वत आधार प्रदान करता है। अभिक्रमित अनुदेशात्मक सामाग्री के विकास के लिए पृष्ठपोषण का प्रयोग किया जाता है।
5.नवीन विधिया- अन्तक्रिया विश्लेषण सुक्ष्मशिक्षण यथार्थ के पृष्ठपोषण के सिद्धान्त पर आधारित है।
6.अध्यापक शिक्षा- सम्प्रेषण के पृष्ठ पोषण सिद्धान्त के प्रयोग से अध्यापक शिक्षा के कार्यक्रम को सुधारा जा सकता है।
7.शिक्षण विश्लेषण- शिक्षण में अदा-प्रदा प्रक्रिया के तत्व अध्यापक को शिक्षण के वैज्ञानिक विश्लेषण की योग्यता प्रदान करते है।
8.अधिगम नियन्त्रण- सम्प्रेषण सिद्धान्त का प्रयोग करके अधिगम को पूर्णतया नियन्त्रण किया जा सकता है।
9.नियन्त्रण एंव सम्प्रेषण- सम्प्रेषण विधि के सिद्धान्तों के प्रयोग विधि द्वारा शिक्षण में नियंन्त्रण व सम्प्रेषण तथा अध्यापक शिक्षा प्रक्रिया को सुधारा जा सकता है।
10.प्रशिक्षण कार्यक्रम- जटिल व्यवहार के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करन में सम्प्रेषण अवधारणा अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
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Dr. D R BHATNAGAR
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