गुरुवार, 22 जुलाई 2021

निर्देशन- विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए (Need of Guidance for children with special needs )

विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता
Need of Guidance & counselling for children with special needs 


    इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न है यहां तक कि जुड़वा बच्चे भी भिन्नता देखने को मिलती है, इसी प्रकार शारीरिक रचना, बुद्धि, सामाजिक-आर्थिक स्तर, संवेगात्मक स्थिति सभी से भिन्नता होती है पर जब यह भिन्नता इतनी अधिक हो जाती है तो उन लोगों को सामान्य कार्य करने के लिए भी सहायता की आवश्यकता हो जाती है तो हम उन्हें विशिष्ट आवश्यकता (विशेष समूह) वाला समूह कहते है।
कारण 
1. अभिभावक द्वारा अपने बच्चे को विशेष न मानना - ऐसे बच्चों के अभिभावक ना तो ऐसे बच्चों को स्वीकार करने को तैयार होते है ना ये मानने को तैयार होते है कि उनका बच्चा विशेष है वे उसे अभिशाप, पापों का दण्ड जैसे नकारात्मक भाव अपने बालक के प्रति रखते है खुद को एवं बालकों को कोसते है ऐसे में सबसे पहले अभिभावकों के परामर्श की आवश्यकता होती है ताकि वे ऐसे बालक को स्वीकार कर पाए तथा उसकी जरूरतों को समझे।
2. अध्यापक सहयोग देने की समूचित विधियों से परिचित नहीं होते हैं।
3. संस्थानों में समूचित साधनों एवं सुविधाओं का अभाव होता हैं।
4. विद्यार्थियों में हीनता एवं आत्मविश्वास की कमी होना हैं।
5. सम्मान पूर्वक जीवन जीने हेतु व्यावसायिक परामर्श की आवश्यकता होती हैं।
6. बालको के अनुरूप शिक्षण विधि का उपयोग के लिए।
विशिष्ट आवश्यकता (विलक्षणता) वाले बालको का वर्गीकरण 
विलक्षणता के आधार पर ऐसे विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों को 4 वर्गो में वर्गीकृत किया जाता है-

    असाधारण (विशिष्ट आवश्यकता) बालक से तात्पर्य उन बालकों से है जो किसी प्रकार से सामान्य बालकों से विचलन (अलग) प्रदर्शित करते है।



संज्ञानात्मक विलक्षणता
    वे सभी बालक जो अत्यधिक प्रतिभाशाली है, या मानसिक रूप से विमंदित है, कम उपलब्धि प्राप्त करने वाले या धीमी गति से सीखने वाले, वे सभी इसी श्रेणी के अन्तर्गत रखे जाते है- 
    अत्यधिक सृजनात्मक बालकों को भी विलक्षण बालकों की श्रेणी में रखा जाता है इस प्रकार इस श्रेणी में पांच प्रकार के बालकों को रखा गया है इसमें वे बालक आते है जो सामान्य सभाव्यता वक्र में दोनों तरफ सामान्य रूप से विचलित होते है। यह पांच प्रकार हैं-

1.प्रतिभाशाली बालक (BRILLIANT CHILD)

    ‘‘टरमैन’’ के अनुसार वे बालक जिनकी बुद्धिलब्धि 140 या उससे अधिक है तथा जो चिन्तन से क्षमता युक्त है प्रतिभाशाली बालक कहलाते है इन बालको का प्रदर्शन पढ़ाई व अन्य क्षेत्रों में भी श्रेष्ठ होता है। 
    ये बच्चे बुद्धि में औसत बच्चों से अत्याधिक उच्च होते है। इसलिए चीजों को आसानी से समझ व सीख लेते है सामान्य बच्चों से कम समय व कम प्रयास में। इसलिए इन बच्चों को अनेक सामाजिक, भावनात्मक व समायोजन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं।

प्रतिभाशाली बालकों के लिए निर्देशन
1. विद्यालयों में शीघ्र प्रवेश दिया जाए।
2. सीधे उच्च कक्षाओं में प्रवेश दिया जाए या एक वर्ष में दो कक्षा एक साथ या कुछ कक्षा छोड़ने की अनुमति दी जाए या अपनी उम्र से ऊँची कक्षा की परीाा देने का अधिकार दिया जाए।
3. अपने पंसद के विषय में स्वयं निर्धारित शीर्षक पर गहन अधिगम के छूट दी जाए।
4. ऐसे बालकों के लिए कुछ विशेष कक्षाओं की व्यवस्था की जा सकती है।
5. विद्यालयी मूल विषयों के साथ अन्य और विषय पढ़ने की छूट दी जा सकती है।
6. पाठ्यक्रम में उच्च स्तरीय चिंतन को समाहित किया जाए।
7. व्यक्तित्व विकास कार्यशालाओं को आयोजन कर विकास में सहायता प्रदान की जा सकती है।
8. ऐसे बालकों को पढ़ाने के लिए प्रतिभाशाली अध्यापकों का प्रबन्ध हो ताकि वे बालक अपनी जिज्ञासा शांत कर सकें।
9. ऐसे बालकों को कक्षा में कुछ अन्य जिम्मेदारियां दी जाए।
10. सेमीनार, वर्कशाॅप में भाग लेने के अवसर प्रदान किये जाए।
11. विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे प्रश्नोतरी, वाद-विवाद, सामान्य ज्ञान में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
12. खुले प्रश्न पूछे जाए।

 2.सृजनात्मक बालक(CREATIVE CHILD)

ऐसे बालक जो नवीन, मौलिक व विलक्षण सोचने की क्षमता युक्त होते है सृजनात्मक बालकों की श्रेणी में आते है। इनमें प्रवाहिता, लचीलापन व मौलिकता का गुण होता है, सृजनात्मकता के ये तीनों ही तत्वों का विकास संरचनात्मक विद्यालयी प्रशिक्षण व कठोर पारिवारिक अनुशासन से बाधित होता है। संसार में व्याप्त सुन्दरता चाहे वह आविष्कारों को रूप में हो, कविता, कहानी, उपन्यास या चित्रकारी के रूप में इन्हीं सृजनात्मक लोगों की वजह से है।

सृजनात्मक बालकों के लिए निर्देशन

i. मस्तिष्कीय तुफान - अध्यापक द्वारा किसी विषय समस्या है या किसी वस्तु के उपयोग के लिए जितने अधिक विचार प्रस्तुत किये जा सकते हो प्रस्तुत करने पर बल दिया जाए ताकि सृजनात्मक विकसित कि जा सके। यहां पर अध्यापक को चाहिए कि वह हर विचार का सम्मान करें, बालक को अधिक से अधिक विचार प्रस्तुत करने के लिए अभिप्रेरित करे।
ii. सिनेटिक्स - यह विधि विलियम गाॅर्डन द्वारा विकसित की गई, इस विधि का प्रयोग मुख्यतः जटिल यांत्रिक समस्याओं का हल कर पाने हेतु किया जाता है। इसमें भी समस्याओं का वैकल्पित समाधान ढूढ़ पाता है।
iii. भूमिका अदा करना - इसका उपयोग कर बालकों को ऐसे अनुभव प्रदान किये जा सकते है जो वे सामान्यतः वास्तविक जीवन में नहीं प्राप्त कर पाते हैं। सोचने का अवसर प्राप्त होता है जिससे उसमे बहुआयामी चिन्तन का विकास होता है।
iv. लक्षणों को सुचीबद्ध करना - यह किसी विशेष उत्पाद सेवा य क्रिया में सुधार का महत्वपूर्ण तरीका है उदाहरणार्थ- चम्मच का सामान्य उपयोग खाना-खाना है पर इसका अन्य उपयोग ढक्कन खोलने में भी किया जा सकता है। इस प्रकार वस्तु की विशेषता को बड़ा दिया जाता है।

3.कम उपलब्धि वाले बालक(UNDERACHIEVING CHILD)

    कुछ बालक विद्यालय में अपनी क्षमताओं से कम शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त करते है वे बालक इस श्रेणी में आते है। ये बालक अपनी बुद्धिलब्धि के अनुरूप अपेक्षित उपलब्धि के स्तर को प्राप्त नहीं कर पाते हैं व उसमें निम्न स्तरीय निष्पत्ति हाती है।

कम उपलब्धि बालको के लिए निर्देशन 

    कम उपलब्धि प्राप्त बालक विद्यालय में निष्पत्ति के आधार पर संज्ञानात्मक विलक्षणता को एक और समूह में विभाजित किया है, जो बालक जिनकी शैक्षिक निष्पत्ति उनकी क्षमता की तुलना में कम होती है उन्हें हम कम उपलब्धि वाले बालक कहते है। 
    बालक के विद्यालयी अंको व बुद्धिलब्धि बालकों में तुलना कर कम-उपलब्धि बालकों का पता लगाया जा सकता है। कम उपलब्धि के अनेक कारण हो सकते है जैसे विषय या पढ़ाई में रूचि का ना होना, अच्छा प्रदर्शन करने की अभिप्रेरणा का अभाव, गलत या अप्रभावी अध्ययन आदते, साथ ही घर का माहौल या विद्यालय का वातावरण भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते है।
1. बालक खुद का मूल्यांकन स्वयं कर सके ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन विद्यालय में किया जाए।
2. ऐसे बालकों को कार्य के तुरन्त पश्चात् उनके द्वारा किये गए कार्य के निष्पादन की जानकारी प्रदान की जाए ताकि वे विश्लेषण कर अपने निष्पादन को सुधार सके।
3. कम निष्पादन से जुडे़ कारकों की पहचान के लिए अभिप्रेरित किया जाए।
4. अच्छी अध्ययन आदतों के विकास के लिए कक्षा में वार्ता की जा सकती है।
5. समूह परामर्श द्वारा अच्छे निष्पादन के लिए पे्ररित किया जाए।
6. व्यक्तिगत परामर्श प्रदान किया जाए।
7. स्वयं छोटे-छोटे लक्ष्य बनाकर उन्हें प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरित किया जाए।
8. सहपाठियों से पढ़ाई में सहायता लेने को अभिप्रेरित किया जाए। साथ ही सहपाठियों को सहायता करने हेतु अभिपे्ररित किया जाए।
9. अध्यापक-अभिभावक वार्ता में ऐसे बालकों के अभिभावकों को नियमित रूप से बुलाया जाए, जहाँ अध्यापकों द्वारा अभिभावकों को बालक की इस समस्या से परिचित कराया जाए। साथ ही अभिभावकों को इस समस्या में सहायता हेतु वे किस प्रकार योगदान दे सकते है ये बताया जाए। 

                     4.मंद गति से सीखने वाले बालक (SLOW LEARNER)

    इन बालकों की बुद्धिलब्धि 81 से 90 होती है। इन्हें सीखने में सामान्य बच्चों को ज्यादा समय लगता है इसलिए इन्हें मंद गति से सीखने वाला बालक कहा जाता है।

मंदगति से सीखने वाले बालकों के लिए निर्देशन

1. ऐसे बच्चों को व्यक्तिपरक देखभाल की आवश्यकता होती हैं।
2. एक बार में एक ही आदेश या सूचना दी जानी चाहिए।
3. जो भी सूचना दी जाए वह बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए।
4. सूचनाएं अन्तविरोधी नहीं होनी चाहिए।
5. पढ़ाने में अधिक से अधिक संवेदी सूचनाओं का उपयोग किया जाए।
6. अध्ययन अनुभवों का विस्तार किया जाए जैसे- अगर शिक्षक फूल के बारे में समझाना चाहता है। तो कक्षा में फूल को साथ में लाकर उसके साथ फूल का सम्प्रत्यय समझा जा सकता है।
7. अगर वास्तविक चीजें उपलब्ध ना हो तो तस्वीरे दिखा कर भी अनुभव को बढ़ाया जा सकता है।
8. ऐसे बालकों को उनके निम्न निष्पादन के कारण पहचानने में मदद की जानी चाहिए।
9. इन बालकों के अभिभावकों को नियमित रूप से अध्यापक-अभिभावक मुलाकात में बुलाना चाहिए ताकि इन विद्यार्थियों की समस्याओं पर बात की जा सकें।
10. व्यक्तिगत परामर्श प्रदान किया जाए।
11. ‘‘अध्ययन आदतों’’ में सुधार का प्रशिक्षण देना चाहिए।

                    5.मानसिक रूप से विमंदित बालक (MENTALLY RETARDED CHILD)

    इन बालकों की बुद्धिलब्धि 75 से भी कम होती है यह मस्तिष्क की एक अवस्था है जिसे किसी भी इलाज द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है। वे बच्चे जिनकी बुद्धिलब्धि 50-75 के मध्य होती है। शिक्षित किये जा सकते है पर जिन बालकों की बुद्धिलब्धि 25 से 50 के मध्य होती है केवल प्रशिक्षित किये जा सकते है ताकि वे अपना दैनिक कार्य स्वयं कर सके। इन बालकों में निश्चित रूप से समायोगी व्यवहार में कमी के साथ सार्थक रूप से औसत बौद्धिक व मानसिक हास देखने को मिलता है। मानसिक रूप से दुर्बल बालक अपनी उम्र के अनुसार समायोजी व्यवहार नहीं कर पाते है तथा इनमें कम से कम समायोजी कौशल के दो क्षेत्रों में प्रभावशाल रूप से काफी चिंताजनक होती है जैसे - संचार, आत्म देख रेख, घरेलू जीवन, शैक्षिक कौशल, खाद्य तथा सुरक्षा, सामाजिक कौशल आत्म निर्देश आदि।

मानसिक रूप से विमंदित बालकों के लिए निर्देशन

1. पारिवारिक परामर्श दिया जाए ताकि ऐसे बच्चों के अभिभावक सर्वप्रथम अपने बच्चों को स्वीकार कर सके, साथ ही उन्हें इन बच्चों की विशेष आवश्यकताओं, समस्याओं व इनके साथ प्रभावशाली रूप से कार्य करने के तरीको की जानकारी व प्रशिक्षण दिया जा सके।
2. किसी भी पुनर्वास या सामाजिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफलता के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता अभिभावकों द्वारा उन्हें स्वीकार किया जाना है क्योंकि जब अभिभावक बच्चों को स्वीकार तभी वे उनके लिए धनात्मक रूप से उनके विकास में योगदान दे पाएगें।
3. इन बालकों को कार्य करने के लिए कोई भी निर्देश व्यक्तिगत रूप से दिया जाना चाहिए।
4. इन्हें सीखाने के लिए उन गतिविधियों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाना चाहिए जिनमें वे कुछ अपने हार्थो द्वारा करके सीख सके।
5. इन बच्चों की अमूर्त बुद्धि कम होती है इसलिए सिखाने के लिए ठोस वस्तुओं, वास्तविक जीवन की समस्याएं उदाहरण द्वारा शिक्षित किया जाना आवश्यक है।
6. इन बालकों में एकाग्रता की शक्ति कम होती है। अतः कालाशों का समय कम होना चाहिए।

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Dr. D R BHATNAGAR 

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