रविवार, 8 जनवरी 2023

सूक्ष्म-शिक्षण (Micro Teaching)

 सूक्ष्म-शिक्षण (Micro Teaching)

 

    सूक्ष्म-शिक्षण वास्तविक कक्षा शिक्षण का लघु व सरलीकृत रूप है। सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा वास्तविक शिक्षण की जटिलताओं को कम करने का प्रयास किया जाता है। 1961 में सर्वप्रथम स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोध छात्र कीथ एचीसन ने डाॅ. राॅबर्ट बुश और डाॅ. ऐलन के निदेर्षन में कार्य करते हुये सूक्ष्म शिक्षण नामक नई शिक्षण पद्धति का विकास किया। वीडियों टेप-रिकार्डर के आविष्कार के बाद उसे पृष्ठ-पोषक के रूप में उपयोग में लाया गया। उसके बाद हैरी गेरीसन ने भी वीडियो-टेप रिकार्डर को अनुकरणीय शिक्षण एवं मानव-उपयोगी शिक्षण में महत्त्वपूर्ण पाया साथ ही कैलन-बैक ने भी सूक्ष्म-शिक्षण को समय की दृष्टि से इसे प्रभावशाली बनाया।

सूक्ष्म-शिक्षण का अर्थ व परिभाषा

सूक्ष्म-शिक्षण के अर्थ व परिभाषा को हम निम्न कथनों से समझ सकते है-

डी ऐलन के अनुसार,’’सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षा का एक लघु रूप होता है। जिसमें कक्षा का आकार व समय भी कम होता है।’’

अरविन के अनुसार, ’’सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक कक्षा शिक्षण की अपेक्षा एक अनुकरणीय शिक्षण है।’’

किलिफ के अनुसार,’’सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक प्रशिक्षण की एक प्रक्रिया है जिसमें कक्षा का आकार/शिक्षण कालां तथा प्रकरण सभी छोटे होते है।’’

प्रो. नरेन्द्र वैधा के अनुसार,’’सूक्ष्म शिक्षण वह सम्पादकीय शिक्षण स्थिति है जहां वास्तविक कक्षा शिक्षण की जटिल स्थितियाँ पर्याप्त कम हो जाती है । इसके साथ ही शिक्षण अभ्यास की तुलना में पृष्ठ-पोषण की मात्रा बढ़ जाती है।’’

ऐलन के अनुसार, ’’ सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है, परन्तु इसका उद्देश्य विद्यार्थियों की योग्यता का विकास न होकर उनमें शिक्षण कौशल का विकास होना होता है। शिक्षण अभ्यास में प्रतिपुष्टि साधनों वीडियों, टेप-रिकाॅर्डर व अन्य साधनों का प्रयोग करके शिक्षण व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाया जाता है।’’

आर.एन.बु के अनुसार,’’सूक्ष्म शिक्षण अध्यापन शिक्षा की वह प्रविधि है जो शिक्षक को स्पष्ट रूप से परिभाषित शिक्षण कौशल के आधार पर निर्मित लघु पाठ को कुछ छात्रों को पढ़ाने का अवसर प्रदान करती हे।’’

मैक कालम के अनुसार, ’’ सूक्ष्म शिक्षण-अध्यापन अभ्यास से पूर्व शिक्षक-प्रशिक्षण के शिक्षण कौशल को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। यह विधि सेवा पूर्व या सेवारत शिक्षको को शिक्षण कौशल के विकास या सुधार में काम ली जाती है।’’

उपरोक्त परिभाषाओं के अनुसार हम निम्न निष्कर्ष निकाल सकते है-

1. शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में सूक्ष्म-शिक्षण का एक नया प्रयोग है।

2. वास्तविक शिक्षण की जटिलताओं व कठिनता को कम करने का यह सूक्ष्म व सरल साधन है।

3. वास्तविक शिक्षण कई शिक्षण कौशलों का योग होता है।

सूक्ष्म-शिक्षण चक्र का अर्थ व परिभाषा

    चक्र-व्यूह शब्द की उत्पत्ति सेना की गतिविधियों तथा कार्य-प्रणाली के नियोजन व निर्देन की कला तथा विज्ञान से हुआ है। लेकिन अब इस शब्द का उपयोगी दायरा बढ़ गया है। इसका मुख्य लक्ष्य निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति करना हैं।

    व्यूह रचना समय व स्थान के अनुसार परिवर्तनशील है। शिक्षक के शिक्षण कार्य की सफलता कुशल चक्रव्यूहों पर निर्भर करती है।

ई. स्टोन्स तथा एस. मौरिस के अनुसार, ’’शिक्षण व्यूह-रचना पाठ की एक सामान्य योजना है। जिसमें कार्य की सफलता ,संरचना अनुदेशनात्मक लक्ष्यों में छात्रों का अपेक्षित व्यवहार और व्यूह-रचना का प्रयोजन करने के लिये आवश्यक नियोजन युक्तियों की रूपरेखा शामिल है।’’

आई. के . डेविस अनुसार, ’’शिक्षण व्यूह-रचना अनुदेशन की व्यापक विधि है।’’

सूक्ष्म-शिक्षण चक्र की अवधारणा

    कक्षा शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है। शिक्षण कार्य करते हुये शिक्षक को अनेक शिक्षा कौशलों का उपयोग करना होता है। जैसे प्रश्न पूछना, व्याख्यान देना, उदाहरण देना, श्यामपट्ट कार्य करना आदि। यह सभी अलग-अलग विशिष्ट कौशलों पर अभ्यास की आवश्यकता रहती हैं। शिक्षण के विभिन्न पक्षों को लघु रूप देकर सूक्ष्म-शिक्षण, सामान्य शिक्षण की जटिलताओं को कम करता है तथा अलग-अलग विशिष्ट कौशल पर अभ्यास का अवसर भी मिलता है।

    मूलतः सूक्ष्म शिक्षण एक अनुक्रम-अवरोही शिक्षण सम्पर्क सूत्र हैं जिसमें छात्र/छात्राध्यापक पांच से दस छात्रों को छोटे-छोटे समूह के पांच से दस मिनट की लघु समयावधि मेें पढ़ाता हैं। इस तरह की नियमित परिस्थिति अनुभवी और अनुभवहीन अध्यापकों को विशिष्ट शिक्षण कौशल को विकसित करने का अवसर देती है। सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षक प्रशिक्षण क्षेत्र में एक नवाचार हैं जों कि छात्राध्यापकों को पाठ समाप्ति के तुरन्त बाद इस बात की सूचना देता हैं कि उनका शिक्षण कैसा रहा। छात्र/छात्राध्यापक के सूक्ष्म शिक्षण पाठ की समाप्ति के बाद परिवेक्षक उसे आवश्यक सुझाव देता है जिससे छात्र अध्यापक अपने पाठ में सुधार करता है और पुनः शिक्षण कौशल पर अभ्यास करता है।

सूक्ष्म-शिक्षण का स्वरूप

सूक्ष्म शिक्षण के नाम से ही इस विधि का स्वरूप ज्ञात होता हैै। जिसके अन्तर्गत शिक्षण पाठ का छोटा रूप, छात्रों की संख्या भी कम, साथ की समय भी कम रखा जाता है। इसलिये हम इसे सूक्ष्म-शिक्षण कहतें है। 

    सूक्ष्म शिक्षण के प्रयोग में सर्वप्रथम प्रकरण की योजना तैयार की जाती है। किसी एक शिक्षण कौशल को विकसित करने के लिए छात्र अध्यापक किसी-किसी छोटे प्रकरण पर कम छात्रों की कक्षा में लघु कालांश के लिए शिक्षण कार्य करता है। पाठ समाप्ति के बाद छात्र अध्यापक परिवेक्षक के विचार विमर्श कर सुझाव तथा पाठ की प्रभावता का पता करता है और आवश्यक होने पर पुनःपाठ योजना बनाकर पुनः शिक्षण करवाता है जब तक की छात्र अध्यापक उस कौशल में निपुण न हो जाये।

 

प्रत्येक अवस्था के लिये पहले से ही समय निर्धारित होता है


सूक्ष्म - शिक्षण चक्र की विशेषताएँ

1. इसमें शिक्षण प्रकरण का रूप छोटा होता है।

2. कक्षा में छात्रों की संख्या पांच से दस ही होती है।

3. एक समय में एक शिक्षण कौशल के बारे में पढ़ाया जाता है।

4. एक कौशल के बाद पांच से 10-12 मिनट का समय दिया जाता है तथा बाद में उस पर वाद/विवाद किया जाता है।

5. यह वैयक्तिक प्रशिक्षण है।

6. यह शिक्षण का लघु तथा सरल रूप है जिसमें शिक्षण की जटिल प्रक्रिया को कम किया जाता है।

7.  शिक्षण की समाप्ति पर अध्यापक को उसके शिक्षण-विषय की तुरन्त सूचना मिल जाती है।

8. इस विधि में शिक्षक व शिक्षण की परिस्थितियों पर अधिक नियन्त्रण रखा जा सकता है।

9. पृष्ठपोषण के आधार पर विद्यार्थियों को अपना पाठ पुनः नियोजन करने तथा उसमें सुधार करने का अवसर मिल जाता है।

सूक्ष्म-शिक्षण के उपयोग

1. व्यक्ति में शिक्षण-सम्बन्धी योग्यताओं का विकास किया जाता है।

2. विभिन्न शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।

3. शिक्षण कार्य को प्रभावशाली शिक्षण क्रियाओं को तैयार किया जाता है।

4. सभी छात्रों को पूर्ण अवसर प्रदान किये जाते है।

5. इस प्रविधि में अन्य शिक्षण विधियों का उपयोग भी लिया जा सकता है।

सूक्ष्म शिक्षण के गुण

1. सूक्ष्म शिक्षण में अधिक स्पष्ट व तथ्यात्मक पृष्ठ-पोषण का समावेष होता है।

2. शिक्षक प्रशिक्षणार्थी स्पष्ट रूप से निष्चित व्यवहारिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये अपना ध्यान केन्द्रित रखता है।

3. सूक्ष्म शिक्षण के दौरान छात्रों की संख्या मात्र पांच से दस होती है। अतः यह कक्षा में अनुषासनहीनता को जन्म नहीं देती है।

4. सूक्ष्म-शिक्षण सरल व भय रहित होता है।

5. सूक्ष्म -शिक्षण में छात्राध्यापक तुरन्त उसी समय पाठ्यवस्तु को पुर्ननियोजित करता हैं।

6. सूक्ष्म-शिक्षण नियन्त्रित प्रयोगषाला एवं वास्तविक शिक्षण परिस्थितियों दोनों ही उत्पन्न करती है।

7. पाठ-समाप्ति के बाद छात्राध्यापक को अपने पाठ की प्रगति के बारे में जानकारी मिल जाती है।

8. यह शिक्षण-पद्धति स्वयं शिक्षण अभ्यास के लिये स्थान प्रदान करती है।

सूक्ष्म शिक्षण के दोष

1. कभी-कभी आवष्यक सामग्री अचानक खराब हो जाने अथवा उपलब्ध ना होने पर भयंकर समस्या उत्पन्न हो जाती है।

2. इस पद्धति द्वारा प्रशिक्षित परिवेक्षक ही आवश्यक होता है।

3. सूक्ष्म शिक्षण द्वारा किसी शिक्षण कौशल पर अभ्यास करने से छात्राध्यापक की सृजनात्मक और मौलिकता समाप्त हो जाता हैैं । इसमें छात्र नकल के लिये अधिक प्रोत्साहित होता है। तो उसकी मौलिकता समाप्त हो जाती है।

4. छात्राध्यापक सूक्ष्म शिक्षण द्वारा जिन शिक्षण-कौशलों का विकास कर लेते है। इन कौशलों का वे वास्तविक कक्षा में सफलता पूर्वक उपयोग नहीं कर पाते है।

5. सूक्ष्म शिक्षण में प्रशिक्षण अभ्यास अलग-अलग टुकड़ों में होता है। इसमें छात्राध्यापक एक बार में केवल एक ही कौशल का अभ्यास करता है।

6.सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापिका वास्तविक शिक्षण की गहराइयों को नही छू पाता। अतः वह एक बार में केवल एक ही गहराइयों करने के कारण अपने शिक्षण में प्रभावकता नहीं ला पाता है।

    सारांश रूप में देखा जाये तो सूक्ष्म-शिक्षण एक बहुत ही अभ्यासात्मक प्रशिक्षण है जो छात्र/छात्राध्यापिकाओं के लिये अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिये उपयोगी है।

    सूक्ष्म-शिक्षण के प्रशिक्षण द्वारा हम इसकी बारीकियों की जांच-परख करके उन्हें सीखते हैं तथा अपनी गलतियों को सुधारते है। 

    वास्तविक सत्यता की ओर जाये तो सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा प्रशिक्षित छात्राध्यापक ही एक भावी व सुयोग्य अध्यापक बन सकता है।

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Dr. D R BHATNAGAR 

 

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