पुनर्बलन कौशल
reinforcement skillछात्र के उत्साहवर्धन के लिये अध्यापक उसकी प्रशंसा करता है तथा अनुशासनहीनता या सही अनुक्रिया नहीं करने पर उसे दण्डित करता है। दोनों ही रूपों में पुनर्बलन दिया जाता है। पुनर्बलन कौशल छात्र के लिये एक तरह से अतिरिक्त शक्ति का कार्य करता है। अधिगम प्रक्रिया बिना पुनबर्लन के प्रभावशाली नहीं बन सकती है। वैसे देखा जाये तो मानव प्रत्येक दिन किसी न किसी से उत्प्रेरणा प्राप्त कर अधिगम करता है। बिना किसी अभिप्रेरणा के किसी कार्य को करने का विचार आ ही नही सकता । अत- पुनबर्लन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में मिलता रहता है।
’’शिक्षक कक्षा में होने वाले वातावरण का सृजन करने वाला होता है। अतः वह दण्ड़ तथा पुरस्कार का विधान करता है। वह दण्ड और पुरस्कार को इस प्रकार प्रमुख करता है जिससे अधिकाधिक अधिगम हो तथा वह प्रभावशाली हो।’’
पुनर्बलन का अर्थ
शिक्षक का यह दायित्व बनता है कि बालक ने जो क्रिया की है उसके तत्कालबाद उसकी प्रतिपुष्टि करें। जिससे वह उस क्रिया में और अधिक तल्लीन हो जाता है और इससे शिक्षण में प्रभावकता आयेगी। अतः पुनर्बलन के अर्थ के लिये यह कहना उचित होगा कि शिक्षक द्वारा की गई वह प्रतिक्रिया जिससे छात्र उत्तेजित हो जाये और उत्तेजना स्वरूप वह किसी कार्य को पूर्ण तन्मयता के साथ करने में जुट जाए, अभिप्ररेणा रूपी वही प्रतिक्रिया पुनर्बलन कहलाती है। दण्ड की अपेक्षा प्रशंसा या पुरस्कार देना ही प्रभावशाली पुर्नबलन हो सकता है।
परिभाषाएँ
स्किनर के अनुसार, ’’पुनबर्लन वह स्थिति है जो बालक की अनुक्रिया में वृद्धि करती है।’’
ओलिवर के अनुसार, ’’अध्यापक द्वारा की गई प्रशंसात्मक मौखिक प्रतिक्रिया पुनबर्लन है।’’
हल के अनुसार, ’’पुनबर्लन वह प्रतिक्रिया है जिसके माध्यम से छात्र उत्पन्न चालक की सन्तुष्टि होती है।’’
इस प्रकार अध्यापक द्वारा दी गई सकारात्मक तथा नकारात्मक अभिप्रेरणा पुनबर्लन को प्रभावित करती है।
पुनबर्लन के भेद
पुनबर्लन को दों भागों मे विभाजित किया जा सकता हैं -
1. सकारात्मक पुनबर्लन
2. नकारात्मक पुनबर्लन
1 सकारात्मक पुनबर्लन- शिक्षक के द्वारा अथवा किसी घटना, क्रिया-प्रतिक्रिया द्वारा की गई प्रतिपुष्टि से यदि और अधिक अच्छी अनुक्रिया होती है तो यह सकारात्मक पुनबर्लन कहलाता है।
अ. शाब्दिक सकारात्मक पुनबर्लन - इसके अन्तर्गत अध्यापक का वह व्यवहार आता है जिससे बालक में अभिप्रेरणा जागृति होती है। जैसे-ठीक है, हां समझ गये, बहुत अच्छा, शाबाश , बहुत अच्छा आदि कर के उसका मनोबल बढ़ाता है। इससे छात्र अपने आपको गौरान्वित महसूस करता है तथा सिखने की प्रक्रिया तीव्रं कर देता हैं।
ब. अशाब्दिक सकारात्मक पुनबर्लन - अशाब्दिक पुनबर्लन में शिक्षक शब्दों के स्थान पर संकेतों का प्रयोग करता है जो कि प्रभावशाली होता है, जैसे- सही उत्तर का श्यामपट्ट पर लिखना आदि से बालक का उत्साहित करता हैं।
2. नकारात्मक पुनबर्लन - कई बार छात्र या तो गलत उत्तर देता है या बताता ही नही है ऐसे मे उसे नकारात्मक पुनबर्लन से प्रोसाहित किया जाता है। इसे भी दो भागों मे विभाजित करते है।
अ. नकारात्मक शाब्दिक पुनबर्लन - इस पुनर्बलन प्रक्रिया में अध्यापक छात्र को गलतियों के लिए, नही ठीक नहीं हैं, सोचकर बताओं, अहूं, नहीं नहीं बैठेगा आदि शब्दों से उसे सही प्रतिक्रिया करने को प्रोत्साहित करता हैं तथा अनुचित क्रिया के लिये हतोत्साहित करता हैं।
ब. नकारात्मक अशाब्दिक पुनबर्लन- इस प्रकार के पुनबर्लन में अध्यापक शब्द का प्रयोग नहीं करता है। संकेत शिक्षक-सिर हिलाकर, क्रोधी मुद्रा में छात्र को देखकर, आखें दिखाकर अपनी अस्वीकृति का संकेत करता है।
पुनबर्लन कौशल के घटक
1. स्वीकारात्मक कथनों का अधिक प्रयोग
2. छात्रों का उत्साहवर्धन
3. विद्यार्थी के साथ सहानुभूति
4. विद्यार्थी की भावना को समझना
5. आंगिक तथा शाब्दिक दोनों का प्रयोग
6. नकारात्मक शब्दों का प्रयोग करना।
7. नकारात्मक शाब्दिक और अशाब्दिक शब्दों का प्रयोग
8. सभी का समान पुनबर्लन।
9. एक ‘शब्द‘ का बार-बार नहीं दोहराना।
10. विद्यार्थी की क्रिया के अनुरूप ही पुनबर्लन प्रदान करना।
11. सही उत्तरों का श्यामपट्ट पर लिखना।
पुनबर्लन कौशल में महत्वपूर्ण तथ्य
1. पुनबर्लन कौशल छात्र की अतिरिक्त शक्ति होती हैं। अतः सभी को दिया जाना चाहिये।
2. जहां तक हो सके सकारात्मक पुनबर्लन ही प्रदान करें।
3. छात्र की आवश्यकता के अनुरूप ही पुनबर्लन दे।
4. विशेष परिस्थिति मे दण्डात्मक पुनबर्लन भी अपेक्षित हैं अतः उसका भी यथासम्भव प्रयोग करें।
5. एक ही प्रकार का पुनबर्लन नहीं दे। शाब्दिक-अशाब्दिक विधि से छात्र को उत्साहित करें।
6. एक शब्द को बार-बार कहने से यह अध्यापक का उपनाम बन जाता है।अतः इसमें प्रत्येक छात्र के लिये भिन्न शब्द का प्रयोग करें।
7. जन-बूझकर पुनबर्लन देने से छात्र इसे विपरीत भाव में लेते हैं अतः शिक्षक को स्वाभाविक पुनबर्लन की देना चाहिये।
8. पुनबर्लन प्रदान करते समय अध्यापक विनम्र मुद्रा में ही रहें तो उपयुक्त रहता है।
9. पुनबर्लन मे नियमितता आवश्यक है। प्रत्येक उत्तर के लिये यह प्रक्रिया नहीं अपनानी चाहिये। इससे बालक की उत्तेजना नष्ट हो जाती है।
10. अल्प विकसित छात्र का सकारात्मक पुनबर्लन नहीं दे। अन्य छात्रों के बीच उसकी अधूरी अनुक्रिया का भी पुनबर्लन करें।
11. पुनबर्लन में छात्र को नाम से पुकारे तो अच्छा रहता है।
12. छात्र का स्वास्थ्य को भी में रखे। कई बार स्वास्थ खराब होने की वजह से छात्र सही अनुक्रिया नहीं करता है। परिणामस्वरूप् शिक्षक उसे दण्ड देता है। सर्वथा अनुचित है।
13. प्रतिभाशाली छात्र के लिये अन्य छात्रों से भिन्न शाब्दिक पुनबर्लन न हो। इससे वह उत्तेजित होेंगे क्योंकि ‘शाबाश‘ आदि शब्द उसके लिये प्रभावी नहीं होते है।
14. छात्रों के मनोंभावों को भी समझें।
15. यदा-कदा सकारात्मक पुनबर्लन में पुरस्कार आदि की भी व्यवस्था करें।
16. छात्र को अन्योक्ति से बचायें । इससे इनका मनोबल टूट जाता है।
17. अनुचित व्यवहार, अनुशासनहीनता करने पर दण्ड का ही प्रयोग करें, इससे पहले छात्र के विचार जानना आवश्यक है।
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Dr. D R BHATNAGAR
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