उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल
ILLUSTRATING WITH EXAMPLES SKILL
शिक्षण कौशलों में उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल का अपना विशिष्ट स्थान है। इसके अन्तर्गत शिक्षण कराते समय शिक्षक प्रकरण से सम्बन्धित अनेक कहानी, किस्से , घटना, श्लोक, दोहा, कविता, लोकोक्ति, मुहावरे आदि छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है। जैसे - आम के आम गुठलियों के दाम, बोये पेड़ बबूल का आम कहां से हाये आदि। इससे विषय वस्तु सरल, सरल, सरस, रोचक, प्रवाहमयी, बोधगम्य बन सकेगी जिसको बालक शीघ्र की हृदयंग कर सकेंगे। प्रदर्शन का भी इसमें विशेष महत्व है। अतः उदाहरण और दृष्टान्त पाठ्यवस्तु को रोचक सरल, बनाने के साथ ही उसे स्थायित्व भी प्रदान करते हैं ।
शिक्षक किसी विशेष परिस्थिति में ही उदाहरण दृष्टान्त आदि का प्रयोग करता है। उदाहरण कौशल किसी विशेष सिद्धान्तों में ही प्रंयुक्त किया जा सकता है। कक्षा में भिन्न - भिन्न प्रकृति बुद्धि विचारों के छात्र होते हैं। अतः सभी को एक विधि से सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता है। तीव्रबुद्धि छात्र मौखिक रूप से कराये गये शिक्षण का हृदयंग कर लेता है किन्तु उसी के साथ बैठा मन्द बुद्धि छात्र उससें लाभान्वित नहीं होता है। इस प्रकार के छात्रों के लिये उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल बहुपयोगी है। मनोवैज्ञानिक तथा शिक्षा शास्त्री लेण्डन ने इस विषय में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उदाहरण मात्र ज्ञान की व्याख्या अथवा स्पष्टीकरण ही नहीं करते, अपितु ये प्राप्त किये ज्ञान को चिर स्थायी बनाने में भी बहुत योगदान प्रदान करते है। अतः उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल पाठ्यवस्तु को सुग्राही बनाने में सहायक है। यह विशिष्ट शिक्षण कौशल है।
कक्षा में शिक्षण कराते समय अध्यापक अनेक प्रकार के उदाहरण प्रस्तुत करता हैं। जैसे कविता, श्लोक, कहानी, घटना आदि कई ऐसे उदाहरण भी प्रस्तुत करने पड़ते है। कुछ उदाहरण प्रदर्शन करके दिखाया जाते है। अतः प्रमुख रूप से दो प्रकार के उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते है।
उदाहरणों के प्रकार
उदाहरणों दो प्रकार के होते हैं-
1. मौखिक रूप से दिये जाने वाले ।
2. प्रदर्शनात्मक रूप से दिये जाने वाले।
मौखिक उदाहरण - मौखिक रूप से दिये जाने वाले उदाहरणों में सुक्ति, कहानी, कथा, मुहावरें लोकोक्ति आदि को सम्मिलित करते है। यें प्रकरण के अनुसार प्रसंगवश दिये जा सकते है। अतः ये प्रासांगिक उदाहरण कहलाते है। जैसे - अध्यापक पढ़ रहा है कि ’जाको राखे साईया मार सके ना कोय। ’ इसका भाव स्पष्ट करने के लिये वह कोई भी घटना या कहानी बालकों को सुना सकता है। भक्त प्रहलाद, मीराबाई आदि अनेक उदाहरण दे सकता है।
कई बार किसी तथ्य को स्पष्ट करने हेतु किसी अन्य तथ्य से तुलना करके समझाया जाता है। इन्हें तुलनात्मक उदाहरण कहते हैं इनका प्रयोग प्रमुखतया भाषा सम्बन्धी विषयों में ही अधिक किया जाता है। विज्ञान में जलीय आवासीय जन्तु से तुलना की जा सकती है। अतः मौखिक उदाहरणांे में शाब्दिक क्रियायें ही प्रभावशाली होती है।
1. प्रदर्शनात्मक उदाहरण - छात्रों को पढ़ाते समय कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती हैं कि शाब्दिक क्रिया बालक को समझाने में पर्याप्त नहीं रहतीं। ऐसे मे शिक्षक किसी स्थूल वस्तु का प्रदर्शन करता हैं। बालकों के समक्ष तत्काल (प्रकरण से सम्बद्ध) उस वस्तु को दिखाया जाने से बालक उसके बारे में जितना पढ़कर ज्ञात नहीं कर सके उससें कहीं ज्यादा उसे देखकर सीखते हैं। प्रदर्शन के लिये विज्ञान तथा गणित महत्त्वपूर्ण विषय हैं । विज्ञान के शिक्षण में जैसे - आॅक्सीजन गैस बनाने की विधि का पर्याप्त आकार का चित्र प्रस्तुत कर दिया जाये अथवा शिक्षक श्यामपट्ट पर उस सम्पूर्ण प्रक्रिया को चित्र के रूप में अंकित कर दे तो सरलता से उसका अधिगम कर सकते है। इससे छात्र तथ्य/वस्तु के प्रत्येक अंग से परिचित होंगे और उसे लम्बे समय तक नहीं भूलत।
कई विषय ऐसे हैं जिनका बोध कराने के लिये बालकों को विद्यालय से बाहर भी ले जाया जा सकता है। विज्ञान शिक्षण में ’’मरूस्थलीय पादप’’ पढ़ाते समय हमें हमारे प्रदेश के मरूस्थलीय भागों के पादपों के बारे में जानकारी देना तथा इस हेतु बाड़मेर व जैसलमेर तथा यहां स्थित फासिल बुड पार्क का भ्रमण करा कर जानकारी देने से छात्र पढ़े हुये ज्ञान का आत्मसात् करेंगे और प्रसन्नचित होकर और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहेंगे।
महत्वपूर्ण बिन्दू
उपर्युक्त दोनों प्रकार के उदाहरण तथा दृष्टान्तों को बालक के समक्ष प्रस्तुत करते समय शिक्षक को अपनी कुशलता का परिचय देना होता है। निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान में रखना चाहिए-
1. उदाहरण,दृष्टान्त विषय से सम्बद्ध हो।
2. उदाहरण या दृष्टान्त का प्रयोग तत्काल करना चाहिये। यह नहीं हो कि प्रसंग तो प्रारम्भ में आया था और स्पष्टीकरण (उदाहरण) पाठ के अन्त में किया जा रहा है। ऐसे मे बालकों का मात्र मनोंरजन ही हो सकता है।
3. उदाहरण बालकों के ज्ञानात्मक स्तर के अनुरूप ही हो।
4. उदाहरण दृष्टांत इस प्रकार की कथन शैली में दिया जाये कि बालक सरलता से उसका बोध कर ले। यदि जटिल शैली अपना ली तो बालक अधिक ग्रहण तो दूर की बात है, पहले पढ़ा था उसे भी भूल जायेगा।
5. उदाहरण/दृष्टान्त के उदाहरण/दृष्टान्त ही रहने दें, उन्हें विषय वस्तु न बना लें।
6. उदाहरणों में सत्यता,सार्थकता, सामाजिकता का समावेश अपेक्षित है।
7. उदाहरणों में किसी प्रकार की नैतिक शिक्षा भी हो। जिसके असर बालक के व्यवहार पर पड़ सके ।
8. काल्पनिक जगत के उदाहरणों का सहयोंग नहीं लेना चाहिये।
9. असमय/अप्रासंगिक उदाहरणों का सहयोग नहीं लेना चाहिये।
10. भ्रमण के समय संकलित स्थलों का ही अवलोकन किया जाना चाहिये। अन्यथा समय का सदुपयोग नहीं हों सकेगा। छात्रों का विशेष ध्यान रखना चाहिये। सम्बन्धित स्थानों की जानकारी शिक्षक या गाइडर अच्छी तरह से दें।
उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल का महत्त्व
1. यह पाठ्यवस्तु का सरल, सरस तथा सुबोधगम्य बनाने में सहायक है।
2. पढे़ (सीखे) हुये ज्ञान को चिरस्थायी रख सकते है।
3. यह पूर्णतया मनोंवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होने से व्यक्तिगत भिन्नता का ध्यान रखने में सहायक है।
4. इससे प्रकरण में आये कठिन तथ्य उदाहरण से परिपुष्ट होते है।
5. दृष्टान्त कौशल से बालक सूक्ष्म ज्ञान को भी समझ सकते है।
6. उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल बालकों की तर्कशक्ति प्रदान करता है।
7. इससें कल्पना शक्ति का विकास किया जा सकता है।
8. इसमें छात्र समीपता से गहन अध्ययन करने में सक्षम होते है।।
9. छात्रों को सक्रिय बनाये रखने तथा स्थायी अनुभव प्रदान करने में यह अत्यन्त सहायक है।
10. इसे छात्र ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक तीनों पक्षों से लाभान्वित हो सकते है।
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Dr. D R BHATNAGAR
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