प्रश्नों की प्रवाहशीलता का कौशल
SKILL OF FLUENCY OF QUESTIONS
शिक्षण की दृष्टि से प्रश्न करने की कला अध्यापक के लिये एक वरदान है और शिक्षा प्रदान करने के लिये यह एक उत्तम साधन माना गया है। प्रश्न कौशल एक ऐसा माध्यम है जों कि बालक को पढ़ने के लिये प्रेरित करता हैं। प्रश्न कौशल के महत्त्व को स्वीकारते हुये कई विद्वान लिखते है-
बाॅसिंग के अनुसार,’’ प्रश्न करने की कला का महत्त्व स्वीकार किये बिना कोई भी शिक्षण विधि सफलतापूर्वक लागू नहीं की जा सकतीे ।’’
पाकेर के अनुसार,’’ प्रश्न आदत कौशल स्तर के बाहर समस्त शैक्षिक -प्रक्रिया की कुंजी है।’’
प्रश्न पूछने के उद्देश्य
1. छात्रों के पूर्व ज्ञान का पता लगाना।
2. छात्रों में पाठ के प्रति रूचि जागृत करना।
3. शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों को मानसिक रूप से उपस्थित करने के लियें।
4. शिक्षक स्वयं अपनी शिक्षण की सफलता का मूल्यांकन करने हेतु प्रश्न पूछता है।
5. पाठ का विकास करने के लिये ।
6. छात्रों में आत्मविश्वास लाने के लिये।
प्रश्न कौशल के प्रमुख तत्व
1. प्रश्नों की संरचना - प्रश्नों की बनावट सरल व बोधगम्य तथा स्पष्ट होनी चाहिये तथा प्रश्नों का आकार छोटा होना चाहिये। प्रश्नों की बनावट इस प्रकार की होनी चाहिये कि कमजोर छात्र भी इसका हल ढूढने में समर्थ हो।
2. प्रश्नों का प्रस्तुतीकरण - सर्वप्रथम प्रश्न सम्पूर्ण कक्षा के सम्मुख पूछा जाना चाहिये। प्रश्न न तो तेज गति से पूछना चाहिये और न ही बहुत धीमी गति से , तथा आवाज स्पष्ट सुनाई दे।
3. संकेत द्वारा - जब छात्र आधा उत्तर देकर रूक जाये या उत्तर देने में घबराये या उत्तर पर्णतया सही न हो तो अध्यापक को कुछ दुसरे प्रश्न बनाकर उसे उत्तर का संकेत देते हुये विषय स्पष्ट करने का प्रयत्न करंे।
4. प्रसार - प्रश्नों का प्रसार कक्षा में चारों ओर सभी स्तर के छात्रों में समान रूप से प्रसारित होना चाहिये। प्रश्नों को अधिकतम छात्रों से पूछना चाहिये जिससें सभी क्रियाशील व चैकन्ने रहे।
5. प्रश्नकत्र्ता की मुद्रा - प्रश्नकत्र्ता को प्रश्न सीधे एवं सरल स्वभाव से पूछे जाने चाहिये। प्रश्न पूछने के बाद कुछ समय रूककर छात्रों से उत्तर देने को कहना चाहिये।
6. पुनःनिर्देशन विधि - किसी एक छात्र द्वारा उत्तर बताने के बाद उसे कई छा़त्रों से मिलान करना चाहिए, जिससे अधिकाधिक छात्र सक्रिय रह सकें व अपनें आत्मविश्वास से उत्तर दे सकें।
प्रश्नों के प्रकार
प्रश्नों को दो आधारों में बाटा गया है- 1. मानसिक आधार पर 2. उत्तरों के आधार पर
1. मानसिक आधार पर - इस आधार पर प्रश्नों को दों भागों में बाटा गया है-
1. स्मृत्ति प्रश्न 2. विचारात्मक प्रश्न
1. स्मृत्ति प्रश्न - ये प्रश्न छात्रों के पूर्व पठित विषय -वस्तु, परिभाषा, प्रक्रिया,संख्या आदि से संबधित होते हैं। इनके उत्तर अपनी स्मृत्ति में उपस्थित ज्ञान से देने होते हैं। जैसे -प्रस्तावना प्रश्न, आवृत्यात्मक प्रश्न
प्रस्तावना प्रश्न - प्रस्तावना प्रश्न पाठ को आरम्भ करते समय किये जाते हैं जो प्रश्न, छात्र के पूर्वज्ञान पर आधारित होते है।
आवृत्ति प्रश्न - ये वे प्रश्न होते है जो पाठ की समाप्ति पर पाठ की सफलता तथा छात्रों की उपलब्धि का ज्ञान तथा शिक्षक की शिक्षण विधियों का पता लगाने हेतु पूछे जाते है।
2. विचारात्मक प्रश्न - ये पाठ के मुख्य शिक्षण पर आधारित तथा जटिल विषयों को स्पष्ट करनें के लिये पूछे जाते है। यंे प्रश्न अधिक कठिन स्तर के माने जाते है।जैसे बोध प्रश्न, विकासात्मक प्रश्न, तुलनात्मक प्रश्न।
बोध प्रश्न - बोध प्रश्न उन्हें कहते है जिनकी सहायता से शिक्षक को बच्चों को पढ़ाई गई विषयवस्तु का ज्ञान का ज्ञान होता है।
विकासात्मक प्रश्न- वे प्रश्न जिनके माध्यम से पाठ का विकास किया जाता हैं।
तुलनात्मक प्रश्न- वे प्रश्न जिनके माध्यम से पाठ के तथ्यों कि तुलना की जाती हैं।
2 उत्तरों के आधार पर - इस आधार पर प्रश्नों को चार भागों में बाटा गया है- अ. निबंधात्मक प्रश्न ब. लघुत्तरात्मक प्रश्न स. अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न द. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
अ. निंबधात्मक प्रश्न- इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर निबंध के रूप में लिखना होता है। इसमें परीक्षक की मनोदशा का भी प्रभाव पड़ता है, इसमें आत्मगत तत्व की प्रधानता है।
ब. लघुत्तरात्मक प्रश्न - इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर चार या पाच पंक्तियों में देना होता है। ये प्रश्न शिक्षण के लिये प्राण माने जाते है।
स. अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न - इनका उत्तर एक पंक्ति या एक -दों शब्दों में दिये जा सकते है। ये प्रश्न पाठ के विकास के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण होते है।
द. वस्तुनिष्ठ परीक्षण - वस्तुनिष्ठता का अभिप्राय वैयक्तिक तत्वों के निष्कासन से है। मूल्यांकन में अंतर ना हो प्रश्न ऐसे होने चाहिये । इस परीक्षण में अंकन करना सुगम होता है। ये कई प्रकार के होते है-
(अ). सत्य व असत्य या एकांतर प्रत्युत्तर में - इनमें दो विकल्पों में से एक को चयन करने के लिये कहा जाता है। इन प्रश्नों का प्रयोग विद्यालय के प्रत्येक स्तर के लिये किया जा सकता है।
(ब). बहुविकल्प या अपव्रत्य-चयन रूप -इस प्रकार के प्रश्नों के एक प्रश्न के उत्तर के रूप में कई विकल्प दिये रहते है, जिनमें से छात्रों को अधिक उपयुक्त उत्तर छांटने के लिये कहा जाता है।
(स). वर्गीकरण रूप - इसमें प्रश्नों के अंतर्गत कुछ ऐसे शब्दों का समूह छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जिनमें से छात्रों से उसी शब्द कों छांटनें के लिये कहा जाता है।
प्रश्न कौशल में सावधानियाँ
1. अध्यापक को ऐसे प्रश्न नहीं पूछना चाहिये कि प्रश्न की भाषा में ही उत्तर हो।
2. प्रश्न पूछते समय उपयुक्त गति से विराम देते हुये बोलना चाहिये।
3. अध्यापक की मुख मुद्रा प्रसन्न होनी चाहिये।
4. कक्षा का वातावरण सौहार्दपूर्ण होना चाहिये।
5. प्रश्नों को बार-बार नहीं दोहराना चाहिये।
6. प्रश्नों की भाषा स्पष्ट होनी चाहिये।
7. प्रश्न निश्चित उद्देश्य से पूछे जाने चाहियें।
प्रश्न कौशल के होने से छात्रों में उत्साह पनपता है वे स्वयं का मूल्यांकन कर सकते है। किसी भी कक्षा में कक्षाध्यापक को पाठ के आरम्भ में प्रश्न पूछने से पाठ का उचित विकास होता है, परन्तु सर्व महत्त्वपूर्ण यह है कि अध्यापक को प्रश्न पूछना व किस तरह सरलता से छात्रों से उत्तर निकलवाना है आना चाहिये।
प्रश्न कौशल को समझने के लिये हम एक प्रकरण उदाहरण में लेकर उसकी सारणी बनाते है-
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Dr. D R BHATNAGAR
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