डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर
Dr. SHANTI SWAROOP BHATNAGAR
सृष्टि के आरम्भ से लेकर वर्तमान युग में आज तक को चमत्कृत कर देने वाली समस्त वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हमें विज्ञान के बारे में अद्भुत जिज्ञासा देती रही है वैज्ञानिकों के अनवरत शोध ने विश्वभर में नित नये कीर्तिमान स्थापित किये है। एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक नई - नई खाजों में हमें चैंकाते रहे है। इनमें भारतीय वैज्ञानिकों का महत्व प्राचीन काल से रहा है। पिछले 150 वर्षो में भारत भी कई ऐसे वैज्ञानिक हुए जिनके शोधकार्य ने उनका नाम ही नहीं रोशन किया अपितु भारत देश को संसार के वैज्ञानिक मानचित्र पर प्रतिष्ठित किया है। भारत के वैज्ञानिक सभी क्षैत्रों में हमेशा से अग्रणी रहे है। खगोल, रसायन विज्ञान, धातु विज्ञान, शरीर विज्ञान, सौर ऊर्जा आयुर्वेद, अन्तरिक्ष विज्ञान, परमाणु ऊर्जा आदि विज्ञान की सभी शाखा प्रशाखाओं और खोजों में भारतीय वैज्ञानिकों का योगदान प्रशंसनीय रहा है।
भारत के कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक वैज्ञानिक ‘‘डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर‘‘ है। यह वैज्ञानिक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे। विज्ञान के युग में इनके शोधकार्य अतिप्रशंसनीय व सराहनीय रहें। इन शोधकार्यो की सफलता के लिये इन्हें कई पुरस्कार व उपलब्धियों प्राप्त हुई। हम इस वैज्ञानिक के जीवन - वृत का विस्तार से अध्ययन करेंगें।
जन्म स्थली -डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर का जन्म 21 फरवरी 1894 को वर्तमान पाकिस्तान में स्थित शाहपुर जिले के भेरा नामक कस्बे में हुआ था।
पारिवारिक स्थिति -डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर के पिता का नाम बाबू परमेश्वरी सहाय और माता का नाम पार्वती था। पिता हाई स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्यरत थें।
जब वे मात्र छः महीने की उम्र के थे तब उनके पिता का देहान्त हो गया। तदुपरान्त इनका भरण-पोषण, शिक्षा-दीक्षा, उनके ननिहाल में आरम्भ हुई।
शैक्षिक पृष्ठभूमि -डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर की प्रारम्भिक शिक्षा सिकन्दराबाद के एंग्लोवैदिक हाई स्कूल में हुई। 1911 में शान्ति स्वरूप भटनागर ने लाहौर के दयाल सिंह हाई स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस योग्यता के परिणाम स्वरूप इन्हें छात्रवृत्ति प्राप्त हुई और वे दयाल सिंह काॅलेज में भर्ती हो गये। इस काॅलेज से इन्होंने एफ.ए. पास किया और बी.एस.सी. भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और अंग्रेजी विषय लेकर क्रिशचियन काॅलेज लाहौर से पास की।
सन् 1916 में बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने दयालसिंह काॅलेज में डिमाॅन्स्ट्रेटर के पद पर नौकरी कर ली। इस दौरान शीघ्र ही उन्हें आगे बढ़ने व अध्ययन करने का अहसास हुआ और नौकरी छोड़कर इन्होंने एम.एस.सी. में प्रवेश ले लिया। और 1919 में प्रथम श्रैणी से परीक्षा उत्तीर्ण की।
शान्ति स्वरूप शुरू से ही विज्ञान के प्रयोगों में रूचि रखते थे। और हर चीज को पुरी गहराई के साथ समझना चाहते थे। जब वे बी.एस.सी. व एम.एस.सी के छात्र थे। तब से ही उनके एक अध्यापक प्रोफेसर रूचिराम साहनी उनकी प्रगति पर नजर रखे हुये थे। और उन्हें शान्ति स्वरूप भटनागर की प्रतिभा पर पूरा भरोसा था। उन्होंने दयाल ट्रस्ट से सिफारिश की, कि शान्ति स्वरूप को उच्च शिक्षा के लिये अमेरिका भेजा जाना चाहिए। सौभाग्य से ट्रस्ट ने प्रोफेसर साहनी की सिफारिश मान ली और शान्ति स्वरूप को अमेरिका जाने का मौका मिला।
सन् 1919 में शान्ति स्वरूप पानी के जहाज से लन्दन गये जहाँ से उन्हें अमेरिका जाना था। लेकिन शान्ति स्वरूप को अमेरिका जाने वाले जहाजों में लन्दन से जगह नहीं मिल सकी। क्योंकि कि 1918 में विश्व युद्ध (World-war) समाप्त हुआ ही था। और सैनिक जहाज से वापस स्वदेश लौट रहे थे। यह स्थिति काफी दिनों तक रही। अतः तत्पश्चात् शान्तिस्वरूप ने लंदन में रहकर आगे। पढ़ने का निश्चत किया। शान्तिस्वरूप भटनागर ने दयालसिह ट्रस्ट को पत्र लिखकर लन्दन विश्वविद्यालय में रसायन विभाग के प्रोफेसर डोनन, कोलायड रसायन के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे थे। शान्तिस्वरूप ने डी.एस.सी. की डिग्री के लिये प्रोफेसर डोनन से मुलाकात की और उन्हें अपनी रूचि व काम दिखाया। प्रोफेसर डोनन उनके काम से प्रभावित हुए और इस तरह डी.एस.सी. की डिग्री के लिये विश्वविद्यालय के छात्र बन गये। सन् 1921 में डाॅ. शान्तिस्वरूप भटनागर ने डी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की।
उत्कृष्ट देशप्रेम -डी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त कर डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर जर्मनी और फ्रांस गये। और इस प्रकार से शान्ति स्वरूप वहाँ के वैज्ञानिकों के सम्पर्क में आऐ। उन्हीं दिनों मदन - मोहन मालवीय की शान्ति स्वरूप पर नजर पड़ी। और मदन मोहन मालवीय ने उन्हें बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय में आने का निमंत्रण दिया। शान्ति स्वरूप अपने उत्कृष्ट देशप्रेम के कारण तमाम सुख-सुविधाओं महत्वाकांक्षाओं, प्रलोभनों को ठुकराकर बनारस आ गये।
वैज्ञानिक खोजे एवम सिद्धान्त तथा अनुसंधान -डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर का लक्ष्य विज्ञान के क्षेत्र मे नयी - नयी करना ही नही वरन उन्हें मानव जाति के उपयोग लगाना और स्वदेश की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालना भी था ।
डाॅ. भटनागर के मुख्य अनुसंधानो में कुछ प्रमुख इस प्रकार है -
- रेल के धुरी को ठण्डा करने के लिए, नया तेल तैयार किया ।
- मिठाईयाॅ लपेटने के कागज के लिये पेराफीन मोम को गंधहीन पद्धति खोजी।
- चुम्बकीय रसायन पर खोज की और इस विषय पर पहली पुस्तक लिखी जिसकी देश - विदेश में काफी ख्याति रहीं।
- इन्होंने पैट्रोलियम व मिट्टी के तेल की समस्याओं पर अनुसंधान किये।
डाॅ. भटनागर ने डेढ सौ से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित किये। और तीस से भी अधिक विधियाँ पेटेन्ट करवाई। इन्होंने पूरे भारत वर्ष में 11 भारतीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं की आधारशिला रखी।
डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ -सन् 1942 में (CSIR काउन्सिल ऑफ साइन्तिफिक एण्ड इण्डस्ट्रियल रिसर्च)की स्थापना हुई। और शान्ति स्वरूप भटनागर इसके निदेशक नियुक्त किये गये।
- सन् 1943 में शान्ति स्वरूप राॅयल सोसायटी के फेलो चुने गये।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) डाॅ. भटनागर की सूझबूझ है। और वे इसके आरम्भ में अध्यक्ष रहें।
देश में विभिन्न प्रयोगशालाओं की स्थापना CSIR द्वारा की गई व इनमें हो रहे अनुसंधानों का लाभ देश के उद्योगों तक पहुँचाने के लिये राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम की स्थापना डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर की ही देन है। उद्योगों के उत्पादों की गुणवत्ता सुधार के लिये भारतीय मानक संस्था भी उन्हीं की ही देन है।
पुरस्कार व उपाधियाँ -डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर को अंग्रेज सरकार ने सन् 1936 में ओबीआई (OBI) की उपाधि प्रदान की। सन् 1941 में इन्हें सर का खिताब दिया गया था।
सन् 1954 में भारत सरकार ने डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर को ‘‘पद्म विभूषण‘‘ की पद्वी से सम्मानित किया था।
डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर प्रारम्भ समय से ही मेहनती, परिश्रमी व प्रतिभाशाली थे। उनका सारा जीवन-काल विज्ञान के क्षैत्र में भारत को अग्रणी बनाने में ही बीत गया।
डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर एक सच्चे भारतीय और देशभक्त थे। यह कोमल हृदय कवि भी थे। इन्हें अंग्रेज व भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया।
आज भी प्रतिवर्ष डाॅ. भटनागर के सम्मान में भारत के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों तथा को डाॅ. शान्ति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है। 1 जनवरी 1955 को उनका निधन हो गया।
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