रविवार, 5 फ़रवरी 2023

नोबेल पुरस्कार प्राप्त भारतीय वैज्ञानिक - चन्द्रशेखर वेंकटरमन (CHANDRASEKHARA VENKATA RAMAN)

 चन्द्रशेखर वेंकटरमन

 CHANDRASEKHARA VENKATA RAMAN 


    चन्द्रशेखर वेंकटरमन एक ऐसा नाम है, जिससे विश्वभर के लोग परिचित है। इसका प्रमुख कारण उनका वह प्रकाश संबंधी अनुसंधान है जिसके कारण उन्हें भारत ही नही, समूचे एशियाभर में नोबेल पुस्कार प्राप्त हुआ। इनको सी.वी. रमन के नाम से भी जाना जाता है। इनके अनुसंधान प्रकाश संबंधी होते थें। ये कही भी जाते थे जल की लहरों व प्रकाश की गति पर ध्यान रखते थें। 

जन्म- चन्द्रशेखर वेकंटरमन का जन्म तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली नामक स्थान पर नवम्बर, 1888 में हुआ था। 

पारावारिक स्थिति  शैक्षिक पृष्ठभूमि - रमन की रूचि आरम्भ से ही विज्ञान में थी। उनका प्रिय विषय भौतिक विज्ञान था। वे काॅलेज की पढ़ाई के दिनों से ही घर पर वैज्ञानिक अनुसंधान करते रहते थे। रमन प्रारम्भ से ही अपनी कक्षा में प्रथम आते थे। जब उनकी आयु 17 वर्ष की थी और वे एम.ए. के छात्र थे, तो उन्होंने भौतिक विज्ञान से संबंधित एक निबन्ध लिखा। वह उन्होंने अध्यापक जोन्स को दिखाया ताकि वे अपनी सम्मति दे और उसमें सुधार के लिए सुझाव दे। परन्तु आश्चर्य की बात कि वह निबन्ध जोन्स की समझ के बाहर था। बहुत दिनों तक प्रतीक्षा करने के बाद वह लेख स्वयं लंदन की एक सुप्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ‘फिलासफिसल मैगजीन‘ में छपने के लिए भेज दिया। जब वह लेख ज्यों का त्यों बिना किसी संशोधन के छपा तो मि. जोन्स तो क्या अन्य सभी अध्यापक और प्रिंसीपल आश्चर्यचकित रह गए। इसके बाद उन्होंने अन्य पत्रिका में कुछ दुसरे लेख भी भेजे। इसका लाभ यह हुआ कि वे छोटी-सी आयु में और वह भी विद्यार्थी काल में ही महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों के सम्पर्क में आ गए। 

शिक्षा के बाद इग्लैण्ड जाकर किसी प्रतियोगिता में बैठना चाहते थे, क्योंकि बड़ी और अच्छी नौकरियाँ पाने के लिए प्रतियोगिताओं में बैठना आवश्यक था और प्रतियोगिताएँ इग्लैण्ड जाने के मार्ग में बाधा डाल दी। केवल फाइनेन्स विभाग की प्रतियोगिता परीक्षा ही भारत में होती थी। सो, विज्ञान के विद्यार्थी को फाइनेन्स की परीक्षा में विवश होकर बैठना पड़ा। यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि जब उन्हें फाइनेंस प्रति विवश होकर बैठना पड़ा। यहां यह बता देना आवश्यक है कि जब इन्हें फाइनेंस प्रतियोगिता में बैठना था तो केवल एक ही महिने का समय तैयारी के लिए बचा था। और उसके सभी विषय नए थे इसके लिए उन्हें साहित्य, इतिहास, राजनीति-विज्ञान और संस्कृत आदि में पांरगत होना आवश्यक था। इसमें रमन के अदम्य आत्मविश्वास ने ही सफलता दिलवायी और वे अन्य परीक्षाओं के समान इसमें भी सर्वप्रथम आए। सो वे भारत सरकार के फाइनेंस विभाग में डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर चुन लिए गए और उनकी नियुक्ति पहले-पहल कलकत्ता में हुई। 

    वैज्ञानिक खोजे एवं सिद्धान्त व अनुसंधान - रमन का प्रकाश संबंधी अनुसंधान है। सभी व्यक्ति नदियों, नालों, तालाबों, पोरवरों और समुद्रों मे लहरें उठते देखते है। लहरें दूर-दूर तक उठती चली जाती है, पानी आगे फैलता जाता है। वैज्ञानिक सोचता है कि क्या प्रकाश भी पानी की लहरों के समान फैलता है? पानी और प्रकाश की लहरों में अन्तर क्या है? पानी में लहरें उठने का कारण वायु है। जहाँ वायु का प्रवेश होता है, वहीं लहरें फैलती है। परन्तु प्रकाश की विशेषता यह है कि वह वायुरहित स्थान पर भी फैलता है। 

प्रकाश के सम्बन्ध में अन्य अनेक वैज्ञानिकों ने अनुसंधान किए है परन्तु सी.वी. ने यह सिद्ध किया कि तरल और पारदर्शी पदार्थों में से छितराने पर प्रकाश का रंग बदल जाता है। उन्होंने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन तो कर दिया परन्तु इसे सिद्ध करके दिखाने में उन्हें तीन-चार वर्ष लग गए। 

रमन 1921 में जब पहली बार विदेश गए तो उनका जहाज भूमध्य सागर से गुजर रहा था। वे जहाज के डेक पर खडे़ यों ही पानी की लहरें देख रहे थे। वे एकाएक गंम्भीर हो गए। उन्होंने देखा कि भूमध्य सागर का पानी गहरे नीले रंग का है, जबकि बंगाल की खाड़ी का पानी काला-सा मैलापन लिए हुए सफेदी माइल है।

रमन ने प्रकाश के छितराने के सिद्धान्त का प्रतिपादन 1925 में किया था और 1930 में उन्हें प्रकाश के इस सिद्धान्त पर जिसे हम ‘रामन प्रभाव‘ कहते है, नोबेल पुरूस्कार प्राप्त हुआ। उनमें इतना जबरदस्त आत्मविश्वास था कि 1925 में ही कह दिया था कि मेरे इस अनुसंधान पर पाँच वर्ष पश्चात् नोबेल पुरूस्कार प्राप्त होगा - और हुआ भी ऐसा ही। नोबेल पुस्कार की घोषणा होते ही उनकी गणना विश्व के महानतम वैज्ञानिकों में होने लगी और उन्हें मानद उपाधियों और सम्मान से लाद दिया गया। उन्हें लेनिन शांति पुस्कार भी दिया गया। 

डाॅ. रमन ने रंगो के संबंध में भी अनुसंधान किए है। उन्होंने इस प्रश्न को तीन भागों में बांटा - भौतिक, शारीरिक और मानव मस्तिष्क विज्ञान। रंगो की पहचान आँख की रैटिना करती है। उन्होंने रैटिना के विभिन्न भागों और उनके काम करने के संबंध में अनेक अनुसंधान किए और महत्वपूर्ण नवीन जानकारी दी। 

रमन ने प्रकाश और रंगो के अतिरिक्त ध्वनि के संबंध में भी अनेक अनुसंधान किए। इसके लिए उन्होंने अनेक वाद्य यंत्रो की ध्वनियों का अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने चुम्बकीय शक्ति, एक्सरे और समुद्री जल आदि के संबंध में भी अनुसंधानों में समय लगाया। 

उपलब्धियाँ -रमन ने अपने जीवन में अनेक उपलब्धियाँ हासिल की। उन्होंने कई महत्वपूर्ण नौकरियां छोड़ कर विज्ञान की खोज में लगे। रमन की रूचि विज्ञान में थी और वे अपना जीवन भी विज्ञान के लिए समर्पित समझते थे। परन्तु उन्हें काम करना पड़ता था फाइंनेस विभाग में। परन्तु जहाँ चाह होती है, वहाँ राह निकल ही आती है। उन्हें भी एक दिन कलकत्ता की भारतीय विज्ञान परिषद का द्वार दिखाई दिया, जहाँ सर आशुतोष मुखर्जी और सर गुरूदास बनर्जी की देख-रेख में काम होता था। रमन अपने कार्यालय के बाद वहाँ की प्रयोगशाला में आकर देर रात  तक अनुसंधान और परीक्षण करने लगे। परन्तु उनका यह सिलसिला अधिक दिन नहीं चल पाया और उनका तबादला रंगून कर दिया गया। वहाँ से उन्हें नागपुर जाना पड़ा और कुछ काल बाद पदोन्नत होकर वे अकाउंटेट जनरल बने और उन्हें कलकत्ता भेज दिया गया। यहाँ उन्होंने विज्ञान सम्बन्धी पुस्तके लिखीं और अनुसंधान किए। 

सर आशुतोष मुखर्जी, सर तारकनाथ पालित और डाॅ. रासबिहारी घोष के प्रयत्न से जब कलकत्ता में साइंस काॅलेज की स्थापना हुई तो रमन महोदय ने इतनी बड़ी सरकारी नौकरी छोड़कर काॅलेज का भौतिक विज्ञान संभाल लिया। विज्ञान के प्रति उन्होंने यह उनका काफी बड़ा और सराहनीय त्याग था। रमन ने विज्ञान संबंधी अपने कार्य की जानकारी देने के लिए अनेक बार विदेश जाना पड़ा। उस समय के विश्व विख्यात वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने डाॅ. रामन के संबंध में कहा था - ‘‘डाॅ. रमन ने केवल महत्वपूर्ण अन्वेषण ही नहीं किए, वरन् अपने प्रयासों से कलकत्ता विश्वविद्यालय में विज्ञान की खोज के लिए एक प्रगतिशील और उपयोगी संस्था की स्थापना तथा उसका विकास भी किया है।‘‘


पुस्कार -

    डाॅ. रमन ने अपने जीवन काल में अनेक उपाधियाँ व पुस्कार प्राप्त किए थे। सन् 1930 में प्रकाश के संबंध में उन्हें नोबेल पुस्कार प्राप्त हुआ। नोबेल पुस्कार की घोषणा होते ही उनकी गणना विश्व के महानतम वैज्ञानिकों में होने लगी और उन्हें मानद उपाधियों और सम्मान से लाद दिया गया। उन्हें लेनिन शांति पुस्कार भी दिया गया। भारत सरकार ने विज्ञान संबंधी उनके महान् कार्यो को ध्यान में रख 1954 में उन्हें ‘भारत रत्न‘ के सम्मान से गौरवान्वित किया। 

डाॅ. रमन के अपने वैज्ञानिक कार्यो के कारण लंदन की रायल सोसाइटी ही नहीं, अनेक देशों की विज्ञान-संस्थाओं ने उन्हें अपना सम्मानित सदस्य बनाया। नोबेल पुरूस्कार प्राप्त करने के बाद रामन केवल दो वर्ष तक ही देश की सुप्रसिद्ध संस्था ‘इडियंन इंस्टीट्युट ऑफ सांइस‘ के संचालक पद पर काम करते रहें। 

1943 में उन्होंने रमन इन्टीट्युट की स्थापना की और अपने कार्यो, लेखों, भाषणों और आविष्कारों से इस संस्था को इतना समद्ध कर दिया कि आज यह देश-विदेश में प्रसिद्ध विज्ञान संस्था है। 

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Dr. D R BHATNAGAR 

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