सोमवार, 21 नवंबर 2022

महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi)

 

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)



  • गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करम चन्द गांधी था ।
  • उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर गुजरात में  एक कुलीन घराने में हुआ था।
  • उनके पिता करम चन्द गांधी एक दीवान थे और माता पुतली बाई बहुत सीधी साधी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं ।
  • गांधी जी का 13 वर्ष की आयु में विवाह हुआ ।
  • 19 वर्ष की आयु में 4 सितम्बर 1888 को गांधी जी बम्बई से इंग्लैंड वकालत की शिक्षा ग्रहण करने को गए।
  • बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने के बाद 12 जून 1891 को भारत लौट आये और भारत आने पर गांधीजी ने वकालत करने की कोशिश की, लेकिन सफल न हो सके।
  • 1893 में महात्मा गांधी 24 वर्ष की आयु में दक्षिण अफ्रीका गए।
  • महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी 1915 को भारत लौट आए और बम्बई के अपोलो बन्दरगाह में उतरे।
  • वे वर्ष 1893 से 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे और इस प्रकार उन्होंने 21 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किये।
  • उन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों को भारत में भी दोहराया।
  • उनके जीवन को दो खण्डों में बांटा जा सकता है।
  • भारत में 1915 से 1948 तक 33 वर्ष भारत की स्वतंत्रता संघर्ष में व्यतीत किया।



गांधी जी का जीवन दर्शन

    महात्मा गांधी का ईश्वर में अटूट विश्वास था। उनके जीवन का प्रमुख उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना था। सत्य और अंहिसा उनका ब्रह्मास्त्र था। उनका जीवन पूर्णतः आध्यात्मिक था। सादा जीवन, उच्च विचार उनके जीवन का मूल मंत्र था। शरीर से दुर्बल थे किन्तु कार्य करने की असीम शक्ति रखते थे और अन्याय का प्रतिरोध पूर्णतः नैतिक और आध्यात्मिक बल से करते थे।

    महात्मा गांधी ‘सर्वधर्म समन्वय’ की भावना में विश्वास रखते थे। गांधी जी की निम्नलिखित प्रार्थना से उनकी धार्मिक विचार धारा स्वतः स्पष्ट होती है -
रघुपति राधव राजा राम, पतित पावन सीता राम
ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
    गांधी जी आदर्शवाद में विश्वास रखते थे किन्तु पूर्णतः आदर्शवादी भी नहीं थे। वे मानव को ईश्वर का रूप मानते थे।
    महात्मा गांधी का जीवन दर्शन भारतीय आदर्शवाद पर आधारित था। उनकी दार्शनिक विचारधारा निम्नांकित थी -
(1) सत्य -         ‘‘साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप।
   जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप।।
गांधी की सत्यता में शिवम् और सुन्दरम निहित है। उनके अनुसार सत्य और ईश्वर मे कोई अन्तर नहीं है, यदि कोई व्यक्ति मनसा वाचा कर्मणा सत्य का प्रयोग करता है तो वह ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। महात्मा गांधी ने My Experiments with Truth पुस्तक में लिखा -विचार में सत्य, भाषण में सत्य और कार्य में सत्य होना चाहिए।
(2) अहिंसा - ‘अहिंसा परमो धर्मः’ भगवान महावीर के इस अहिंसा के सिद्धान्त को महात्मा गाँधी ने अपने जीवन में पूर्णतः उतारा है। उनकी अहिंसा सभी से पे्रम करने की और कष्ट सहने की पे्ररणा देती है। वे सत्य को साध्य और अहिंसा को साधन मानते थे। उनके अनुसार सत्य की प्राप्ति अंहिसा के द्वारा ही संभव हो सकती है।
(3) सत्याग्रह - सत्य के लिए आग्रह करना अर्थात् सत्य का दृढ़ अवलम्बन। सत्याग्रह का प्रयोग गांधी जी ने विरोधी को कष्ट देकर नहीं वरन स्वयं को कष्ट देकर सत्य का समर्थन करते थे। उनके अनुसार बिना बल प्रयोग के अपनी बात को अटल रहकर जनमत को प्रभावित करके साध्य की  प्राप्ति की जा सकती है।
(4) निर्भिकता - सत्य एवं अहिंसा के लिए निर्भिकता आवश्यक है। जो व्यक्ति कायर और डरपोक है वह सत्य एवं अहिंसा का सिद्धान्तों का पालन नहीं कर सकता है।
(5) अपरिग्रह - महात्मा गांधी त्याग और अपरिग्रह की प्रतिमूर्ति थे। तृष्णा ही दुःख का कारण है।
(6) धर्म में आस्था - उन्होंने हरिजन (पत्रिका) में लिखा धर्महीन जीवन बिना पतवार की नाव के समान है। मनुष्य बिना धर्म के इस संसार रूपी समुन्द्र में हिचकोले खाता फिरेगा और अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा। धर्म को सर्वोपरि स्थान दिया है।
(7) पे्ररणाधार गीता - जब भी उनके समक्ष कोई समस्या उत्पन्न होती तो वे गीता का मनन एवं चिन्तन करते थे। उन्होंने लिखा जिस समय मुझे निराशा हुई, मैन भागवद् गीता को गोद में पाया।
(8) ईश्वर में अटूट श्रद्धा व विश्वास - महात्मा गांधी आस्तिक थे। वे ईश्वर में अटूट श्रद्धा एवं विश्वास रखते थे। ईश्वर ही उनका जीवन आधार था वे एकेश्वरवादी थे जो ईश्वर के दर्शन विभिन्नों रूपों में करते थे। 


गांधी जी का शिक्षा  दर्शन

    महात्मा गांधी प्रमुख राजनैतिक, दार्शनिक एवं समाज सुधारक होने के साथ एक महान शिक्षा शास्त्री भी थे। वे शिक्षा को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक प्रगति का आधार मानते थे -
उनके शिक्षा सम्बन्धी महत्वपूर्ण विचार निम्नलिखित है -
(1) साक्षरता स्वयं में शिक्षा नहीं है।
(2) शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिए।
(3) शिक्षा द्वारा बालक की समस्त अन्तर्निहित शक्तियों एवं सुखों का विकास होना चाहिए।
(4) शिक्षा ऐसी दस्तकारी या हस्त शिल्प कार्य के द्वारा दी जानी चाहिए जिससे बालकों को व्यावहारिक बनाया जा सके।
(5) शिक्षा सहसम्बन्ध के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए।
(6) शिक्षा द्वारा बेरोजगारी से बालकों की सुरक्षा होनी चाहिए।
(7) शिक्षा को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से तथा भौतिक एवं सामाजिक वातावरण से सम्बन्धित होना चाहिए।
(8) शिक्षा मातृ भाषा में होनी चाहिए।
(9) शिक्षा में प्रयोग कार्य एवं खोज का स्थान होना चाहिए।
(10)  शिक्षा उपयोगी नागरिकों का निर्माण करन वाली होनी चाहिए।

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                Dr. D R BHATNAGAR 

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