सोमवार, 28 नवंबर 2022

सामान्य विज्ञान syllabus B.Ed. 2nd year

 

COURSE CONTENT

Unit 1: General Science curriculum at secondary level

यूनिट 1: माध्यमिक स्तर पर सामान्य विज्ञान पाठ्यक्रम

■ Principles and approaches of curriculum construction.
New trends in General science curriculum.
A critical appraisal of existing General science curriculum at secondary stage.
Enrichment in General science teaching for developing scientific creativity.

पाठ्यक्रम सामग्री

पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धांत और दृष्टिकोण।

सामान्य विज्ञान पाठ्यक्रम में नए रुझान।

माध्यमिक स्तर पर मौजूदा सामान्य विज्ञान पाठ्यक्रम का आलोचनात्मक मूल्यांकन।

वैज्ञानिक रचनात्मकता के विकास के लिए सामान्य विज्ञान शिक्षण में संवर्धन।

Unit 2: Learning Resources in General Scie

. Learning resources: club, exhibition, projects, qui fair, Puzzles.
. General science laboratory- Set up and importanc
. Text books and reference materials.
यूनिट 2: सामान्य विज्ञान में सीखने के संसाधन
 . सीखने के संसाधन: क्लब, प्रदर्शनी, परियोजनाएं, क्यूई मेला, पहेलियाँ।
 . सामान्य विज्ञान प्रयोगशाला- स्थापना और महत्वपूर्ण
 . पाठ्य पुस्तकें और संदर्भ सामग्री।
Unit 3: Professional Development of Teacher
 • Professional development programs for teachers; planning, organization& evaluation.
 • Professional Ethics of general Science teacher.
 Reflective & Innovative practices in professional development of teacher.
यूनिट 3: शिक्षक व्यावसायिक विकास
 • शिक्षकों के लिए व्यावसायिक विकास कार्यक्रम; योजना, संगठन और मूल्यांकन।
 • सामान्य विज्ञान शिक्षक की व्यावसायिक नैतिकता।
 शिक्षक के व्यावसायिक विकास में चिंतनशील और अभिनव अभ्यास।
Practicum/Field Work(Any one from the following):

 1. Analyse General Science Curriculum of upper primary classes(VI-VIII) and Give your Suggestions keeping in mind the recommendations of NCF 2005.
 2. Arrange an activity for the students where they will Face a problem to be solved Creatively like- make paper planes (Hawai jahaj) and fly it to maximum Distance, move/let it fall an empty bottle kept in a shut room( without touching it) etc. Report your Observations and Interesting Findings 3. Organise a group discussion on "Reflective & Innovative practices in professional development of teachers" and summarize your conclusions.
अभ्यास/क्षेत्रीय कार्य (निम्नलिखित में से कोई एक):
 1. उच्च प्राथमिक कक्षाओं (VI-VIII) के सामान्य विज्ञान पाठ्यक्रम का विश्लेषण करें और NCF 2005 की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए अपने सुझाव दें।

 2. छात्रों के लिए एक गतिविधि की व्यवस्था करें जहां वे हल करने के लिए एक समस्या का सामना करेंगे रचनात्मक रूप से जैसे- कागज के विमान (हवाई जाहज) बनाएं और इसे अधिकतम दूरी तक उड़ाएं, इसे बंद कमरे में रखी एक खाली बोतल को स्थानांतरित करें / गिरने दें (बिना छुए) it) आदि। अपनी टिप्पणियों और दिलचस्प निष्कर्षों की रिपोर्ट करें। 3. "शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में चिंतनशील और अभिनव अभ्यास" पर एक समूह चर्चा का आयोजन करें और अपने निष्कर्षों का सारांश दें।

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                Dr. D R BHATNAGAR  

सोमवार, 21 नवंबर 2022

महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi)

 

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)



  • गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करम चन्द गांधी था ।
  • उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर गुजरात में  एक कुलीन घराने में हुआ था।
  • उनके पिता करम चन्द गांधी एक दीवान थे और माता पुतली बाई बहुत सीधी साधी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं ।
  • गांधी जी का 13 वर्ष की आयु में विवाह हुआ ।
  • 19 वर्ष की आयु में 4 सितम्बर 1888 को गांधी जी बम्बई से इंग्लैंड वकालत की शिक्षा ग्रहण करने को गए।
  • बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने के बाद 12 जून 1891 को भारत लौट आये और भारत आने पर गांधीजी ने वकालत करने की कोशिश की, लेकिन सफल न हो सके।
  • 1893 में महात्मा गांधी 24 वर्ष की आयु में दक्षिण अफ्रीका गए।
  • महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी 1915 को भारत लौट आए और बम्बई के अपोलो बन्दरगाह में उतरे।
  • वे वर्ष 1893 से 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे और इस प्रकार उन्होंने 21 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किये।
  • उन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों को भारत में भी दोहराया।
  • उनके जीवन को दो खण्डों में बांटा जा सकता है।
  • भारत में 1915 से 1948 तक 33 वर्ष भारत की स्वतंत्रता संघर्ष में व्यतीत किया।



गांधी जी का जीवन दर्शन

    महात्मा गांधी का ईश्वर में अटूट विश्वास था। उनके जीवन का प्रमुख उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना था। सत्य और अंहिसा उनका ब्रह्मास्त्र था। उनका जीवन पूर्णतः आध्यात्मिक था। सादा जीवन, उच्च विचार उनके जीवन का मूल मंत्र था। शरीर से दुर्बल थे किन्तु कार्य करने की असीम शक्ति रखते थे और अन्याय का प्रतिरोध पूर्णतः नैतिक और आध्यात्मिक बल से करते थे।

    महात्मा गांधी ‘सर्वधर्म समन्वय’ की भावना में विश्वास रखते थे। गांधी जी की निम्नलिखित प्रार्थना से उनकी धार्मिक विचार धारा स्वतः स्पष्ट होती है -
रघुपति राधव राजा राम, पतित पावन सीता राम
ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
    गांधी जी आदर्शवाद में विश्वास रखते थे किन्तु पूर्णतः आदर्शवादी भी नहीं थे। वे मानव को ईश्वर का रूप मानते थे।
    महात्मा गांधी का जीवन दर्शन भारतीय आदर्शवाद पर आधारित था। उनकी दार्शनिक विचारधारा निम्नांकित थी -
(1) सत्य -         ‘‘साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप।
   जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप।।
गांधी की सत्यता में शिवम् और सुन्दरम निहित है। उनके अनुसार सत्य और ईश्वर मे कोई अन्तर नहीं है, यदि कोई व्यक्ति मनसा वाचा कर्मणा सत्य का प्रयोग करता है तो वह ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। महात्मा गांधी ने My Experiments with Truth पुस्तक में लिखा -विचार में सत्य, भाषण में सत्य और कार्य में सत्य होना चाहिए।
(2) अहिंसा - ‘अहिंसा परमो धर्मः’ भगवान महावीर के इस अहिंसा के सिद्धान्त को महात्मा गाँधी ने अपने जीवन में पूर्णतः उतारा है। उनकी अहिंसा सभी से पे्रम करने की और कष्ट सहने की पे्ररणा देती है। वे सत्य को साध्य और अहिंसा को साधन मानते थे। उनके अनुसार सत्य की प्राप्ति अंहिसा के द्वारा ही संभव हो सकती है।
(3) सत्याग्रह - सत्य के लिए आग्रह करना अर्थात् सत्य का दृढ़ अवलम्बन। सत्याग्रह का प्रयोग गांधी जी ने विरोधी को कष्ट देकर नहीं वरन स्वयं को कष्ट देकर सत्य का समर्थन करते थे। उनके अनुसार बिना बल प्रयोग के अपनी बात को अटल रहकर जनमत को प्रभावित करके साध्य की  प्राप्ति की जा सकती है।
(4) निर्भिकता - सत्य एवं अहिंसा के लिए निर्भिकता आवश्यक है। जो व्यक्ति कायर और डरपोक है वह सत्य एवं अहिंसा का सिद्धान्तों का पालन नहीं कर सकता है।
(5) अपरिग्रह - महात्मा गांधी त्याग और अपरिग्रह की प्रतिमूर्ति थे। तृष्णा ही दुःख का कारण है।
(6) धर्म में आस्था - उन्होंने हरिजन (पत्रिका) में लिखा धर्महीन जीवन बिना पतवार की नाव के समान है। मनुष्य बिना धर्म के इस संसार रूपी समुन्द्र में हिचकोले खाता फिरेगा और अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा। धर्म को सर्वोपरि स्थान दिया है।
(7) पे्ररणाधार गीता - जब भी उनके समक्ष कोई समस्या उत्पन्न होती तो वे गीता का मनन एवं चिन्तन करते थे। उन्होंने लिखा जिस समय मुझे निराशा हुई, मैन भागवद् गीता को गोद में पाया।
(8) ईश्वर में अटूट श्रद्धा व विश्वास - महात्मा गांधी आस्तिक थे। वे ईश्वर में अटूट श्रद्धा एवं विश्वास रखते थे। ईश्वर ही उनका जीवन आधार था वे एकेश्वरवादी थे जो ईश्वर के दर्शन विभिन्नों रूपों में करते थे। 


गांधी जी का शिक्षा  दर्शन

    महात्मा गांधी प्रमुख राजनैतिक, दार्शनिक एवं समाज सुधारक होने के साथ एक महान शिक्षा शास्त्री भी थे। वे शिक्षा को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक प्रगति का आधार मानते थे -
उनके शिक्षा सम्बन्धी महत्वपूर्ण विचार निम्नलिखित है -
(1) साक्षरता स्वयं में शिक्षा नहीं है।
(2) शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिए।
(3) शिक्षा द्वारा बालक की समस्त अन्तर्निहित शक्तियों एवं सुखों का विकास होना चाहिए।
(4) शिक्षा ऐसी दस्तकारी या हस्त शिल्प कार्य के द्वारा दी जानी चाहिए जिससे बालकों को व्यावहारिक बनाया जा सके।
(5) शिक्षा सहसम्बन्ध के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए।
(6) शिक्षा द्वारा बेरोजगारी से बालकों की सुरक्षा होनी चाहिए।
(7) शिक्षा को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से तथा भौतिक एवं सामाजिक वातावरण से सम्बन्धित होना चाहिए।
(8) शिक्षा मातृ भाषा में होनी चाहिए।
(9) शिक्षा में प्रयोग कार्य एवं खोज का स्थान होना चाहिए।
(10)  शिक्षा उपयोगी नागरिकों का निर्माण करन वाली होनी चाहिए।

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                Dr. D R BHATNAGAR 

सोमवार, 14 नवंबर 2022

स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekanand)

 स्वामी विवेकानन्द

जन्म -  1963 (बंगाली परिवार)

शिक्षा - स्नातक, पिताजी के निधन के कारण घर की जिम्मेदारी 

गुरू - स्वामी रामकृष्ण परमहंस

मिशन - रामकृष्ण मिशन

शिक्षा का उद्देश्य -परमात्मा की प्राप्ति

परमात्मा की प्राप्ति ज्ञान, भक्ति एवं कर्म से भी हो सकती है।

इनके अनुसार - मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यकित ही शिक्षा है। 

विवेकानन्द - ‘‘हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जिसके द्वारा चारित्र गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य स्वावलम्बी बने।

स्वामी विवेकानन्द वेदान्त दर्शन के अनुयायी तथा उसके प्रखर उद्घोषक एवं प्रचारक थे।


 विवेकानन्द के अनुसार शैक्षिक दर्शन - 

1. शिक्षा के उद्देश्य  (Aims of Education) शारीरिक विकास - शारीरिक दुर्बलता ही व्यक्ति की पूर्णता में सबसे बड़ी बाधा है। सर्वप्रथम हमारे नवयुवकों को सबल मिलना चाहिए। यदि हमें अपने अन्दर मानव शक्ति का अनुभव कर सकते है तो उपनिषदों की आत्मा की महत्ता को अधिक अच्छी प्रकार समझ सकते है।

 () जीवन-संघर्ष के लिए तैयारी - शिक्षा का उद्देश्य बालकों को जीवन-संघर्ष के लिए तैयार करना है। जो व्यक्ति प्रकृति से संघर्ष कर सकता है उसी में चैतन्य दिखाई देता है। जहाँ चेष्टा या पुरूषार्थ है, वहीं जीवन का चिह्न तथा चेतना का प्रकाश है।

() राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीय की भवना का विकास - भारत के प्रत्येक बालक में अपने देश के प्रति गौरव का भाव होना चाहिए और साथ ही मानवता की एकता में विश्वास भी विकसित होना चाहिए। मानव निर्माण की प्रक्रिया पहले राष्ट्रीयता से आरम्भ होती है तथा शनैः-शनैः सम्पूर्ण विश्व उसमे समाहित हो जाता है।

() चरित्र विकास - विवेकानन्द ने भी चरित्र निर्माण को शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना है। चरित्र का अर्थ है व्यक्तित्व की समस्त शक्तियों का समन्वय। इसके लिए विवेकानन्द ने शिक्षार्थी द्वारा ब्रह्मचर्य के पालन पर बल दिया है। 

अध्यापक-शिष्य सम्बनध (Teacher – Pupil Relation)

    विवेकानन्द  अनुसार ‘‘मैं गुरू परम्परा को मानने वाला हूँ किन्तु प्रत्येक शिक्षक गुरू नहीं होता, गुरू-शिष्य का सम्बन्ध आध्यात्मिक और स्वयं स्फुरित होता है।’’

    गुरू को त्याग एवं तपस्या की प्रतिमूर्ति बन शिष्य के समक्ष उपस्थित होना चाहिए। तभी वह इस गौरवशाली पद का अधिकारी हो सकता है।


     विवेकानन्द  शिक्षक को बालक का मित्र, पथ-प्रदर्शक एवं परामर्शदाता मानते थे। शिक्षक को मैत्रीपूर्ण ढंग से बालक के मनोभावों का अध्ययन करना चाहिए और बालक की समस्याओं के हल हेतु पथ प्रदर्शक के रूप में परामर्श देना चाहिए। शिक्षक के बालक की अन्तर्निहित क्षमताओं के लिए सदैव जागरूक रहना चाहिए और विकास का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

    विवेकानन्द के अनुसार शिक्षक वेतन के लिए कार्य नही करता यदि वह वेतन के लिए कार्य करता है तो वह अध्यापन का कार्य नहीं कर सकता है। अध्यापन का कार्य समर्पण की भावना पर आधारित होता है, इस प्रकार वे प्राचीन गुरू परम्परा के पोषक थे।

(ख) जीवन-संघर्ष के लिए तैयारी - शिक्षा का दूसरा उद्देश्य बालकों को जीवन-संघर्ष के लिए तैयार करना है। जो व्यक्ति प्रकृति से संघर्ष कर सकता है उसी में चैतन्य दिखाई देता है। जहाँ चेष्टा या पुरूषार्थ है, वहीं जीवन का चिह्न तथा चेतना का प्रकाश है।

(ग) राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीय की भवना का विकास - भारत के प्रत्येक बालक में अपने देश के प्रति गौरव का भाव होना चाहिए और साथ ही मानवता की एकता में विश्वास भी विकसित होना चाहिए। मानव निर्माण की प्रक्रिया पहले राष्ट्रीयता से आरम्भ होती है तथा शनैः-शनैः सम्पूर्ण विश्व उसमे समाहित हो जाता है।

(घ) चरित्र विकास - विवेकानन्द ने भी चरित्र निर्माण को शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना है। चरित्र का अर्थ है व्यक्तित्व की समस्त शक्तियों का समन्वय। इसके लिए विवेकानन्द ने शिक्षार्थी द्वारा ब्रह्मचर्य के पालन पर बल दिया है।

(2) पाठ्यचर्या¼Curriculum½  - शिक्षा का आधार अव्याव्य को माना है। वे कहते है कि धर्म पाठ्यक्रम की आत्मा है क्योंकि अन्य विषय मन तथा बुद्धि का परिष्कार करते है, परन्तु धर्म हृदय को सम्मुक्त करता है। हृदय का परिष्कार करना आवश्यक है क्योंकि ईश्वर हृदय के माध्यम से ही हमें संदेश देता है। विवेकानन्द ने आध्यात्मिक विकास को जीवन का परम लक्ष्य मानते हुए भी लौकिक विकास की उपेक्षा नहीं की है। अतः उन्होंने दोनों पक्षों के विकास हेतु पाठ्यक्रम का पाठ्यचर्या में विषय निर्धारित किए है।

    लौकिक विकास हेतु उन्होंने पाठ्यक्रम में भाषा, इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, गणित, विज्ञान, Home Science, Psychology, Agriculture, Technology  व उद्योग कौशल संबंधी विषय तथा खेलकूद, व्यायाम, समाजसेवा, राष्ट्रसेवा एवं मानव सेवा सम्बन्धी क्रियाकलापों को स्थान दिया। आध्यात्मिक विकास हेतु उन्होंने साहित्य, दर्शन, धर्मशास्त्र व नीतिशास्त्र विषयों के साथ भजन, कीर्तन, सत्संग एवं ध्यान संबंधी क्रियाकलापों को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया। इस पाठ्यचर्या की दृष्टि से विवेकानन्द का प्रयास आधुनिक था।

(3) शिक्षण विधियाँ(Methods of Teaching)  - विवेकानन्द -मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता का अभिव्यक्ति ही शिक्षा है।’’ इससे ही उन्होंने विज्ञान हेतु आधुनिक शिक्षण विधियों प्रत्यक्ष अनुकरण, व्याख्यान, निर्देशन, विचार-विमर्श और प्रयोग विधियों का समर्थन किया है, किन्तु आध्यात्मिक ज्ञान हेतु अध्ययन मनन, विमर्श और प्रयोग विधियों का समर्थन किया। 

ध्यान और योग (एकाग्रता) विधि पर विशेष ध्यान दिया।

आध्यात्मिक तथा धर्म पद्धतियों की विशेषताएँ - निम्नलिखित-

  1. चित की वृतियों को योग (एकाग्रता) द्वारा 
  2. मन को केन्द्रीकरण विधि द्वारा विकसित करना।
  3. ज्ञान को व्याख्यान, तर्क, विचार-विमर्श, स्वानुभव तथा रचनात्मक कार्यो व उपदेशों द्वारा अर्जित करना।
  4. शिक्षक के गुणों तथा चरित्र को बुद्धि द्वारा अनुकरण करना।
  5. बालक को व्यक्तिगत निर्देशन तथा परामर्श विधि के द्वारा उचित मार्ग की ओर अग्रसर करना।

(4) शिक्षक शिक्षार्थी सम्बन्ध - प्रत्येक व्यक्ति अपना स्वयं शिक्षक है बाह्य शिक्षक तो केवल ऐसे सुझाव प्रस्तुत करता है जिनसे आन्तरिक शिक्षक (आत्मा) को कार्य करने और समझने के लिए चेतना मिलती है। जब तक शिक्षार्थी इन्द्रिय निग्रह नहीं करता है, उसमें सीखने के लिए प्रबल इच्छा उत्पन्न नहीं होती और वह गुरू में श्रृद्ध रखकर सत्य को जानने का प्रयत्न नहीं करता तब तक न वह भौतिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है न आध्यात्मिक। गुरू शिष्य का सम्बन्ध केवल लौकिक ही नहीं होना चाहिए, अपितु उन्हें एक-दूसरे के दिव्य स्वरूप को भी देखना चाहिए।

विवेकानन्द ने शिक्षक को परिभाषित - ‘‘शिक्षक एक दार्शनिक, मित्र तथा पथ प्रदर्शक है, जो बालक को अपने ढंग से अग्रसर होने के लिए सहायता प्रदान करता है।

Teacher is a philosopher, friend and guide helping the child to go forward in his own way.

    गुरू शिष्य की उपर्युक्त विशेषताओं के सन्दर्भ में ही विवेकानन्द गुरू गृह प्रणाली (गुरूकुल पद्धति) के समर्थक थे।




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                Dr. D R BHATNAGAR  

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

SYLLABUS, Paper-IV Basics in Education and Communication

 

Paper-IV Basics in Education and Communication

 शिक्षा और सम्प्रेषण के मूलआधार

Unit-1  Education, Nature & Purpose-

शिक्षा, प्रकृति उद्देश्य

1. Education: Meaning, Nature and purpose of Education according to

2. Vivekanand, Tagore, Gandhi, Aurobindo, Rousseau & John Dewey.

3. Important National documents: Kothari Commission, National Education Policy 1986, Revised National Policy 1992 and NCF 2005.

4. Education as a Social Process.

1. शिक्षाः अर्थ, अर्थ, प्रकृति और शिक्षा के उद्देश्य के अनुसार

2. विवेकानंद, टैगोर, गांधी, अरबिंदो, रूसो और जॉन डेवी।

3. महत्वपूर्ण राष्ट्रीय दस्तावेजः कोठारी आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986, संशोधित राष्ट्रीय नीति 1992 और एनसीएफ 2005।

4. एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में शिक्षा।

Unit- 2 Evolution and Management of Education

शिक्षा का विकास और प्रबंधन

1. Ancient Indian Education System: Vedic Era, Buddhist Era, Muslim Era & British Era - An Overview with specific reference to Teacher, Student, Methods and Contents.

2. Educational Management: Meaning, Concept, Principles.

3. Managerial Role of the Head of Institution: - Meaning, Importance and qualities, Managerial activities - Planning, Decision-making, Co-ordination, Supervision and Financing in the schools.

1. प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणालीः वैदिक युग, बौद्ध युग, मुस्लिम युग और ब्रिटिश युग - शिक्षक, छात्र, तरीके और सामग्री के विशिष्ट संदर्भ के साथ एक अवलोकन।

2. शैक्षणिक प्रबंधनः अर्थ, अवधारणा, सिद्धांत।

3. संस्थान के प्रमुख की प्रबंधकीय भूमिकाः - अर्थ, महत्व और गुण, प्रबंधकीय गतिविधियां - स्कूलों में योजना, निर्णय लेने, समन्वय, पर्यवेक्षण और वित्त पोषण।

Unit-3. Educational Guidance & Counselling.

शैक्षिक निर्देशन और परामर्श

1. Meaning, Concept, Need and Importance of Guidance & counselling in Educational Institutions.

2. Group and individual techniques of Guidance.

3. Need of Guidance & counselling for children with special needs.

4. Minimum essential Guidance programme for an Indian Secondary Schools.

1. शैक्षिक संस्थानों में निर्देशन और परामर्श का अर्थ, अवधारणा, आवश्यकता और महत्व।

2. समूह और व्यक्तिगत निर्देशन की तकनीकें।

3. विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए निर्देशन और परामर्श की आवश्यकता।

4. भारतीय माध्यमिक विद्यालयों के लिए न्यूनतम आवश्यक निर्देशन कार्यक्रम।

 Unit-4  Values Education and Peace Education

मूल्य शिक्षा और शांति शिक्षा

1. Values: Meaning, Types: Aesthetic, Spiritual, Universal, Moral and ethical etc. Role of Education in Transformation of Values in Society.

2. Value Education: Recommendations of Committees, Commissions and Policy Directives.

3. Major issues related to value Education, Methods of Value Orientation and Evaluation of value learning.

4. Peace Education - Meaning, Concept and need.

(a) Issues of National and International conflicts, social injustice, Communal conflict.

(b)Individual alienation: A Critical understanding.

(c) Role of School, Social organisations (UNESCO) and Individuals in promoting peace.

1. मूल्यः अर्थ, प्रकारः सौंदर्य, आध्यात्मिक, सार्वभौमिक, नैतिक और नैतिक आदि। समाज में मूल्यों के परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका।

2. मूल्य शिक्षाः समितियों, आयोगों और नीति निर्देशों की सिफारिशें।

3. मूल्य शिक्षा से संबंधित प्रमुख मुद्दे, मूल्य अभिविन्यास के तरीके और मूल्य सीखने का मूल्यांकन।

4. शांति शिक्षा - मतलब, अवधारणा और आवश्यकता।

(ए) राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, सामाजिक अन्याय, सांप्रदायिक संघर्ष के मुद्दे।

(बी) व्यक्तिगत अलगावः एक गंभीर समझ।

(सी) स्कूल, सामाजिक संगठनों (यूनेस्को) और शांति को बढ़ावा देने में व्यक्तियों की भूमिका।

 Unit-5  Communication Skills for the Teachers.

शिक्षकों के लिए सम्प्रेषण कौशल

1. Communication: Meaning, Concept, Elements and Process, 7 C's of Communication, Audio-Visual-Communication. Importance of Non verbal Communication in Teaching.

2. Listening & Speaking Skills, Barriers to Listening & speaking, Effective Presentation.

3. Written Communication for Teachers: Circulars, Notices, Orders, Report, and Minutes.

 1. सम्प्रेषण: अर्थ, अवधारणा, तत्व और प्रक्रिया, 7 सी सम्प्रेषण, ऑडियो-विजुअल- सम्प्रेषण। शिक्षण में गैर मौखिक सम्प्रेषण का महत्व।

2. सुनना और बोलना कौशल, सुनने और बोलने के लिए बाधाएं, प्रभावी प्रस्तुतिकरण।

3. शिक्षकों के लिए लिखित सम्प्रेषण: परिपत्र, नोटिस, आदेश, रिपोर्ट, और मिनट।

 Practicum/Field Work (Any one from the following)

प्रैक्टिकम/फील्ड वर्क (निम्नलिखित में से कोई भी एक)

 1. Interview a less educated or uneducated person about a social issue & conclude the findings in present context.

2. "Are Modern Educational ways Effective in comparison to traditional ways of teaching" Organise a debate for or against and report the outcomes.

3. How students choose their career. Discuss with the Headmaster/Principal, Parents/Students & prepare a report on it.

4. Write a small reflective note on how you found yourself under a value conflict situation in recent past

            Or

Analyse the contribution of any National or International personality in establishing peace.

5. Speak some fifty words & tell students to recall them back and note down who counts maximum.

            Or

Draft two notices for the conduction of some activity in school.

1. एक सामाजिक मुद्दे के बारे में एक कम शिक्षित या अशिक्षित व्यक्ति से मुलाकात करें और वर्तमान संदर्भ में निष्कर्ष निकालें।

2. ‘‘आधुनिक शैक्षणिक तरीके शिक्षण के पारंपरिक तरीकों की तुलना में प्रभावी हैं‘‘ परिणामों के लिए या उसके खिलाफ बहस आयोजित करें और रिपोर्ट करें।

3. छात्र अपने कैरियर का चयन कैसे करते हैं। हेडमास्टर /प्रिंसिपल, माता-पिता व छात्र से चर्चा करें और उस पर एक रिपोर्ट तैयार करें।

4. हाल ही में एक मूल्य संघर्ष स्थिति के तहत आप खुद को कैसे प्राप्त करते हैं, इस पर एक छोटा प्रतिबिंबित नोट लिखें

या

शांति स्थापित करने में किसी भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व के योगदान का विश्लेषण करें।

5. कुछ पचास शब्दों को बोलें और छात्रों को उन्हें वापस याद करने के लिए कहें और ध्यान दें कि अधिकतम गणना कौन करता है।

या

स्कूल में कुछ गतिविधि के संचालन के लिए दो नोटिस ड्राफ्ट करें।

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                Dr. D R BHATNAGAR   

शिक्षण पर अनुसंधान के प्रतिमान – Gage, Doyle और Shulman

 शिक्षण पर अनुसंधान के प्रतिमान – Gage, Doyle और Shulman   1. Ned A. Gage का प्रतिमान जीवन परिचय: पूरा नाम: Ned A. Gage जन्म: 1917...