कोठारी आयोग 1964-66
Kothari Commission 1964-66
Kothari Commission 1964-66
14 जुलाई 1964 को अपने प्रस्ताव में भारत सरकार ने आयोग की नियुक्ति की इसे भारतीय शिक्षा आयोग(1964-66) कहते है। इस आयोग क अध्यक्ष प्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रो. डी. एस. कोठारी थे (दौलत सिंह कोठारी) उनके नाम पर इस आयोग को कोठारी कमीशन के नाम से भी जाना जाता है।कोठारी आयोग की नियुक्ति के कारणशिक्षा में प्रगति हेतु 1948 ई. राधाकृष्णन् आयोग व 1952 ई. में मुदालियर आयोग की स्थापना की गयी। इन आयोगों की संस्तुतियाँ आंशिक रूप से क्रियान्वित की जा सकी जिससे शिक्षा क्षेत्र में सुधार कम हुआ और दोष अधिक आ गए, अतः इन दोनो को दूर करने के लिए 1964 ई. मे एक अन्य शिक्षा आयोग की नियुक्ति की गई जिसके अध्यक्ष श्री. दौलतसिंह कोठारी थे और इन्ही के नाम पर इसे कोठारी आयोग के नाम से जाना गया। इस आयोग की नियुक्ति 4 जुलाई 1964 को की गई तथा गाँधी जयन्ती के दिन (2 अक्टूबर) को यह क्रियाशील हुआ। डाॅ. कोठारी उस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे।कोठारी आयोग के सदस्यअध्यक्ष:- प्रो डी. एस. कोठारी, विश्वविद्यालय अनुदान, नई दिल्ली।सचिव:- श्री जे. पी. नायक, अध्यक्ष, शैक्षिक नियोजन प्रशासन एंव वित्त विभाग, गोखले राजनिति एवं अर्थशारूत्र संस्थान पूना।सहसचिव:- श्री जे. एफ मेन्डूगल, सहायक निदेशक स्कूल और उच्च शिक्षा विभाग यूनेस्कों, पेरिस।सदस्य:-
- श्री ए. आर. दाउद, कार्यावाहक निदेशक माध्यमिक शिक्षा प्रसार कार्यावाहक निदेशालय नई दिल्ली।
- श्री एच. इलविन निदेशक, शिक्षा संस्थान, लन्दन विश्वविद्यालय लन्दन।
- श्री आर. ए. गोपालस्वामी, निदेशक इन्स्टीट्यूट ऑफ एप्लाई मैन-पावर रिसर्च न्यू दिल्ली।
- प्रो. सतादोसी इहारा स्कूल ऑफ साइस एण्ड इंजीनियरिंग वासेडा यूनिवर्सिटी टोकियों (जापान)
- डाॅ. वी. एस. झा, डायरेक्टर ऑफ काॅमनवेल्थ एजूकेशन लिया इसन यूनिट लन्दन (इग्लैण्ड)
- श्री पी. एन कृपाल, शिक्षा सलाहकार एंव सचिव, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
- प्रो. एम. वी. माथुर, उप कुलपति राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
- डाॅ. बी. पी. पाल, डायरेक्टर, एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटयूट, नई दिल्ली।
- के. एस. पाणणिडकर, हैड ऑफ दि डिपार्टमेन्ट ऑफ एजूकेशन, कर्नाटक यूनिवर्सिटी, धाखाड।
- प्रो. रोजर रिवेली, डायरेक्टर, सेन्टर फाॅर पापूलेशन स्टडीज, हारवार्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ, हारवार्ड यूनीवर्सिटी, केम्ब्रिज, यू.एस.ए.।
- डाॅ. के. जी. सेयदेन, डायरेक्टर, एशियन इनस्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन प्लानिंग एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन, नई दिल्ली।
- डाॅ. टी. सेन, उपकुलपति, जाधवपुर विश्वविद्यालय, कलकत्ता।
- प्रो. एस. एस सुमोवस्की, प्रोफसर ऑफ फिजिक्स, मास्को यूनीवर्सिटी, मास्को (रूस)
- एम. जी. थाॅमस इन्सपेक्टर जनरल ऑफ एजूकेशन, फ्रांस।
कोठारी आयोग की रिपोर्टआयोग ने अपने कार्य को पूरा करने के लिए 12 मुख्य कार्य दल तथा 7 सहायक कार्यदल बनाये इन कार्यदलों ने लगभग 100 दिन तक राष्ट्र क विभिन्न राज्यों के स्कूलों, काॅलेजो तथा विश्वविद्यालयों का भ्रमण किया तथा लगभग 9009 व्यक्तियों से साक्षात्कार किया आयोग ने 2400 से अधिक लिखित उत्तरों का विश्लेषण भी किया तथा इन सभी सूचनाओं क आधार पर 673 पृष्ठों का प्रतिवेदन तैयार किया जिसे 20 जून 1966 को भारत सरकार को समर्पित किया (रिपोर्ट पेश की) गया। आयोग ने अपने प्रतिवेदन मे शिक्षा के विभिन्न पक्षो पर सघन प्रकाश डाला तथा राष्ट्रीय उत्थान में शिक्षा के महत्वपूर्ण साधन के रूप में विकसित करने की दृष्टि से अनेक महत्नपूर्ण सुझाव दिये।’’शिक्षा आयोग’’ को अपना प्रतिवेदन 31 मार्च सन् 1966 तक प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया था। किन्तु कठिनाईयों के कारण, आयोग ने अपने प्रतिवेदन को निर्धारित तिथि से लगभग 3 माह पश्चात् अर्थात् 29 जून 1966 को भारत सरकार के तात्कालीन शिक्षामंत्री श्री एम. सी. छागला के समक्ष प्रस्तुत किया। लगभग 700 पृष्ठों का यह प्रतिवेदन तीन भागों में विभाजित है और इसका नाम है ’’शिक्षा एंव राष्ट्रीय प्रगति’’ (Educational & National Development)कोठारी आयोग की सुझाव व सिफारिशें1. पंचम पंचवर्षीय योजना पूर्ण होने तक निम्न माध्यमिक तथा प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क बनाया जाये।2. प्राथमिक स्तर के बालकों को निःशुल्क पाठ्यपुस्तके उपलब्ध करायी जाये।3. उच्च स्तर पर बुक बैंक की व्यवस्था की जाये।4. प्रतिभा सम्पन्न शिक्षार्थियों को छात्रवृत्तियां दी जाये।5. शिक्षकों की स्थिति, वेतन, प्रशिक्षण इत्यादि में सुधार किया जाये।6. आदिवासियोें तथा पिछडंे वर्ग की शिक्षा में सुधार या विस्तार करने हेतु इन्हे छात्रवृत्तियाँ छात्रावास आदि की सुविधाएँ उपलब्ध करवायी जाये।7. अपंग बालकों के लिए प्रत्येक जिले में पृथक विद्यालय की स्थापना की जाये।8. स्त्री व पुरूषों की शिक्षा के अन्तर को दूर किया जाये।9़. प्रत्येक विद्यालय में राज्य विद्यालय शिक्षा परिषद् की स्थापना की जाये।10. शिक्षा मंत्रालय में राष्ट्रीय विद्यालय शिक्षा परिषद् की स्थापना की जाये।11. छात्राध्यापकों के लिए सार्थक और विशेष पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाये।12. सरकारी विद्यालयों के समान गैर-सरकारी विद्यालयों की स्थिति मे सुधार किया जाये।13. स्त्रियों के लिए शिक्षा व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारम्भ किए जाये।14. विद्यालय मेे प्रचलित पाठ्यक्रम क दोषों को समाप्त किया जाये।15. प्रशिक्षण अवधि दो वर्ष की होंनी चाहिए।16. शिक्षा के सभी स्तरों पर सामान्य शिक्षा के अनिवार्य अंग के रूप मे समाज सेवा और कार्य अनुभव इत्सादि सम्मिलित होने चाहिए।17. नैतिक शिक्षा तथा सामाजिक उत्तर दायित्व की भावना उत्पन्न करने पर बल दिए जाए।18. माध्यमिक शिक्षा को व्यावसायिक बनाया जावे।19. उन्नत अध्ययन केन्द्र (Center of Adanced studies) को अधिक सुदृढ बनाया जाये और बडे़ विश्वविद्यालयों में एक ऐसी संस्था खोली जाए जो उच्चतम अन्तर्राष्ट्रीय मानको को प्राप्त करने का उद्देश्य रखे।20. विद्यालय के लिए अध्यापको के प्रशिक्षण तथा श्रेणी पर विशेष बल दिया जाये।21. शिक्षा के पुननिमार्ण मे कृषि में अनुसंधान तथा इससे सम्बन्धित विज्ञानांे को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।कोठारी आयोग के क्षेत्र1. शिक्षा के राष्ट्रीय उद्देश्य/लक्ष्य2. शिक्षा की संरचना3. अध्यापको की दशा4. अध्यापक प्रशिक्षण5. नामाकंन तथा मानव शक्ति6. शैक्षिक समानता7. स्कूल शिक्षा का विस्तार8. स्कूल पाठ्यक्रम9. स्कूल शिक्षा पद्धति10. स्कूल निरीक्षण11. उच्च शिक्षा के उद्देश्य12. उच्च शिक्षा में प्रवेश व कार्यक्रम13. विश्वविद्यालयों की व्यवस्थाएँ14. कृषि शिक्षा15. व्यवसायिक, तकनीकी तथा इंजनियरिंग शिक्षा16. विज्ञान शिक्षा तथा अनुसंधान17. प्रौढ़ शिक्षा18. शैक्षिक योजना प्रशासन19. शैक्षिक अर्थव्यवस्थाकोठारी आयोग का मूल्यांकनशिक्षा आयोग के मूल्यांकन की दो कसौटियाँ हो सकती है-1. आयोग के गुणों को परखना2. आयोग के दोषों का विश्लेषण करना1. जन-शिक्षा प्रचार व प्रसार के लिए व्यावहारिक शिक्षा का स्वरूप प्रस्तुत करना।2. वैज्ञानिक प्रयोगों एवं अनुसन्धानों को शिक्षा के क्षेत्र में उपर्युक्त स्थान प्रदान करना।3. शिक्षा के सर्वागिण पक्षों में सन्तुलित विकास की रूपरेखा प्रस्तुत करना तथा उसके पुनर्संगठन सम्बन्धी ठोस सुझाव प्रस्तुत करना।4. शिक्षा पर और अधिक धन व्यय करने की सिफारिश करना।कोठारी आयोग के गुण
1. जन-शिक्षा प्रचार व प्रसार के लिए व्यावहारिक शिक्षा का स्वरूप प्रस्तुत करना।2. वैज्ञानिक प्रयोगों एवं अनुसन्धानों को शिक्षा के क्षेत्र में उपर्युक्त स्थान प्रदान करना।3. शिक्षा के सर्वागिण पक्षों में सन्तुलित विकास की रूपरेखा प्रस्तुत करना तथा उसके पुनर्संगठन सम्बन्धी ठोस सुझाव प्रस्तुत करना।4. शिक्षा पर और अधिक धन व्यय करने की सिफारिश करना।5. सभी छात्रों को प्रजातान्त्रिक समानता के अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करना।6. संवैधानिक शिक्षा के लक्ष्यों की पूर्ति हेतु ठोस कदम उठाना।7. माध्यमिक शिक्षा को पूर्ण व्यवसायोन्मुखी बनाकर उच्च शिक्षा की गुणवता में वृद्धि करना।8. शिक्षा के सभी स्तरों के लिए अनुकूल, सन्तुलित पाठ्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत करना।
कोठारी आयोग के दोष
1. शिक्षा आयोग के प्रयासों के फलस्वरूप बेसिक, शिक्षा का स्वरूप समाप्त हो गया।2. अंग्रेजी भाषा पर अतिक्ति बल देने से भारतीय भाषाओं का विकास अवरूद्ध हो गया।3. संस्कृति अध्ययन की पूर्ण उपेक्षा की गयी।4. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर अनावश्यक बल देने से बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास अवरूद्ध हो गया।5. प्रारम्भिक शिक्षा के आधार को मजबूत बनाने का सार्थक प्रयास नहीं किया गया।6. शिक्षकों को अपेक्षित सुरक्षा प्रदान करने में शिक्षा आयोग पूर्ण असफल रहा।7. अनेक महत्वपूर्ण सुझावों को धन के अभाव में क्रियान्वित नहीं किया जा सकती अतः शिक्षा की यथास्थिति बनी रही।8. इस आयोग के अनेक विदेशी एवं देशी सदस्यों ने आयोग के कार्य मंे उपेक्षा भाव का प्रदर्शन किया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें