फ्रोबेल
Frobel
फ्रेडरिक फ्रोबेल का जन्म 21, अप्रैल, 1782 को दक्षिणी जर्मनी के एक गाँव में हुआ था। जब वह नौ महीने का ही था उसकी माता का देहान्त हो गया। पिता से बालक फ्रोबेल को उपेक्षा मिली। विमाता उससे घृणा करती थी। इससे फ्रोबेल प्रारम्भ से ही नितान्त एकाकी हो गया। फ्रोबेल पर इस एकाकीपन का प्रभाव पड़ा और वह आत्मनिष्ठ हो गया। वह प्रकृति के सान्निध्य में अपना समय व्यतीत करने लगा।
इसके दो परिणाम हुए: पहला, उसमें अन्तदर्शन की क्षमता विकसित हो गई। दूसरा, जड़ और प्रकृति में भी उसे अपना स्वरूप दिखने लगा। इसी के आधार पर उसने ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।कुछ समय फ्रोबेल ने अपने मामा के साथ बिताये। इस दौरान उसे विद्यालय जाने का अवसर मिला पर शिक्षा में उसकी प्रगति असन्तोषजनक रही। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में एक फोरेस्टर के अधीन कार्य सीखने का अवसर मिला पर प्रकृति-प्रेम के अतिरिक्त वह कोई प्रशिक्षण नहीं ले सका।
सत्रह वर्ष की अवस्था में फ्रोबेल ने जेना विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया पर अपनी निर्धनता के कारण वह शिक्षा पूरी नहीं कर पाया। घर वापस आकर कृषि-कार्य में हाथ बटाँने लगा। 1802 में पिता की मृत्यु के बाद फ्रोबेल ने इधर-उधर भटकते हुए विभिन्न तरह की नौकरियाँ की पर वह सफल नहीं हुआ। अंततः फ्रेंकफर्ट में हेर ग्रूनर के निमन्त्रण पर एक नार्मल स्कूल में ड्राइंग का अध्यापक बन गया।
सन् 1808 में फ्रोबेल पेस्टोलॉजी की शिक्षा व्यवस्था के अवलोकन हेतु वरडेन पहुँचा। उसने वहाँ बच्चों के संदर्भ में दो बातों को गहराई से महसूस किया। पहला, बच्चों के आत्मभाव प्रकाशन हेतु संगीत आवश्यक है, तथा, दूसरा, बच्चों की ड्राइंग में विशेष रूचि होती है।फ्रोबेल की रूचि वैज्ञानिक सिद्धान्तों में बढ़ती जा रही थी। उसने गणित और खनिज विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु पहले गोरिन्जन विश्वविद्यालय और बाद में बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।
बर्लिन में उन्होंने प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर वीज के संरक्षण में गहन अध्ययन किया। नेपोलियन ने जब जर्मनी पर आक्रमण किया तो फ्रोबेल उसके विरूद्ध जर्मनी की सेना में भर्ती हुआ। 1814 ई0 में फ्रोबेल बर्लिन म्यूजियम का सहायक क्यूरेटर नियुक्त हुआ। वह खनिज-विज्ञान का अध्यापक नियुक्त हुआ।
फ्रोबेल के जीवन का सर्वाधिक रचनात्मक काल की शुरूआत 1817 ई0 में होती है जब उसने अपने दो भतीजों एवं कुछ अन्य लड़को को लेकर कीलहाऊ में एक विद्यालय की स्थापना की।
यहीं पर 1826 ई0 में फ्रोबेल ने विल्हेमिन होफमिस्टर नामक सम्पन्न महिला से विवाह किया। इससे फ्रोबेल के सारे आर्थिक संकट समाप्त हो गए। कीलहाऊ में ही उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एडुकेशन ऑफ मैन’ की रचना की। इसके उपरान्त स्विटजरलैंड में फ्रोबेल ने कई संस्थाओं का संचालन किया। अब फ्रोबेल पूर्व विद्यालय शिक्षा में सुधार हेतु व्यावहारिक कार्य करना चाहता था। इस उद्देश्य से 1837 ई0 में जर्मनी के पहाड़ी क्षेत्र के ब्लैकनवर्ग नामक गाँव में प्रथम ‘किण्डरगार्टेन’ की स्थापना की। इसके उपरान्त फ्रोबेल जीवन पर्यन्त ‘किण्डरगार्टेन’ के आन्दोलन को आगे बढ़ाने में लगा रहा। अन्ततः 1852 में इस महान शिक्षाशास्त्री की मृत्यु हो गई।
फ्रेडरिक फ्रोबेल के दार्शनिक विचार
दार्शनिक विचारधारा के विकास के इस बिन्दु पर फ्रोबेल के विचारों का प्रादुर्भाव हुआ। शैलिंग एवं हीगल के दर्शन के आधार पर फ्रोबेल ने अपना ‘एकता का सिद्धान्त’ का विकास किया। वह ‘एडुकेशन ऑफ मेन’ में लिखता है ‘‘यह एकता का सिद्धान्त बाह्य-प्रकृति एवं आत्म-प्रकृति में एक-सा ही व्यक्त है। जीवन भौतिक एवं आत्मन् के समन्वय का परिणाम है। बिना पदार्थ के आत्मन् आकारहीन है और बिना मनस् के पदार्थ प्राणहीन है।’’
फ्रोबेल पर हीगल के द्वन्द्वात्मक विचारों का भी प्रभाव दिखता है। फ्रोबेल कहते हैं ‘‘प्रत्येक सत्ता तभी प्रत्यक्ष होती है जब वह अपने से भिन्न सत्ता के साथ उपस्थित होती है और जब उस तत्व से उसकी समानता-असमानता स्पष्ट हो चुकी होती है।’’ फ्रोबेल पर जर्मन दार्शनिक के0सी0एफ0 क्राउस का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। जिसने ज्ञान की विभिन्न विधियों एवं क्षेत्रों में समन्वय स्थापित किया। क्राउस प्रकृति एवं तर्क (विचार) दोनों में ही ईश्वर का दर्शन करता है।
विकास का सिद्धान्तफ्रोबेल के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति विकास की पाँच भिन्न-भिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। ये हैं-
शैशव काल (जन्म से तीन वर्ष की अवधि)- इस काल में बच्चे के इन्द्रिय या संवेदी विकास पर जोर दिया जाना चाहिए।बाल्यकाल (तीन से पाँच वर्ष तक की अवधि)- इस काल में भाषा का विकास होता है। शरीर की जगह मस्तिष्क पर ध्यान दिया जाने लगता है। सभी वस्तुओं का सही नाम बच्चों को इस काल में बताया जाना चाहिए। साथ ही सही उच्चारण का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।कैशोर्य (छह से चैदह वर्ष तक की अवधि),तरूण (चैदह से अठारह वर्ष तक की कालखंड), तथाप्रौढ़ (अठारह वर्ष के बाद की अवधि)। प्रत्येक भावी स्तर का विकास बहुत हद तक पिछले स्तर के विकास पर निर्भर करता है।
फ्रेडरिक फ्रोबेल का शिक्षा-दर्शनफ्रोबेल इस सिद्धान्त पर विश्वास करते हैं कि सारी संभावनायें, क्षमतायें एवं शक्तियाँ बालक के अन्दर निहित है। शिक्षा व्यवस्था का कार्य विद्यार्थियों को उपयुक्त वातावरण एवं अवसर प्रदान करता है ताकि विद्यार्थी अन्तर्निहित संभावनाओं एवं क्षमताओं के अनुरूप अधिक से अधिक विकास कर सके। विकास वस्तुतः अन्दर से आरम्भ होता है। बाहर से इसे थोपा नहीं जा सकता है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में बालक को बाहर से उतना नहीं देना पड़ता है जितना अन्तर्निहित शक्तियों का प्रकाशन करना। बिना आवश्यकता अनुभव किए बालक शायद ही कुछ सीख सके।
शिक्षा का उद्देश्य
- एकता या सामन्जस्य का बोध
- व्यक्ति में आध्यात्मिक प्रकृति को जागृत करना
- स्वतंत्रता एवं आन्तरिक संकल्प शक्ति का विकास
- सामाजिक भावना का विकास
- चरित्र निर्माण
शिक्षा की योजनाफ्रोबेल ने बच्चों की शिक्षा के लिए व्यापक योजना बनाई। अपनी शैक्षिक योजना में फ्रोबेल ने बच्चे की आत्म-क्रिया एवं खेल को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना।शैक्षिक प्रक्रिया में क्रिया का स्थानफ्रोबेल ने शिक्षा में तीन प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख किया है:-
- आवश्त्यात्मक या लयात्मक क्रियायें
- वस्तुओं पर आधारित क्रियायें
- कार्य एवं व्यवसाय
खेलफ्रोबेल खेल को बालक की शिक्षा का एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है। फ्रोबेल ने खेल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा ‘‘खेल मनुष्य के लिए, विशेषतः बालक के लिए उसके अन्तःजगत एवं बाह्य-जगत का दर्पण है और इस दर्पण की भीतर से आवश्यकता है। अतः यह जीवन एवं लगन-शक्ति को व्यक्त करने वाली प्रवृति है।’’ इस प्रकार मानव-शिक्षा के इतिहास में फ्रोबेल पहला व्यक्ति है जिसने खेल के शैक्षिक महत्व को समझा और इसे शिक्षा का माध्यम बना दिया। फ्रोबेल ने खेल को आत्मप्रेरित, आत्मनियन्त्रित एवं स्वचालित क्रिया माना। ‘उपहार’ भी खेल साम्रगी है।विद्यालयी पाठ्यक्रमफ्रोबेल पाठ्यक्रम का विभाजन चार प्रमुख भागों में करते हैंः (अ) धर्म एवं धार्मिक शिक्षा (ब) प्राकृतिक विज्ञान एवं गणित (स) भाषा एवं (द) कला एवं कलात्मक वस्तु। इन विषयों के अध्ययन से छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास संभव हो सकता है। शिक्षा के इतिहास में फ्रोबेल पहला व्यक्ति था जिसने ‘क्रिया’ को पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान दिया।किण्डरगार्टन‘किण्डरगार्टन’ नाम फ्रोबेल के मस्तिष्क में 1840 ई0 में आया जब वह बसन्त ऋतु में एक दिन अपने मित्रों के साथ किलहाउ से बेन्कनड्रग जा रहा था। उसने एक पहाड़ी से रीने नदी की घाटी को देखा जो उसे एक अतिसुन्दर बगीचे की तरह मनमोहक लगी। वह चिल्ला उठा ‘‘मुझे मिल गया। मेरी संस्था का नाम किण्डरगार्टन होगा।’’ यद्यपि वास्तविक रूप में 1843 ई0 के पहले किण्डरगार्टन की स्थापना नहीं की गई पर उपर्युक्त घटना के आधार पर किण्डरगार्टन की स्थापना का वर्ष 1840 बताया जाता है।शिक्षण-विधि
- खेल विधि
- आत्मक्रिया विधि
- स्वतंत्र एवं निरन्तर सीखने की विधि
- वस्तुओं से सीखने की विधि
अध्यापक का कार्यफ्रोबेल के अनुसार बालक की खेल प्रवृतियों का ठीक दिशा में संचालन किया जाना चाहिए। समुचित निर्देशन के आभाव में खेल एक उद्देश्यहीन क्रिया बनकर रह जाती है। खेल का उचित दिशा में संचालन में अध्यापकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
फ्रोबेल ने आन्तरिक विकास पर बहुत अधिक जोर दिया है। इससे बाह्य विकास की उपेक्षा हुई। वस्तुतः आन्तरिक एवं बाह्य दोनों पक्षों का ही समन्वित विकास होना चाहिए।किण्डरगार्टन के गीत, खेल उपहारों के प्रयोग में अनुकरण एवं निर्देश पर काफी जोर है। वस्तुतः बच्चों को स्वतः क्रिया करने का अवसर मिलना चाहिए।
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