गिजुभाई बधेका
- गिजुभाई का जन्म 15 नवम्बर, 1885 को सौराष्ट्र के चित्तल नामक स्थान में हुआ था।
- उनका असली नाम 'गिरिजा शंकर बधेका' था, लेकिन वे गीजू के नाम से ही प्रसिद्ध हुए।
- बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण लोग उन्हें 'मोछाई माँ' अर्थात् मूछों वाली माँ भी कहते थे।
- छोटे बच्चों की शिक्षा को नई दिशा देने ने इनका अत्याधिक योगदान रहा है।
- बारदोली सत्याग्रह के समय लोगों की सहायता के लिए बच्चों की 'वानर सेना' संगठित की।
- गीजू भाई को कॉलेज की शिक्षा बीच में छोड़ कर आजीविका के लिए 1907 में पूर्वी अफ्रीका जाना पड़ा।
- वहाँ से वापस आने पर उन्होंने कानून की शिक्षा पूरी की और वकालत करने लगे थे।
दक्षिणमूर्ति छात्रावास की स्थापना
गिजुभाई अपने पुत्र की शिक्षा के सिलसिले में जब छोटे बच्चों के विद्यालय में गए तो उन्हें मांटेसरी पद्धति की एक पुस्तक मिली। उसका गिजुभाई पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उस पद्धति को तथा पश्चिम की कुछ अन्य शिक्षा पद्धतियों को मिलाकर भारतीय परिस्थितियों के अनुसार बच्चों की आरंभिक शिक्षा को नया रूप देने का काम उन्होंने हाथ में लिया।
सर्वप्रथम भावनगर में 'दक्षिणमूर्ति' नाम से एक छात्रावास की स्थापना हुई। अपनी वकालत छोड़कर गिजूभाई इसी काम में जुट गए। नाना भाई भट्ट इसमें उनके सहयोगी थे। शिक्षा की नई पद्धति के प्रयोग के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण आवश्यक समझ कर गीजू भाई के आचार्यत्व में 'दक्षिणमूर्ति' को अध्यापक प्रशिक्षण केन्द्र का रूप दे दिया गया।
1920 में एक बाल मंदिर की स्थापना हुई। साथ ही यह भी आवश्यक था कि बच्चों के लिए रोचक ढंग की उपयुक्त पाठ्य-सामग्री तैयार की जाए। गिजुभाई ने यह काम भी अपने हाथ में ले लिया। इसके लिए उन्होंने विभिन्न शैलियों में एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी इन पुस्तकों में से अनेक आज भी काम में आ रही हैं।
गिजुभाई बालकों के गांधी माने जाते थे। गांधी जी ने जो काम अहिंसक नीति से देश के लिए किया। बाल शिक्षा के क्षेत्र में वही काम गिजुभाई ने उस समय में कर दिखाया। बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु गिजुभाई ने अपने जीवन काल में जो कार्य किया उसका उदाहरण ढूंढना कठिन है।
शिक्षा साहित्यगिजुभाई की शिक्षा संबंधी 15 मौलिक रचनाएं हैं। इसके अतिरिक्त अपने अन्य साथियों के सहयोग से उन्होंने लगभग 223 पुस्तके लिखी थी। उनका साहित्य गुजराती में है उनका अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। उनका साहित्य बाल मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र एवं किशोर साहित्य से संबंधित है।
शिक्षण पत्रिकामाता-पिता और शिक्षक-शिक्षिका का सही मानस जानने के लिए गिजुभाई ने गुजराती में एक छोटी शिक्षण पत्रिका निकाली थी। इस पत्रिका ने बाल-संगोपन, बाल-शिक्षण, बाल-संस्कार और बाल-जीवन के मर्म की जो शिक्षा दी, उससे हजारों परिवारों में प्रकाश फैला। इस साहित्य में जो मौलिकता, मर्मस्पर्शी, सरलता, प्रेरणा और प्राण है, उसी से गिजुभाई अविस्मरणीय रहेंगे। गुजराती की भांति इस पत्रिका के मराठी और हिंदी संस्करण भी निकलते रहे।
दिवास्वप्नबाल शिक्षा के जगत में गिजुभाई की एक अनुपमकृति ‘दिवास्वप्न’दिवास्वप्न की चर्चा करते हुए गिजुभाई ने एक समकालीन साथी और सहयोगी स्वर्गीय श्री हरि भाई द्विवेदी ने लिखा था-दिवास्वप्न क्या है?यह प्राथमिक शाला की एक स्वल्प समालोचना है और भविष्य की नवीन प्राथमिक पाठशाला के मनोहर और स्पष्ट रूप की एक सुंदर झांकी हैं।इसकी विशेषता यह है कि यह सारी पुस्तक कहानी की शैली में लिखी गई हैl
शिक्षण विधिगिजुभाई की एक अनुपम कृति है। “प्राथमिक शाला में भाषा शिक्षा” इस पुस्तक में एक शिक्षक और बालक के बीच उस प्रक्रिया की चर्चा है। जिससे बालक की भाषा शिक्षा की बुनियाद तैयार होती है। इस पुस्तक के चार खंड हैं। प्रथम खंड में माइकल वेस्ट सन 1920 की भांति सबसे पहले वाचन पर बल दिया गया है। इसके पश्चात वे रेखा चित्रण से लेखन को प्रारंभ करते हैं।
बालकों का उद्धार कर कर गिजुभाई ने अनगिनत माता-पिता ओं को बाल स्वातंत्र्य की बाल भक्ति की और बाल पूजा की दीक्षा दी हैं। गुजरात में बाल भक्ति के पागलपन को फैलाने वाले इंदु मिशनरियों ने समाज के मध्यम वर्ग के समुचित शुरू को ही बदल डाला है और गुजरात में असम के बाल मंदिरों की स्थापना करके इन्होंने पनपाया और परिपुष्ट किया है।
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Dr. D R BHATNAGAR
M. Ed, व B. Ed. 2nd year के लिए
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