शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

ज्ञान का संचार (transmission of knowledge)

 

ज्ञान का संचार  
transmission of knowledge



    ज्ञान संचार का आशय उस प्रक्रिया से है जब ज्ञान का प्रयोग किसी दूसरी स्थिति में किया जाता है या ज्ञान को किसी दूसरे विषय से सम्बन्धित कर दिया जाता है तथा ज्ञान का व्यापक प्रचार - प्रसार किया जाता है, जैसे- एक छात्र जब गणित के ज्ञान का उपयोग भौतिक विज्ञान में करता है तो यह ज्ञान का संचार माना जायेगा। दूसरे शब्दों में ज्ञान का संचार वह प्रक्रिया है जिसमें ज्ञान का प्रयोग बहुउद्देशीय एवं बहुआयामी होता है इसलिये एक शिक्षक द्वारा छात्रों के बीच ज्ञान संचार का निर्माण किया जाता है। एक पर्यावरणीय विषय का शिक्षक छात्रों को पर्यावरण। पढ़ाते समय भूगोल, विज्ञान तथा समाजशास्त्र का ज्ञान प्रदान करता है तथा बताता है कि ये विषय पर्यावरणीय ज्ञान से सम्बन्धित हैं। छात्र स्वयं भी विविध विषयों के ज्ञान को एक - दूसरे में प्रयोग करता है। इस प्रकार ज्ञान संचार की प्रक्रिया शिक्षक एवं छात्र दोनों के माध्यम से सम्पन्न की जाती है।  

1. शिक्षण विधियों में संचार (Transmission in teaching methods) – 

शिक्षक द्वारा पृथक् - पृथक् विषयों के लिये पृथक् - पृथक् शिक्षण विधियों का उपयोग किया जाता है। शिक्षण विधियों का स्वरूप विषयगत् आधार पर निर्मित किया गया है फिर भी अनेक शिक्षण विधियाँ ऐसी होती हैं जो कि एक से दूसरे विषयों में प्रभावी रूप से संचार कर जाती हैं अर्थात् उनका प्रयोग होता है। इस प्रकार की शिक्षण विधियों का व्यापक प्रचार - प्रसार हो जाता है; जैसे- समस्या समाधान शिक्षण विधि तथा प्रोजेक्ट विधि का प्रचलन लगभग अनेक विषयों में देखा जाता है। यह कार्य शिक्षक एवं छात्रों के सहयोग से होता है। जब शिक्षक एवं छात्र दोनों के द्वारा इस विधि को श्रेष्ठ समझा जाता है तो इसका संचार व्यापक रूप से होता है।

2. शिक्षण सूत्रों में संचार (Transmission in teaching maxims) –

शिक्षण सूत्रों के विविध रूपदेखे जाते हैं परन्तु इनका प्रयोग लगभग सभी विषयों के शिक्षण में किया जाता है, जैसे- ज्ञात से अज्ञात की ओर शिक्षण का सूत्र सभी विषय तथा सभी प्रकार की शैक्षिक गतिविधियों में किया जाता है। प्रत्येक छात्र से शिक्षक सर्वप्रथम उस विषय पर चर्चा करता है जिसे वह जानता है। इसके पश्चात् व छात्र को उस नवीन ज्ञान को प्रदान करता है जो शिक्षक के पास उपलब्ध है। इस प्रकार ज्ञान का संचार शिक्षण सूत्रों के माध्यम से सम्पन्न होता है। 

3. शिक्षण सिद्धान्तों में संचार (Transmission in teaching principles) – 

शिक्षण सिद्धान्तों में छात्र को शारीरिक एवं मानसिक रूप से क्रियाशील रखने का सिद्धान्त प्रमुख रूप से स्वीकार किया जाता है। इसके लिये यह देखा जाता है कि यह सिद्धान्त सभी विषयों में समान रूप से प्रयोग होता है। हिन्दी विषय में भी प्रयोग किया जाता है तथा विज्ञान विषय में भी प्रयोग किया जाता है। विज्ञान विषय में छात्रों को करके सीखने के अवसर सरलता उपलब्ध हो जाते हैं परन्तु हिन्दी विषय में इसके लिये व्यूह रचना तैयार की जाती है। यह सिद्धान्त सभी विषयों में संचारित होता है। इस प्रकार ज्ञान का संचार सभी विषयों में सैद्धान्तिक रूप में होता है। 

4. पाठ्यक्रम में संचार (Transmission in curriculum) – 

पाठ्यक्रमीय व्यवस्था में संचार की प्रक्रिया देखी जाती है। अनेक विषय परस्पर सम्बन्धित होते हैं, जैसे- इतिहास, नागरिकशास्त्र तथा भूगोल विषय का पृथक् - पृथक् पाठ्यक्रम होता है परन्तु जब सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाता है तो इसमें इन उप विषयों को सम्मिलित किया जाता है। इन विषयों के वे प्रकरण सामाजिक अध्ययन में स्थान प्राप्त करते हैं जो कि सामाजिक एवं मानवीय गतिविधियों से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार पाठ्यक्रम में भी ज्ञान का संचार सम्भव होता है।

 5. अधिगम गतिविधियों में संचार (Transmission in learning activities) – 

विविध प्रकार अधिगम गतिविधियों में संचार की स्थिति देखी जाती है, जैसे- प्रयोग सम्बन्धी गतिविधियों का सम्बन्ध विज्ञान से माना जाता था। वर्तमान में प्रयोग सम्बन्धी गतिविधियाँ प्रोजेक्ट कार्य के रूप में इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र एवं हिन्दी आदि विषयों में व्यापक रूप से समान होती हैं। इस प्रकार अधिगम गतिविधियाँ किसी एक विषय के लिये न होकर सभी विषयों में प्रयोग के लिये होती हैं। 

6. अधिगम सिद्धान्तों में संचार (Transmission in learning principles) – 

अधिगम सिद्धान्तों में भी संचार की स्थिति देखी जाती है। अधिगम सम्बन्धी सिद्धान्त विविध रूपों में तथा विविध विद्वानों द्वारा प्रतिपादित रूप में देखे जाते हैं। इन सभी सिद्धान्तों का प्रयोग आवश्यकता के अनुरूप विविध विषयों में होता है, जैसे- थॉर्नडाइक के अधिगम सम्बन्धी नियम का उपयोग प्रत्येक विषय में किया जाता है। इसी क्रम में अधिगम सम्बन्धी गतिविधियों का प्रयोग भी समान रूप से सभी विषयों में किया जाता है। छात्र जिन नियमों को जानता है उनका उपयोग भी अपनी आवश्यकता के अनुरूप शिक्षक के सहयोग से करता है। 

7. शिक्षण तकनीकी में संचार ( Transmission in teaching technique ) – 

शिक्षण तकनीकी का प्रयोग वर्तमान समय में व्यापक रूप से किया जा रहा है। इस तकनीकी में शिक्षण यन्त्रों को भी सम्मिलित किया जाता है; जैसे- ओवरहैड प्रोजेक्टर, दूरदर्शन एवं कम्प्यूटर का प्रयोग हिन्दी, गणित, विज्ञान एवं इतिहास में समान रूप से किया जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षण तकनीकी भले ही किसी एक विषय के लिये सोचकर निर्मित की गयी हो यदि वह उपयोगी है तो उसका उपयोग सभी विषयों के शिक्षण में किया जाता है। 

8. शिक्षण कौशलों में संचार (Transmission in teaching skills) – 

एक शिक्षक शिक्षण कौशलों के अन्तर्गत विविध प्रकार के कौशलों को सीखता है परन्तु उनका प्रयोग वह समान रूप से सभी विषयों में करता है, जैसे- प्रश्न कौशल, श्यामपट्ट लेखन कौशल, उदाहरण कौशल एवं लेखन कौशल आदि। इन सभी कौशलों का प्रयोग शिक्षक सभी विषयों में समान रूप से करता है। यदि छात्रों द्वारा किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जाता है तो वह पूरक प्रश्न पूछता है। प्रश्नों के माध्यम से शिक्षक छात्रों को उद्वेलित करता है तथा सही उत्तर प्राप्ति में उनका सहयोग करता है। इस प्रकार शिक्षण कौशलों में संचार की स्थिति देखी जाती है।

9. शैक्षिक अनुसन्धानों में पंचार ( Transmission in educational research ) 

शैक्षिक क्षेत्र में विविध प्रकार के अनुसन्धान किये जाते हैं । इन अनुसन्धानों का उपयोग समान रूप से सभी विषयों में किया जाता है, जैसे- बालकेन्द्रित शिक्षा व्यवस्था का सिद्धान्त सभी शिक्षण अधिगम गतिविधियों  पाठ्यक्रमों एवं विद्यालयी व्यवस्था में व्यापक रूप से देखा जाता है  इस प्रकार शैक्षिक अनुसन्धान भले ही किसी एक क्षेत्र से सम्बन्धित हो परन्तु उनका प्रयोग सभी विषयों के लिये तथा शिक्षण व्यवस्था के लिये किया जाता है ।

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                Dr. D R BHATNAGAR   

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