शुक्रवार, 11 जून 2021

निर्देशन - शारीरिक विलक्षणता युक्त बालक (PHYSICALLY CHALLENGED CHILD)

शारीरिक विलक्षणता युक्त बालक 

PHYSICALLY CHALLENGED CHILD 



    शारीरिक विलक्षणता युक्त बालक से तात्पर्य विकलांगता या शारीरिक न्यूनता से ग्रसित बालकों से होता है ये बालक सामान्य बालकों से शारीरिक दृष्टि से दोषपूर्ण होते है।

क्रो व क्रो के अनुसार - ‘ऐसे बालक जिनमें ऐसा शारीरिक दोष हो जो किसी न किसी रूप में उसे साधारण क्रियाओं में भाग लेने से रोकता है अथवा उसे सीमित करता है, ऐसे बालकों को हम विकलांग कह सकते हैं।’

    शारीरिक न्यूनता के कारण बालक समाज द्वारा निर्धारित मानको के अनुरूप अपने व्यक्तिगत व सामाजिक दायित्वों को पूर्ण नहीं कर पाते है पर ये आवश्यक नहीं है कि ये बालक मानसिक रूप से भी कमजोर हो।

 

1. श्रव्य विकलांगता (AUDITORY HANDICAPS)- श्रव्य विकलांगता से तात्पर्य बालकों को कानो द्वारा सुनने में होने वाली कठिनाईयों से है। श्रव्य विकलांगता को दो भागों में बांटा गया है -

अ. ऊँचा सुनने वाला बालक - ऐसे बच्चों में सुनने की क्षमता हास्य देखने को मिलता है ये बालक ऊँचा सुनते है पर श्रवण सहायक यंत्रों की सहायता से सुनने की क्षमता को सुधारा जा सकता है। इन बच्चों को बोलना सिखाया जा सकता है।

ब. पूर्णतया बहरे बालक - इन बालकों में जन्म से ही सुनने की क्षमता नहीं होती है, इन्हें कुछ सुनाई नहीं देता इसलिए इनकी भाषा का विकास भी बुरी तरह प्रभावित होता है ये बालक अन्य लोगों से वार्तालाप नहीं कर पाते है जिससे इनका व्यक्तिगत व सामाजिक विकास बाधित होता है।

श्रव्य विकलांगता युक्त बालकों के लिए निर्देशन

1. ऐसे बालक जो ऊँचा सुनते है उनका परीक्षण करवाकर श्रवण श्रव्य की मात्रा का पता लगाया जाना चाहिए ताकि उन्हें श्रव्य यंत्र प्रदान कर उनके सुनने की क्षमता में सुधार किया जा सके।

2. अध्यापक को ऐसे बालकों को कक्षा में सबसे आगे बैठाना चाहिए।

3. पूर्णतया बहरे बालकों को ‘‘होठो से पढ़ना’’ ;ज्मंबी व िीपचेद्ध सिखाया जा सकता है।

4. ऐसे बालकों के लिए बोलने के प्रशिक्षण ;ैचममबी जीमतंचलद्ध की व्यवस्था करानी चाहिए।

5. छात्रावास में रहना ऐसे बालकों की सफलता में ज्यादा सहयोगी होते है।

6. ऐसे बच्चे के माता-पिता, अध्यापक व निकटतम लोगों को इनमें आत्म विश्वास पेदा करने की कोशिश करनी चाहिए।

7. ऐसे बच्चों के अभिभावकों को इन्हें भरपूर पे्रम करना चाहिए एवं इनके छोटे से छोटे प्रयास की सराहना कर प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए। इन बालकों को आत्मविश्वास से भरपूर रखने के सभी प्रयास अभिभावकों को करने चाहिए।

8. ऐसे बच्चों के अभिभावकों को चाहिए कि वे बालक से अत्यधिक अपेक्षाएं ना रखे, उनके साथ धैर्य से बर्ताव करें, बातें करे, अपने बच्चों के साथ समय बिताएँ तथा डाॅक्टर, श्रवण विशेषज्ञ अध्यापक, परामर्शदाता को अपना उचित सहयोग प्रदान करे।

9. अभिभावक अपने बच्चों को अन्य बालकों से मिलने-जुलने दे।

10. ऐसे बालकों को अपने कानों के स्थान पर आँखों का अधिक उपयोग करने के लिए प्रेरित व प्रशिक्षित करना चाहिए।

11. अभिभावकों व अध्यापकों को ऐसे बालको ंको बोलने के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध कराने चाहिए।

2. दृष्टि विकलांगता (VISUAL HANDICAPS) - दृष्टि विकलांगता में दिखने में कुछ खराबी या कमी से लेकर पूर्णत नेत्रहीन व्यक्ति आते है दृष्टि विकलांगता दो भागों में बांटा गया है -

अ. नेत्रहीन बालक - ये बालक पूर्णतयाः देखने की क्षमता से रहित होते है इन्हें बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है ये जन्म से ही अंधे होते है या किसी बीमारी, दुर्घटना या ऑपरेशन की वजह से देखने की क्षमता पूर्णतया खो देते है।

ब. कमजोर नजर वाले- ऐसे बालक आंशिक रूप से अंधे होते है। चश्मे व अन्य दृश्यों यंत्रों की सहायता से इनकी दृष्टि को बेहतर बनाया जा सकता है।

दृष्टि विकलांग बालकों के लिए निर्देशन

1. दृष्टि दोषों को चश्मा लगाकर कम किया या ठीक किया जा सकता है।

2. पूर्णतया अंधे बालकों को ब्रेल लिपी का प्रशिक्षण देना चाहिए।

3. पढ़ाते समय सहायक सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए। ऐसे बालकों को शिक्षित करने में ज्यादा से ज्यादा श्रव्य व स्पर्श संवेदना का उपयोग किया जाना चाहिए।

4. ऐसे बालकों के अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को प्रतिदिन के कार्य करने में प्रशिक्षित कर उन्हें इन कार्यो में पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाए।

5. ऐसे बालकों को कुछ हाथों से करने का प्रशिक्षण देकर आर्थिक रूप से सक्षम होने में मदद की जा सकती है जैसे बुनाई, मोमबती बनाना आदि।

6. आजकल अनेक ऐसे आधुनिकतम उपकरण उपलब्ध है जैसे कम्प्यूटर, मोबाईल जो इन बालकों के लिए विशेष रूप से बनाये जाते है इनका उपयोग भी इनके अधिगम व विकास में मददगार हो सकता है।

3. अपंग विकलांगता (ORTHOPEDIC HANDICAPS)- इस श्रेणी में वे बालक आते है जिनमें मांस, जोड़ या हड्डियों की सामान्य कार्यक्षमता में एक या अनेक प्रकार की न्यनता या खराबी पायी जाती है। जैसे पोलियों से ग्रसित बालक इन बालकों में अनेक प्रकार की संवेगात्मक समस्याएँ जैसे असुरक्षा व हीनता की भावना देखने को मिलती है।

अपंग विकलांगता युक्त बालकों के लिए निर्देशन

1. ऐसे बालकों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दे।

2. विशेष विद्यालयों में भेजा जाए।

3. छोटे बालकों को ऐसे खेल व यंत्र उपलब्ध कराए जाए जो उनकी आँख हाथ सांमजस्य को बढ़ाएं जैसे-पजल्स।

4. व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाए।

5. स्कूल जाने के लिए पर्याप्त सहायक सामग्री आवश्यकतानुसार उपलब्ध करायी जाए जैसे व्हील चेयर आदि।

6. ऐसे बालकों को इनके उपयोग में आने वाले यंत्रों का भली प्रकार उपयोग का परामर्श एवं प्रशिक्षण देना चाहिए इन यंत्रों के उपयोग की मदद से ये बालक बाहरी वातावरण से जुड़े रहे।

7. स्कूल परामर्शदाता को इन बालकों के व्यक्तिगत समायोजन में विशेष रूप से मदद करनी चाहिए।

8. ऐसे बालकों के परामर्श में इनकी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए। इन बालकों की सहन शक्ति बढ़ाने व अपनी शारीरिक क्षमता को स्वीकार करने में मदद करनी चाहिए।

9. विद्यालय में अध्यापको, परामर्शदाताओं द्वारा जागरूकता पैदा की जानी चाहिए ताकि अन्य बालक इन बालकों की शारीरिक अक्षमताओं का मजाक ना उड़ाए वरना इनकी विशेष आवश्यकताओं को समझ इनके विकास में सहयोगी बने।

10. विद्यालय, प्रशासन, विद्यालय भवन व शैक्षणिक - उपकरणों व सामग्रियों की व्यवस्था इन बालकों की भी आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर करें।

11. अभिभावक, अध्यापक, परामर्शदाता, इनकी अन्य विशेषताओं को प्रोत्साहित कर उभारने का प्रयत्न करे। छोटे-छोटे प्रयासों की सराहना कर उत्साहवर्धन करे।

12. शारीरिक व्यायाम का प्रशिक्षण भी विशेष रूप से दिया जाए।

4. वाणी दोष (SPEECH DISSORDERS)- वाणी दोष से तात्पर्य गलत उच्चारण, हकलाने, तुतलाने व आवाज संबंधित दोषों से होता है कम सुनने वाले बालकों में भी वाणी दोष होता है। वाणी दोष शारीरिक दोष जैसे बेड़ोल, जबड़ा, मोटी जिव्हा, गलत बनावट की कण्ठनली या तालु की वजह से भी हो सकता है साथ ही संवेगात्मक अस्थिरता या बोलने की अशुद्ध आदत के कारण भी वाणी दोष हो सकता है।

वाणी दोष युक्त बालकों के लिए निर्देशन

1. वाणी व भाषा विशेषज्ञ की सेवाएं ली जा सकती है।

2. अध्यापक, अभिभावक या भाषा विशेषज्ञ इनके गलत उच्चारण को सही करने में मदद करे।

3. शब्द कोष बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

4. ऐसे बालकों के लिए अध्यापक द्वारा विशेष रूप से ऐतिहासिक महत्व का भौगोलिक महत्व के स्थानों पर भ्रमण की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि उत्सुकतावश ये प्रश्न पूछे जिनका सही जवाब इन्हें अध्यापक से मिले ताकि इनका शब्दकोश विकसित हो।

5. ऐसे बालकों के समक्ष स्वयं धीरे-धीरे व सही उच्चारण में बात कर इन्हे अपने सुधार का अवसर प्रदान किया जा सकता है।

6. अगर बोलने में समस्या का कारण शारीरिक हो तो डाॅक्टर विशेषज्ञ की सेवाएं ली जा सकती है।

7. हकलाने वाले बालकों की समस्याएँ मनोवैज्ञानिक भी होती है साइकोथेरपीस्ट की सेवाएं भी ली जा सकती है।

8. उचित प्रोत्साहन द्वारा आत्म विश्वास बढ़ा कर भी वाणी दोषों को दूर करने में सहायता की जा सकती है।

9. वाणी दोष युक्त बालकों को ज्यादा से ज्यादा बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि इन्हें बोलने के अधिक अवसर प्राप्त हो, आत्म विश्वास बढ़े।

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Dr. D R BHATNAGAR 

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