विलक्षणता को सामान्यतः बौद्धिक व शारीरिक विकलांगता के रूप में जाना जाता है परन्तु कुछ लोगों के लिए उनकी विचलित सामाजिक अंतक्रिया ही विशेष ध्यान दिये जाने का कारण बनती है जैसे - बालक अपराधी, सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग।
1. बाल अपराधी - बाल अपराधी एक मनोवैज्ञानिक समस्या है। ऐसे बालक जिसने अभी कानूनी रूप से व्यस्कता की उम्र प्राप्त नहीं की है के द्वार पर किये जाने वाले अपराध, बाल अपराध की श्रेणी में आते है ऐसे बालकों को सुधार गृहों में भेजा जाता है। जहां इन्हें विशेष उपचार दिया जाता है। इस उपचार का स्वरूप सजा ना होकर सुधार होता है ताकि भविष्य में ये बालक एक बेहतर जीवन जी सके।
बाल अपराधियों के लिए निर्देशन
1. व्यक्तिगत परामर्श की व्यवस्था की जाए।
2. पुनर्वास घरों में रखा जाए।
3. व्यक्तिगत इतिहास का अध्ययन कर उपचार योजना बनाई जाए।
4. मनोविधियो का उपयोग किया जाए।
5. वास्तविक विधि का भी उपयोग किया जा सकता है।
6. इन्हें अच्छे वातावरण में रखा जाए।
7. उचित शैक्षणिक परामर्श प्रदान किया जाए।
8. उचित व्यवसायिक परामर्श प्रदान किया जाए।
9. इन्हें जिम्मेदार बनाने पर बल दिया जाना चाहिए।
10. उचित पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।
11. अभिपे्ररणात्मक वातावरण में रखा जाए तो जीवन की धनात्मक पढ़ायी ओर की जाए।
12. भावानात्मक अभिव्यक्ति के धनात्मक तरीकें सीखाएं जाएं।
13. ध्यान, योग, प्राणायाम, व्यायाम व खेलों का प्रशिक्षण दिया जाए।
14. सामूहिक गतिविधियों द्वारा संवेदनशील व जागरूकता पैदा की जाती है।
2. सामाजिक रूप से पिछडे़ वर्ग - आर्थिक, सांस्कृतिक भिन्नता इनके पिछडे़पन का आधार होती है। इन बालकों में अभाव के कारण इनका संज्ञानात्मक, भावनात्मक व्यवहार अत्यधिक प्रभावित होता है वे कभी भोजन, वस्त्र, पढ़ाई आदि किसी भी चीज की कमी के रूप में हो सकती है। इन्हें हम गरीब, निम्न वर्गीय, निम्न सामाजिक, आर्थिक वर्ग आदि नामों से भी जानते है। इन बच्चों की भाषा का विकास, पढ़ने की क्षमता कमजोर होती है। इन बच्चों में अत्यधिक चिन्ता व संवेगात्मक समस्याएँ होती है, अत्यन्त दुर्बल आत्म संप्रत्यय होता है।
पिछड़े बालकों के लिए परामर्श
1. ऐसे बालकों पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाना चाहिए, साथ ही सामाजिक मदद उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
2. ऐसे बालकों पर पहले विद्यालय में कार्य किया जाना चाहिए। साथ ही इनके परिवारों के लिए भी विद्यालय द्वारा विशेष कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए।
3. छोटे-छोटे समूहों में गतिविधियों द्वारा संज्ञानात्मक कौशल एवं सामाजीकरण विकसित किया जा सकता है।
4. व्यक्तिगत निर्देशन सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए।
5. छोटे बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम चलाएं जाने चाहिए जो इन बालकों के संज्ञानात्मक विकास में सहायक हो।
6. इन बालकों की मदद के लिए परिवार, विद्यालय व समुदाय को भी सम्मिलित हो संयुक्त प्रयास किये जाने चाहिए।
7. समूह विधियों जैसे सामाजिक, ड्रामा, मनोड्रामा का उपयोग भी विभिन्न सामाजिक कौशलों को सीखाने में किया जा सकता है।
8. समायोजन प्रविधियों का प्रशिक्षण भी स्कूल में दिया जा सकता है।
9. आर्थिक सहायता- ऐसे बालक प्रायः भौतिक चीजों के अभाव में जीवन जीते है अतः इन्हें छात्रवृत्ति, पढ़ाई के साधन, विद्यालय में ही भोजन आदि की व्यवस्था कर आर्थिक रूप से भी मदद की जानी चाहिए हमारी सरकार आंगनवाडी मध्यान्तर भोजन द्वारा इस प्रकार की सुविधाएं प्रदान कर इन बालकों का स्तर उठाने में प्रयासरत है।
संवेगात्मक विलक्षणता युक्त बालक
CHILD WITH EMOTIONAL DISORDER
संवेगात्मक रूप से बाधित बच्चों की मानसिक क्षमताएं अच्छी होती है परन्तु ये संवेगात्मक बाधाओं की वजह से अपनी बुद्धिमता या संवेगात्मक क्षमताओं व प्रयासों का उपयोग शैक्षणिक लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाते है इन बालकों को विशेष रूप से समझने की आवश्यकता होती है।
ऐसे बच्चों में झूठ बोलने, चोरी करने, सामान नष्ट करने, औरो को शारीरिक हानि पहुँचाए जाने के संवेगात्मक अस्थिरता के लक्षण भी देखने को मिलते है। इन बालकों का व्यवहार अनियंत्रित व अपूर्व कथनीय होता है, कभी बिल्कुल ठीक नजर आते है तो कभी अचानक आक्रामक हो जाते है इसलिए समूह के लोग इनसे दूरियां बना लेते है, व अकेलापन इनकी समस्याओं को ओर बड़ा देता है।
संवेगात्मक विलक्षणता के लिए निर्देशन
1. कठिन परिस्थितियों में समायोजन के लिए समायोजन प्रविधियों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
2. जागरूकता कार्यशाला का अध्यापकों व पारिवारिक सदस्यों के लिए आयोजन किया जाना चाहिए।
3.‘‘व्यवहार संशोधन’’कार्यशालाओं का आयोजन होना चाहिए।
4. नाटक विधि जैसे रोले प्ले, सामाजिक ड्रामा का उपयोग किया जा सकता है। अपनी समस्या को अभिनय कर प्रदर्शित करने से मन का गुब्बार निकल जाता है एवं बालक अच्छा महसूस करता है।
5. गहरी व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु व्यक्तिगत परामर्श की व्यवस्था होनी चाहिए।
6. योगा, प्राणायाम, ध्यान इन विधियों का उपयोग भी आन्तरिक बल बढ़ाने एवं स्वयं को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है।
7. ऐसे बच्चों के पुनर्वास के लिए विशेष कक्षाओं व विशेष विद्यालयों की व्यवस्था भी की जा सकती है।
8. शिक्षकों को भाषण, समूह चर्चा, विडियों द्वारा इन बालकों की मनोवैज्ञानिक समझ के लिए समय-समय पर शिक्षित करते रहना चाहिए।
विशेष बालकों की विशेष आवश्यकताएँ होती है इसलिए इन बालकों के लिए इनके परिवारजनों को लिए एवं इन्हें पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिए विशेष निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकताएं होती है ताकि ये सब इन बालकों की विशेष आवश्यकताओं को समझ कर इन्हें शिक्षा प्राप्त करने, व्यवसाय संबंधी कौशल सीखने एवं व्यवसाय का चुनाव करने में, व्यक्तिगत, सामाजिक एवं समायोजन में सहायता प्रदान कर सके।
सभी विलक्षण बालकों की बुद्धिलब्धि एवं आवश्यकताओं को समझ कर उनके अनुरूप सहायता, व्यक्तिगत ध्यान, परामर्श, प्रेरणात्मक वातावरण, प्रोत्साहन अन्य लोगों के साथ बातचीत करने, घुलने-मिलने कार्य करने के अवसर एवं धैर्यपूर्ण बर्ताव के साथ इन्हें अपनी गति से सीखने की सुविधा प्रदान की जाए तो ये अपनी कमियों के बावजूद विलक्षण कार्य कर सकते है।