मंगलवार, 22 जून 2021

भारतीय माध्यमिक स्कूलों के लिए न्यूनतम आवश्यक निर्देशन कार्यक्रम(Minimum essential Guidance programme for an Indian Secondary Schools)

भारतीय माध्यमिक स्कूलों के लिए न्यूनतम आवश्यक निर्देशन कार्यक्रम
Minimum essential Guidance programme for an Indian Secondary Schools 



    विभिन्न उद्देश्यों, विभिन्न कार्य क्षेत्रों और बहुमुखी सेवाओं के कारण निर्देशन कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु अनेक शिक्षित प्रशिक्षित और जिम्मेदार लोगों के योगदान की आवश्यकता होती हैं। निर्देशन कार्यक्रम के द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के कार्यान्वयन हेतु जिन व्यक्तियों का सक्रिय सहयोग प्राप्त किया जाता है उन्हें निरीक्षण कार्मिक कहते हैं। अलग-अलग कार्य क्षेत्र एवं पृथक सेवाओं के संपादन तथा संचालन में कुछ निर्देशन कार्मिकों की भूमिका अधिक तथा अन्य कार्य कार्मिकों की भागीदारी तुलनात्मक दृष्टि से गौण हो सकती हैं। 

निर्देशन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में निम्नलिखित लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है

  1. विद्यालय/विशिष्ट विद्यालय/सामुदायिक केंद्र/ औद्योगिक संस्थान के प्रशासक
  2. छात्र कल्याण अधिकारी
  3. अध्यापक
  4. माता-पिता अभिभावक
  5. छात्रावास के अधिकारी
  6. स्वास्थ्य केंद्र अधिकारी
  7. मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता एवं
  8. सेवायोजन अधिकारी

    निर्देशन कार्यक्रमों का संपादन मुख्यतः विद्यालयों के स्तर पर होता है। विद्यालय समाज की वह इकाई हैं जो बाल को एवं अल्प वयस्कों के साथ कार्य करती है और उन्हें शिक्षित करने के अतिरिक्त व्यक्ति का समग्र रूप मैं अधिकतम विकास सुनिश्चित करने का प्रयत्न करती है। इस कार्य के लिए विद्यालय के पास सभी प्रकार के संसाधन उपलब्ध होना कठिन है अतः विद्यालय के बाहर के संसाधन पर भी निर्भर होना पड़ता है ऐसे में परिवार, विद्यालय, समुदाय नेटवर्क की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

निर्देशन कार्यक्रम में माता-पिता या अभिभावक की भूमिका-

  1. व्यक्ति अनुसूची सेवा व मूल्यांकन सेवा में माता पिता की भूमिका
  2. सूचना सेवा में माता पिता की भूमिका
  3. कार्यस्थल संबंधी अनुभव प्रदान करने में माता पिता की भूमिका
  4. बच्चों के लिए विशिष्ट अनुभव के आयोजन में माता पिता की भूमिका
  5. विकासात्मक निर्देशन के कार्यान्वयन में माता पिता की भूमिका
  6. शैक्षिक एवं व्यवसायिक लक्ष्यों के निर्धारण में माता पिता की भूमिका
  7. निर्देशन कार्यक्रम के मूल्यांकन में माता पिता की भूमिका 

निर्देशन हेतु सूचना सेवा में अध्यापकों की भूमिका-

  1. निर्देशन हेतु विद्यार्थियों की क्षमताओं और विशेषताओं के मूल्यांकन में अध्यापकों की भूमिका
  2. निर्देशन हेतु सूचना सेवा में अध्यापकों की भूमिका
  3. अध्यापकों की पूर्व अभिमुखीकरण सेवा में भूमिका
  4. विकासात्मक निर्देशन सेवा में अध्यापकों की भूमिका
  5. परामर्श सेवा में अध्यापकों की भूमिका
  6. विशिष्ट छात्रों एवं समस्या ग्रस्त छात्रों की पहचान में अध्यापकों की भूमिका
  7. निर्देशन कार्यक्रम के कार्यान्वयन में अध्यापकों की भूमिका
  8. कार्यक्रम मूल्यांकन एवं शोध सेवा में अध्यापकों की भूमिका

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                Dr. D R BHATNAGAR  

Practicum And Field Work PAPER 4

Paper IV
Basics in Education & Communication
Practicum And  Field Work PAPER 4




Practicum And  Field Work

 

1. एक सामाजिक मुद्दे के बारे में एक कम शिक्षित या अशिक्षित व्यक्ति साक्षात्कार करना और वर्तमान संदर्भ में निष्कर्ष निकालना।

Interview a less educated or uneducated person about a social issue & conclude the findings in present context.

सैद्धांतिक 

  • प्रस्तावना 
  • सामाजिक मुद्दे व प्रकार 
  • मुद्दों का विवरण 
  • अशिक्षित या कम शिक्षित व्यक्ति का अर्थ
  • साक्षात्कार

प्रायोगिक 

  • प्रश्नावली/चेक लिस्ट का निर्माण 
  • प्रतिक्रिया का विश्लेषण 
  • वर्तमान समय के संदर्भ में निष्कर्ष 
  • उपसंहार 
  • संदर्भ पुस्तकें

 

2. ‘‘क्या आधुनिक शैक्षिक तरीके शिक्षण के पारंपरिक तरीकों की तुलना में प्रभावी हैं?’’ एक परिचर्चा का आयोजन करे एवं परिणामों की रिपोर्ट तैयार करे।

 “Are Modern Educational ways Effective in comparison to traditional ways of teaching” Organise a debate for or against and report the outcomes.

सैद्धांतिक 

  • शिक्षा का अर्थ व परिभाषा 
  • शिक्षण का अर्थ परिभाषाएं 
  • शिक्षण में अध्यापक की भूमिका 
  • शिक्षण की पारंपरिक विधियां 
  • शिक्षण की आधुनिक विधियां 
  • शिक्षण की पारंपरिक व आधुनिक विधियों का तुलनात्मक अध्ययन 

प्रायोगिक कार्य 

  • परिचर्चा का आयोजन 
  • परिचर्चा का विश्लेषणात्मक विवरण 
  • निष्कर्ष 
  • संदर्भ पुस्तकें


3. छात्र अपने कैरियर का चयन कैसे करते हैं? हेडमास्टर / प्रधानाचार्य, माता-पिता एवं छात्र से चर्चा करें और इस पर एक रिपोर्ट तैयार करें।

How students choose their career. Discuss with the Headmaster/Principal, Parents and Students & prepare a report on it.

सैद्धांतिक  कार्य 

  • प्रस्तावना 
  • कैरियर का अर्थ
  • कैरियर की परिभाषा 
  • कैरियर के प्रकार 
  • कैरियर चयन की आवश्यकता 
  • कैरियर चयन के तरीके 
  • कैरियर चयन हेतु परामर्श (प्रधानाध्यापक, माता-पिता व छात्र) 
  • कैरियर चयन की योग्यताएं 

प्रायोगिक कार्य 

  • प्रश्नावली/चेक लिस्ट का निर्माण 
  • चर्चा 
  • प्रधानाध्यापक 
  • माता-पिता 
  • छात्र 
  • उत्तर प्रतिक्रिया का विश्लेषण 
  • रिपोर्ट 
  • निष्कर्ष 
  • संदर्भ पुस्तके


4. शांति स्थापित करने में किसी भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व के योगदान का विश्लेषण करें।

Analyse the contribution of any National or International personality in establishing peace. 

सैद्धांतिक  कार्य 

  • प्रस्तावना 
  • शांति का अर्थ व परिभाषा 
  • शांति की आवश्यकता 
  • शांति के प्रकार 
  • शांति के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों की सूची 
  • व्यक्तित्व का परिचय 
  • शांति स्थापित करने में योगदान

प्रायोगिक कार्य 

  • विश्लेषणात्मक विवरण 
  • निष्कर्ष 
  • संदर्भ पुस्तके

 

 5 A.कुछ पचास शब्द बोलो और छात्रों को उनको वापस याद करने के लिए कहें और नोट करें कि कौन अधिकतम गणना करता है?

Speak some fifty words & tell students to recall them back and note down who counts maximum.

सैद्धांतिक  कार्य 

  • प्रस्तावना 
  • स्मरण क्षमता 
  • स्मृति 
  • प्रत्यास्मरण 

प्रायोगिक कार्य 

  • स्मरण क्षमता के अध्ययन हेतु तैयारी 
  • शब्दों का चयन 
  • विद्यार्थियों का चयन 
  • शब्दों का वाचन 
  • विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया का विश्लेषण 
  • निष्कर्ष 
  • संदर्भ पुस्तके


5 B. स्कूल में कुछ गतिविधि के चालन के लिए दो नोटिस का प्रारूप करना।

Draft two notices for the conduction of some activity in school.

सैद्धांतिक  कार्य 

  • प्रस्तावना 
  • विद्यालय गतिविधियां
  • नोटिस का अर्थ व परिभाषा 
  • विद्यालय में नोटिस की भूमिका 
  • अध्यापकों के लिए
  • विद्यार्थियों के लिए
  • कर्मचारियों के लिए
  • नोटिस लेखन में ध्यान देने योग्य बातें

प्रायोगिक कार्य 

  • नोटिस हेतु गतिविधि चयन 
  • गतिविधि विवरण 
  • नोटिस का प्रारूप लेखन 
  • निष्कर्ष 
  • संदर्भ पुस्तके

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Dr. D R BHATNAGAR 

शुक्रवार, 11 जून 2021

निर्देशन -सामाजिक विलक्षणता वाले बालक (CHILD WITH SOCIAL ABNORMALITY)


सामाजिक विलक्षणता युक्त बालक 

CHILD WITH SOCIAL ABNORMALITY


    विलक्षणता को सामान्यतः बौद्धिक व शारीरिक विकलांगता के रूप में जाना जाता है परन्तु कुछ लोगों के लिए उनकी विचलित सामाजिक अंतक्रिया ही विशेष ध्यान दिये जाने का कारण बनती है जैसे - बालक अपराधी, सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग।

1. बाल अपराधी - बाल अपराधी एक मनोवैज्ञानिक समस्या है। ऐसे बालक जिसने अभी कानूनी रूप से व्यस्कता की उम्र प्राप्त नहीं की है के द्वार पर किये जाने वाले अपराध, बाल अपराध की श्रेणी में आते है ऐसे बालकों को सुधार गृहों में भेजा जाता है। जहां इन्हें विशेष उपचार दिया जाता है। इस उपचार का स्वरूप सजा ना होकर सुधार  होता है ताकि भविष्य में ये बालक एक बेहतर जीवन जी सके। 

बाल अपराधियों के लिए निर्देशन 

1. व्यक्तिगत परामर्श की व्यवस्था की जाए।

2. पुनर्वास घरों में रखा जाए।

3. व्यक्तिगत इतिहास का अध्ययन कर उपचार योजना बनाई जाए।

4. मनोविधियो का उपयोग किया जाए।

5. वास्तविक विधि का भी उपयोग किया जा सकता है।

6. इन्हें अच्छे वातावरण में रखा जाए।

7. उचित शैक्षणिक परामर्श प्रदान किया जाए।

8. उचित व्यवसायिक परामर्श प्रदान किया जाए।

9. इन्हें जिम्मेदार बनाने पर बल दिया जाना चाहिए।

10. उचित पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।

11. अभिपे्ररणात्मक वातावरण में रखा जाए तो जीवन की धनात्मक पढ़ायी ओर की जाए।

12. भावानात्मक अभिव्यक्ति के धनात्मक तरीकें सीखाएं जाएं।

13. ध्यान, योग, प्राणायाम, व्यायाम व खेलों का प्रशिक्षण दिया जाए।

14. सामूहिक गतिविधियों द्वारा संवेदनशील व जागरूकता पैदा की जाती है।

2. सामाजिक रूप से पिछडे़ वर्ग - आर्थिक, सांस्कृतिक भिन्नता इनके पिछडे़पन का आधार होती है। इन बालकों में अभाव के कारण इनका संज्ञानात्मक, भावनात्मक व्यवहार अत्यधिक प्रभावित होता है वे कभी भोजन, वस्त्र, पढ़ाई आदि किसी भी चीज की कमी के रूप में हो सकती है। इन्हें हम गरीब, निम्न वर्गीय, निम्न सामाजिक, आर्थिक वर्ग आदि नामों से भी जानते है। इन बच्चों की भाषा का विकास, पढ़ने की क्षमता कमजोर होती है। इन बच्चों में अत्यधिक चिन्ता व संवेगात्मक समस्याएँ होती है, अत्यन्त दुर्बल आत्म संप्रत्यय होता है।

पिछड़े बालकों के लिए परामर्श 

1. ऐसे बालकों पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाना चाहिए, साथ ही सामाजिक मदद उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

2. ऐसे बालकों पर पहले विद्यालय में कार्य किया जाना चाहिए। साथ ही इनके परिवारों के लिए भी विद्यालय द्वारा विशेष कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए।

3. छोटे-छोटे समूहों में गतिविधियों द्वारा संज्ञानात्मक कौशल एवं सामाजीकरण विकसित किया जा सकता है।

4. व्यक्तिगत निर्देशन सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए।

5. छोटे बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम चलाएं जाने चाहिए जो इन बालकों के संज्ञानात्मक विकास में सहायक हो।

6. इन बालकों की मदद के लिए परिवार, विद्यालय व समुदाय को भी सम्मिलित हो संयुक्त प्रयास किये जाने चाहिए।

7. समूह विधियों जैसे सामाजिक, ड्रामा, मनोड्रामा का उपयोग भी विभिन्न सामाजिक कौशलों को सीखाने में किया जा सकता है।

8. समायोजन प्रविधियों का प्रशिक्षण भी स्कूल में दिया जा सकता है।

9. आर्थिक सहायता- ऐसे बालक प्रायः भौतिक चीजों के अभाव में जीवन जीते है अतः इन्हें छात्रवृत्ति, पढ़ाई के साधन, विद्यालय में ही भोजन आदि की व्यवस्था कर आर्थिक रूप से भी मदद की जानी चाहिए हमारी सरकार आंगनवाडी मध्यान्तर भोजन द्वारा इस प्रकार की सुविधाएं प्रदान कर इन बालकों का स्तर उठाने में प्रयासरत है।

संवेगात्मक विलक्षणता युक्त बालक 

CHILD WITH EMOTIONAL DISORDER

    संवेगात्मक रूप से बाधित बच्चों की मानसिक क्षमताएं अच्छी होती है परन्तु ये संवेगात्मक बाधाओं की वजह से अपनी बुद्धिमता या संवेगात्मक क्षमताओं व प्रयासों का उपयोग शैक्षणिक लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाते है इन बालकों को विशेष रूप से समझने की आवश्यकता होती है।

    ऐसे बच्चों में झूठ बोलने, चोरी करने, सामान नष्ट करने, औरो को शारीरिक हानि पहुँचाए जाने के संवेगात्मक अस्थिरता के लक्षण भी देखने को मिलते है। इन बालकों का व्यवहार अनियंत्रित व अपूर्व कथनीय होता है, कभी बिल्कुल ठीक नजर आते है तो कभी अचानक आक्रामक हो जाते है इसलिए समूह के लोग इनसे दूरियां बना लेते है, व अकेलापन इनकी समस्याओं को ओर बड़ा देता है।

संवेगात्मक विलक्षणता के लिए निर्देशन 

1. कठिन परिस्थितियों में समायोजन के लिए समायोजन प्रविधियों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

2. जागरूकता कार्यशाला का अध्यापकों व पारिवारिक सदस्यों के लिए आयोजन किया जाना चाहिए।

3.‘‘व्यवहार संशोधन’’कार्यशालाओं का आयोजन होना चाहिए।

4. नाटक विधि जैसे रोले प्ले, सामाजिक ड्रामा का उपयोग किया जा सकता है। अपनी समस्या को अभिनय कर प्रदर्शित करने से मन का गुब्बार निकल जाता है एवं बालक अच्छा महसूस करता है।

5. गहरी व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु व्यक्तिगत परामर्श की व्यवस्था होनी चाहिए।

6. योगा, प्राणायाम, ध्यान इन विधियों का उपयोग भी आन्तरिक बल बढ़ाने एवं स्वयं को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है।

7. ऐसे बच्चों के पुनर्वास के लिए विशेष कक्षाओं व विशेष विद्यालयों की व्यवस्था भी की जा सकती है।

8. शिक्षकों को भाषण, समूह चर्चा, विडियों द्वारा इन बालकों की मनोवैज्ञानिक समझ के लिए समय-समय पर शिक्षित करते रहना चाहिए।

    विशेष बालकों की विशेष आवश्यकताएँ होती है इसलिए इन बालकों के लिए इनके परिवारजनों को लिए एवं इन्हें पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिए विशेष निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकताएं होती है ताकि ये सब इन बालकों की विशेष आवश्यकताओं को समझ कर इन्हें शिक्षा प्राप्त करने, व्यवसाय संबंधी कौशल सीखने एवं व्यवसाय का चुनाव करने में, व्यक्तिगत, सामाजिक एवं समायोजन में सहायता प्रदान कर सके।

    सभी विलक्षण बालकों की बुद्धिलब्धि एवं आवश्यकताओं को समझ कर उनके अनुरूप सहायता, व्यक्तिगत ध्यान, परामर्श, प्रेरणात्मक वातावरण, प्रोत्साहन अन्य लोगों के साथ बातचीत करने, घुलने-मिलने कार्य करने के अवसर एवं धैर्यपूर्ण बर्ताव के साथ इन्हें अपनी गति से सीखने की सुविधा प्रदान की जाए तो ये अपनी कमियों के बावजूद विलक्षण कार्य कर सकते है।

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Dr. D R BHATNAGAR 

निर्देशन - शारीरिक विलक्षणता युक्त बालक (PHYSICALLY CHALLENGED CHILD)

शारीरिक विलक्षणता युक्त बालक 

PHYSICALLY CHALLENGED CHILD 



    शारीरिक विलक्षणता युक्त बालक से तात्पर्य विकलांगता या शारीरिक न्यूनता से ग्रसित बालकों से होता है ये बालक सामान्य बालकों से शारीरिक दृष्टि से दोषपूर्ण होते है।

क्रो व क्रो के अनुसार - ‘ऐसे बालक जिनमें ऐसा शारीरिक दोष हो जो किसी न किसी रूप में उसे साधारण क्रियाओं में भाग लेने से रोकता है अथवा उसे सीमित करता है, ऐसे बालकों को हम विकलांग कह सकते हैं।’

    शारीरिक न्यूनता के कारण बालक समाज द्वारा निर्धारित मानको के अनुरूप अपने व्यक्तिगत व सामाजिक दायित्वों को पूर्ण नहीं कर पाते है पर ये आवश्यक नहीं है कि ये बालक मानसिक रूप से भी कमजोर हो।

 

1. श्रव्य विकलांगता (AUDITORY HANDICAPS)- श्रव्य विकलांगता से तात्पर्य बालकों को कानो द्वारा सुनने में होने वाली कठिनाईयों से है। श्रव्य विकलांगता को दो भागों में बांटा गया है -

अ. ऊँचा सुनने वाला बालक - ऐसे बच्चों में सुनने की क्षमता हास्य देखने को मिलता है ये बालक ऊँचा सुनते है पर श्रवण सहायक यंत्रों की सहायता से सुनने की क्षमता को सुधारा जा सकता है। इन बच्चों को बोलना सिखाया जा सकता है।

ब. पूर्णतया बहरे बालक - इन बालकों में जन्म से ही सुनने की क्षमता नहीं होती है, इन्हें कुछ सुनाई नहीं देता इसलिए इनकी भाषा का विकास भी बुरी तरह प्रभावित होता है ये बालक अन्य लोगों से वार्तालाप नहीं कर पाते है जिससे इनका व्यक्तिगत व सामाजिक विकास बाधित होता है।

श्रव्य विकलांगता युक्त बालकों के लिए निर्देशन

1. ऐसे बालक जो ऊँचा सुनते है उनका परीक्षण करवाकर श्रवण श्रव्य की मात्रा का पता लगाया जाना चाहिए ताकि उन्हें श्रव्य यंत्र प्रदान कर उनके सुनने की क्षमता में सुधार किया जा सके।

2. अध्यापक को ऐसे बालकों को कक्षा में सबसे आगे बैठाना चाहिए।

3. पूर्णतया बहरे बालकों को ‘‘होठो से पढ़ना’’ ;ज्मंबी व िीपचेद्ध सिखाया जा सकता है।

4. ऐसे बालकों के लिए बोलने के प्रशिक्षण ;ैचममबी जीमतंचलद्ध की व्यवस्था करानी चाहिए।

5. छात्रावास में रहना ऐसे बालकों की सफलता में ज्यादा सहयोगी होते है।

6. ऐसे बच्चे के माता-पिता, अध्यापक व निकटतम लोगों को इनमें आत्म विश्वास पेदा करने की कोशिश करनी चाहिए।

7. ऐसे बच्चों के अभिभावकों को इन्हें भरपूर पे्रम करना चाहिए एवं इनके छोटे से छोटे प्रयास की सराहना कर प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए। इन बालकों को आत्मविश्वास से भरपूर रखने के सभी प्रयास अभिभावकों को करने चाहिए।

8. ऐसे बच्चों के अभिभावकों को चाहिए कि वे बालक से अत्यधिक अपेक्षाएं ना रखे, उनके साथ धैर्य से बर्ताव करें, बातें करे, अपने बच्चों के साथ समय बिताएँ तथा डाॅक्टर, श्रवण विशेषज्ञ अध्यापक, परामर्शदाता को अपना उचित सहयोग प्रदान करे।

9. अभिभावक अपने बच्चों को अन्य बालकों से मिलने-जुलने दे।

10. ऐसे बालकों को अपने कानों के स्थान पर आँखों का अधिक उपयोग करने के लिए प्रेरित व प्रशिक्षित करना चाहिए।

11. अभिभावकों व अध्यापकों को ऐसे बालको ंको बोलने के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध कराने चाहिए।

2. दृष्टि विकलांगता (VISUAL HANDICAPS) - दृष्टि विकलांगता में दिखने में कुछ खराबी या कमी से लेकर पूर्णत नेत्रहीन व्यक्ति आते है दृष्टि विकलांगता दो भागों में बांटा गया है -

अ. नेत्रहीन बालक - ये बालक पूर्णतयाः देखने की क्षमता से रहित होते है इन्हें बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है ये जन्म से ही अंधे होते है या किसी बीमारी, दुर्घटना या ऑपरेशन की वजह से देखने की क्षमता पूर्णतया खो देते है।

ब. कमजोर नजर वाले- ऐसे बालक आंशिक रूप से अंधे होते है। चश्मे व अन्य दृश्यों यंत्रों की सहायता से इनकी दृष्टि को बेहतर बनाया जा सकता है।

दृष्टि विकलांग बालकों के लिए निर्देशन

1. दृष्टि दोषों को चश्मा लगाकर कम किया या ठीक किया जा सकता है।

2. पूर्णतया अंधे बालकों को ब्रेल लिपी का प्रशिक्षण देना चाहिए।

3. पढ़ाते समय सहायक सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए। ऐसे बालकों को शिक्षित करने में ज्यादा से ज्यादा श्रव्य व स्पर्श संवेदना का उपयोग किया जाना चाहिए।

4. ऐसे बालकों के अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को प्रतिदिन के कार्य करने में प्रशिक्षित कर उन्हें इन कार्यो में पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाए।

5. ऐसे बालकों को कुछ हाथों से करने का प्रशिक्षण देकर आर्थिक रूप से सक्षम होने में मदद की जा सकती है जैसे बुनाई, मोमबती बनाना आदि।

6. आजकल अनेक ऐसे आधुनिकतम उपकरण उपलब्ध है जैसे कम्प्यूटर, मोबाईल जो इन बालकों के लिए विशेष रूप से बनाये जाते है इनका उपयोग भी इनके अधिगम व विकास में मददगार हो सकता है।

3. अपंग विकलांगता (ORTHOPEDIC HANDICAPS)- इस श्रेणी में वे बालक आते है जिनमें मांस, जोड़ या हड्डियों की सामान्य कार्यक्षमता में एक या अनेक प्रकार की न्यनता या खराबी पायी जाती है। जैसे पोलियों से ग्रसित बालक इन बालकों में अनेक प्रकार की संवेगात्मक समस्याएँ जैसे असुरक्षा व हीनता की भावना देखने को मिलती है।

अपंग विकलांगता युक्त बालकों के लिए निर्देशन

1. ऐसे बालकों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दे।

2. विशेष विद्यालयों में भेजा जाए।

3. छोटे बालकों को ऐसे खेल व यंत्र उपलब्ध कराए जाए जो उनकी आँख हाथ सांमजस्य को बढ़ाएं जैसे-पजल्स।

4. व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाए।

5. स्कूल जाने के लिए पर्याप्त सहायक सामग्री आवश्यकतानुसार उपलब्ध करायी जाए जैसे व्हील चेयर आदि।

6. ऐसे बालकों को इनके उपयोग में आने वाले यंत्रों का भली प्रकार उपयोग का परामर्श एवं प्रशिक्षण देना चाहिए इन यंत्रों के उपयोग की मदद से ये बालक बाहरी वातावरण से जुड़े रहे।

7. स्कूल परामर्शदाता को इन बालकों के व्यक्तिगत समायोजन में विशेष रूप से मदद करनी चाहिए।

8. ऐसे बालकों के परामर्श में इनकी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए। इन बालकों की सहन शक्ति बढ़ाने व अपनी शारीरिक क्षमता को स्वीकार करने में मदद करनी चाहिए।

9. विद्यालय में अध्यापको, परामर्शदाताओं द्वारा जागरूकता पैदा की जानी चाहिए ताकि अन्य बालक इन बालकों की शारीरिक अक्षमताओं का मजाक ना उड़ाए वरना इनकी विशेष आवश्यकताओं को समझ इनके विकास में सहयोगी बने।

10. विद्यालय, प्रशासन, विद्यालय भवन व शैक्षणिक - उपकरणों व सामग्रियों की व्यवस्था इन बालकों की भी आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर करें।

11. अभिभावक, अध्यापक, परामर्शदाता, इनकी अन्य विशेषताओं को प्रोत्साहित कर उभारने का प्रयत्न करे। छोटे-छोटे प्रयासों की सराहना कर उत्साहवर्धन करे।

12. शारीरिक व्यायाम का प्रशिक्षण भी विशेष रूप से दिया जाए।

4. वाणी दोष (SPEECH DISSORDERS)- वाणी दोष से तात्पर्य गलत उच्चारण, हकलाने, तुतलाने व आवाज संबंधित दोषों से होता है कम सुनने वाले बालकों में भी वाणी दोष होता है। वाणी दोष शारीरिक दोष जैसे बेड़ोल, जबड़ा, मोटी जिव्हा, गलत बनावट की कण्ठनली या तालु की वजह से भी हो सकता है साथ ही संवेगात्मक अस्थिरता या बोलने की अशुद्ध आदत के कारण भी वाणी दोष हो सकता है।

वाणी दोष युक्त बालकों के लिए निर्देशन

1. वाणी व भाषा विशेषज्ञ की सेवाएं ली जा सकती है।

2. अध्यापक, अभिभावक या भाषा विशेषज्ञ इनके गलत उच्चारण को सही करने में मदद करे।

3. शब्द कोष बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

4. ऐसे बालकों के लिए अध्यापक द्वारा विशेष रूप से ऐतिहासिक महत्व का भौगोलिक महत्व के स्थानों पर भ्रमण की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि उत्सुकतावश ये प्रश्न पूछे जिनका सही जवाब इन्हें अध्यापक से मिले ताकि इनका शब्दकोश विकसित हो।

5. ऐसे बालकों के समक्ष स्वयं धीरे-धीरे व सही उच्चारण में बात कर इन्हे अपने सुधार का अवसर प्रदान किया जा सकता है।

6. अगर बोलने में समस्या का कारण शारीरिक हो तो डाॅक्टर विशेषज्ञ की सेवाएं ली जा सकती है।

7. हकलाने वाले बालकों की समस्याएँ मनोवैज्ञानिक भी होती है साइकोथेरपीस्ट की सेवाएं भी ली जा सकती है।

8. उचित प्रोत्साहन द्वारा आत्म विश्वास बढ़ा कर भी वाणी दोषों को दूर करने में सहायता की जा सकती है।

9. वाणी दोष युक्त बालकों को ज्यादा से ज्यादा बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि इन्हें बोलने के अधिक अवसर प्राप्त हो, आत्म विश्वास बढ़े।

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Dr. D R BHATNAGAR 

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