What are we in The Fall?
क्या पतन की ओर है हम?
वर्तमान की उद्वेलित करने वाली परिस्थितियों में देश, समाज, व्यक्ति किसी भी धर्म का हो उसके पतन की शुरुआत वो खुद करता है जिसको कुछ बिंदुओं के अंतर्गत हम समझेंगे-
व्यक्तित्व
मनुष्य अपने व्यक्तित्व को दूसरों की देखरेख में चला रहे हैं उसके खुद के व्यक्तित्व का कोई अस्तित्व नहीं है तेज दिमाग व नेतृत्वशील लोग उसके व्यक्तित्व को अपने अनुसार ढाल रहे हैं उदाहरण के तौर पर देखें-
जैसे टीवी में विज्ञापन आता है कि यह कोल्ड ड्रिंक पीना चाहिए और लोग उसको देखा-देखी जब भी मौका मिलता है उसी को ड्रिंक को पीता है क्योंकि विज्ञापन ने हमारे व्यक्तित्व को उसके अनुसार बदल दिया है।
खानपान
हम पुराने समय से ही सादा एवं सात्विक खाना खाते रहे लेकिन जैसे ही नई संस्कृति और लोगों के संपर्क में आए, हम लोग जो सुबह दलिया राबड़ी दूध दही खाने वाले हैं सीधे मैगी, पास्ता, मोमोज के चटकारे लेने में अपनी शान समझने लगे। उस समय संस्कृति के संरक्षण इसका प्रतिकार नहीं करते है।
बच्चों का विद्यालय
हम वैदिक एवं संस्कृत भाषा के ऐसे विद्यालय का समर्थन करते रहे हैं जो पूर्णतया हमारी संस्कृति का पोषक कर रहे हैं तथा इन विद्यालयों में अपने बच्चों को भेजना भी हम अपनी शान समझते थे। आज वही संस्कृति के पोषक समाज के लोग जो दूसरों को संस्कृति पोषण करने की सलाह देते हैं लेकिन खुद की संतानों को मिशनरी, अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भेजते हैं अर्थात मुंह में राम और बगल में छुरी वाली कहावत चरितार्थ करते हैं - यानी अपने आसपास के लोग जो भक्ति और उपवास करने को कहेंगे और खुद गपा-गप भोजन करेंगे यही हमारे पतन का कारण भी बनेंगे।
व्यवहार
आस्था के पोषक लोक व्यवहारवादियों को भी पछाड़ रहे हैं। अपना काम होने पर ये गधे को भी बाप बना लेते हैं लेकिन काम निकल जाने के बाद इनको अपनी आस्था के प्रतीकों की याद आती है। यह लोग गिरगिट की तरह बाहर से ही नहीं, अपने व्यवहार, अपने आचार, अपने विचार सब तरह से रंग बदलते हैं इनको देखकर गिरगिट भी शर्म के मारे पानी-पानी हो जाता है।
जब तक देश व समाज में ऐसे महानुभाव रहेंगे हमारे लिए तरक्की मैं बाधा डालेंगे। जब तक देश की आखिरी पायदान पर खड़ा व्यक्ति विकास की राह पर नहीं चल पड़ेगा तब तक ऊपर शिखर पर पहुंचने वाला व्यक्ति अपनों को विकसित नहीं समझ सकता और धीरे धीरे वह पतन की ओर अग्रसर होगा। विकसित वही इंसान होगा जो सबको साथ लेकर चलेगा।
जय हिंद जय भारत।
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Dr. D R BHATNAGAR
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