पर्यावरणीय शिक्षा
Environmental Education
पर्यावरण का अर्थ या परिचय:-पर्यावरण से अभिप्राय एक ऐसे परिवर्तन से हैं जो जैविक समुदाय को प्रभावित करती हैं, इसमें भौतिक तत्वों की प्रधानता देेखने को मिलती हैं। पर्यावरण शब्द दों शब्दों के मेल से बना है परि +आवरण जिसका शाब्दिक अर्थ हैं बाहरी आवरण अर्थात् हमारे चारों ओर जो प्राकृतिक , भौतिक व सामाजिक आवरण हैं, वही पर्यावरण है।संस्कृत भाषा की दृष्टि से इसकी उत्पति परि +आ +वरण अर्थात् वरण मूल शब्द से पहले “आ“ उपसर्ग लगाकर “आवरण“ शब्द का निर्माण हुआ है, फिर आवरण में परि उपसर्ग लगाकर इसकी सन्धि से पर्यावरण शब्द का निर्माण हुआ है। इस प्रकार पर्यावरण का अर्थ उस बाह्य आवरण से हैं, जो चारों ओर से आवृत किए हुए अथवा घेरे हुए है। अतः पर्यावरण उन दशाओं का योग कहलाता हैं जो मानव को निश्चित समयावधि में नियम स्थान पर आवृत करती है। पर्यावरण अंग्रेजी शब्द ENVIRONMENT का भाषान्तर पुनरूक्ति हैं जो दो शब्दों ENVIRON तथा MENT के सामजस्य से उत्पन्न हुआ है, जिनका अर्थ कमशः (ECIRCLE OR ENCLOSE) हैं अर्थात् आसपास (surrounding) से घेरे हुए। कतिपय पारिस्थितिक वैज्ञानिकों ECOLOGISTS ने पर्यावरण के लिए ENVIRONMENT के स्थान पर HABITAT or MILIEU शब्द का प्रयोग किया हैं, जिसका अभिप्राय समस्त परिवृति से है।ए.एन. स्ट्रेहलर (1976) के अनुसार मनुष्य का अस्तित्व जीव जन्तुओं तथा पादप समुदाय कें साथ संभव माना है। पार्क के अनुसार पर्यावरण का अर्थ प्राण वायु की शुद्ध प्राणवायु मनुष्य को स्वस्थ एवं दीर्घायु बनाती है।परिभाषाएँ :-1.फिटिंग का कथन हैं‘‘ जीवों के पारिस्थितिकीय कारकों का योग ही पर्यावरण है।2.हर्सकोविट्स का मत है‘‘ उन समस्त बह्य दशाओं और प्रभावों का योग पर्यावरण है, जो जीवधारियों के जीवन और विकास का अपना असर डालते है। ’’3.डडले स्टेम्प के अनुसार ’’ पर्यावरण प्रभावों का ऐसा योग हैं जो किसी जीव के विकास एवं प्रकृति को परिवर्तित तथा निर्धारित करता हैं।’’4.रास के अनुसार ’’ पर्यावरण एक बाहî शक्ति हैं जो हमें प्रभावित करती हैं।5.वुडवर्थ के अनुसार ’’ पर्यावरण शब्द का अभिप्रायः उन सभी बाहरी शक्तियों एवं तत्वों से है, जो को आजीवन प्रभावित करते हैं।पर्यावरण शिक्षा की अवधारणा. पर्यावरणीय शिक्षा वह शिक्षा है। जो पर्यावरण के माध्यम से पर्यावरण के विषय में तथा पर्यावरण के लिए होंती है। पर्यावरण जड़ और चेतन दोनों को शिक्षा देने वाला है। पर्यावरण से अनुकूलन न कर सकने के कारण निम्न वर्ग के प्राणी नष्ट हो जाते है। पर्यावरण महान् शिक्षक है, शिक्षा का कार्य हैं- छात्र को उस वातावरण के अनुकूल बनाना जिससे कि वे जीवित रह सके। और अपनी मूल प्रवृतियों को सन्तुष्ट करने के लिए अधिक से अधिक सम्भव अवसर प्राप्त कर सके। शिक्षा व्यक्ति को पर्यावरण से अनुकूलन करना ही नही सिखाती है वरन् उसे पर्यावरण को अपनें अनुकूल बदलनें के लिए भी प्रशिक्षित करती है।पर्यावरणीय शिक्षा का सामान्य अर्थ एक ऐसी शिक्षा से हैं , जो मानव समाज को पर्यावरण विषयक जानकारी प्रदान करे। चूकी पर्यावरण का आधार मानव तथा जैविक एवं अजैविक सम्बन्धों का हैं, इसलिए पर्यावरणीय शिक्षा मनुष्य को प्राकृतिक तथा भौतिक वातावरण के बीच सम्बन्धों का ज्ञान कराती है। पर्यावरणीय शिक्षा एक व्यापक विचार है, जो पर्यावरण के विविध पक्षों, प्राकृतिक सम्पदाओं- भूमि, जल , वायु, खनिज, वन आदि के समुचित उपयोग एवं उन्हें भावी पीढ़ीयों के लिए दीर्घकाल तक सुरक्षित रखनें की शिक्षा देती है। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण एवं परिस्थितिकी सन्तुलन के बीच समन्वय की चेतना जाग्रत करती है।परिभाषाएँ1.नेशनल एन्टी पाल्युशन लाॅ(जापान) के अनुसार’’ पर्यावरणीय शिक्षा लोगाें को अच्छे स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाती है तथा गुणवतायुक्त जीवन जीने को प्रेरित करती हैं जिससे की मानव स्वास्थ्य सम्बन्धी हानिकारक प्रभावों को नियंत्रित किया जा सके तथा जल, वायु, मृदा तथा ध्वनि प्रदूषण को घटाया जा सके, जो कि मानव एवं उसके द्वारा निर्मित वैज्ञानिको, आविष्कारों की देने है। पर्यावरण के अन्दर मानव पशु, वनस्पति तथा उसका पारिस्थितिकी तंत्र सम्मिलित किया जाता है। इसमें घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करना ह ीपर्यावरण शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है। ’’2.संयुक्ति राज्य अमेरिका का पर्यावरणीय शिक्षा अधिनियम , 1970।पर्यावरणीय शिक्षा का अर्थ है- वह शैक्षिक प्रक्रिया जो मानव के प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वातावरण से सम्बन्धित है । इसमें जनसंख् प्रदूषण संसाधनों का विनियोजन एवं निःशेषण, संरक्षण, यातायात, प्रौधोगिकी तथा सम्पूर्ण मानवीय पर्यावरण के शहरी तथा ग्रामीण नियोजन का सम्बन्ध भी निहित है। ’’3.चैपमेन टेलर ’’ पर्यावरणीय शिक्षा का अभिप्राय सद्नागरिकता विकसित करने के लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पर्यावरणीय मूल्यों एवं समस्याओं पर केन्द्रित करना हैं ताकि सद्नागरिकता का विकास हो सके, तथा अधिगमकर्ता पर्यावरण के सम्बन्ध में भिज्ञ, प्रेरित तथा उतरदायी हों सकेै। ’’4.यूनाइटेड स्टेट्स पब्लिक लाॅ के अनुसार ’’ पर्यावरणीय शिक्षा एक ऐसी शैक्षिक प्रक्रिया हैं जिसका सम्बन्ध मानव एवं उसके प्राकृतिक वातावरण से एवं मानव द्वारा निर्मित पर्यावरण से होता है, जिसके अन्तर्गत जनसंख्या, प्रदूषण, संसाधनों की कमी एवं वृद्धि अथवा समाप्ति प्राकृतिक संरक्षण यातायात एवं स्थानान्तरण तकनीकी विकास, ग्रामीण एवं नगरीकरण, नियोजन एवं मानव का सम्पूर्ण पर्यावरण निहित रहता है।5.फिनिश नेंशनल कमीशन - ’’ पर्यावरणीय शिक्षा पर्यावरणीय संरक्षण के लक्ष्यों को लागू करने का एक ढ़ग है। यह विज्ञान की एक पृथक शाखा या कोई पृथक अध्ययन विषय नही है। इसकी जीवन पर्यन्त एकीकृत शिक्षा के सिद्धान्त के रूप मे लागू किया जाना चाहिए।’पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्यपर्यावरणीय शिक्षा का क्षैत्र व्यापक होने के कारण इनके उद्देश्यों के निर्धारण के लिए विभिन्न आयोगों, समितियाॅ एवं विचारकों ने सुझाव दिए। संयुक्ति राष्ट्र संघ ने अपने पर्यावरणीय शिक्षा कार्यक्रम में पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्यों में पर्यावरणीय जानकारी का प्रचार-प्रसार पर्यावरणीय अनुसंधान नवीन पाठ्यक्रम निर्माण एवं प्राशिक्षण आदि निर्धारित किये है।1. क्रियात्मक उद्देश्यA. नगरीय तथा ग्रामीण नियोजन में भाग लेना।B. खाध पदार्थों की मिलावट को दूर करने वाले कार्यक्रमों में भाग लेना।C. आस - पडौस की सफाई के कार्यक्रमों में भाग लेना।D. उन कार्यक्रमों में भाग लेना , जिनसे वायु , जल और ध्वनि प्रदूषण में कमी लायी जा सकें।2. भावात्मक उद्देश्यA. अपने पर्यावरण की स्वच्छता तथा शुद्धता को महत्व देना।B. सभी देशों की राष्ट्रीय सीमाओं को आदर प्रदान करना।C. समीपस्थ तथा दूरस्थ पर्यावरण की वानस्पतिक स्पीशीज तथा जीव जन्तुऔ में रूचि रखनें में सहायता देना।D. समुदाय तथा समाज और उनके लोगाें की समस्याओं में रूचि रखनें के लिये तत्पर बनाना।E. प्रकृति की देनों की प्रशंसा करना।F. विभिन्न जातियों, प्रजातियों, धर्मौ तथा संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता प्रदर्शित करना।3. संज्ञानात्मक उद्देश्य-A. दूर स्थित पर्यावरण को जानना।B. सामाजिक तनावों को दूर करना उनके कारणों कों समझना।C. जैविक तथा अजैविक पर्यावरण को समझने में सहायता देना ।D. जीवन विभिन्न के स्तरों पर अन्योन्य - आश्रितता को समझना ।E. भौतिक तथा मानवीय संसाधनो का मुल्याकंन करना।F. जनसंख्या- वृ़िद्ध की प्रवृृृृृृृत्तियों की जाॅच करना तथा देश के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए उनकी व्याख्या करना।
पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्वः-
आज पर्यावरण प्रदूषण की समस्या सम्पूर्ण विश्व की समस्या है। हमारे चारों ओर वायु, जल, तथा मृदा प्रदूषिण है। वनों का विनाश एवं वन्य जीवों के विलुप्त होने के कारण पर्यावरण असन्तुलित की स्थिति देखने कों मिलती है। ओजोन परत पर दबाव बढ़ गया है। प्राकृतिक संसाधन सीमित है। मानव ने उनका अनुचित एवं स्वार्थयुक्त विदोहन किया । गाॅधीजी ने कहा था- प्रकृति में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति की सामध्र्य है, किन्तु वह उसकी लालच की पूर्ति नही कर सकती । दुर्भाग्य से मनुष्य की स्वार्थमयी प्रवृत्ति पर अंकुश नही लगा सका। प्रकृति का संयमित उपभोग ने करके असंयमित उपभोग किया । इस असयमं ने उसे मात्र उपभोक्ता बना दिया । भौतिकवाद के बढ़ावा के कारण आध्यात्मिक एवं नैतिक प्रवृत्तियंाॅ प्रायःलुप्त होने लगी है। असंयमित मनुष्य ने यह ध्यान नही रखा कि प्रकृति की क्रियाओं में अनुचित हस्तक्षेप घातक हों सकता है। पर्यावरण शिक्षा इस गम्भीर समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करनें के लिए आवश्यक है। पर्यावरणीय शिक्षा पृथ्वी पर रहनें वाले प्राणी जगत् को उस पर आने वाली सम्भावित आपदाओं से तथा उन्हे सुखमय जीवन देने का प्रयास करना है। साथ ही उन्हे इस योग्य भी बनाना है। कि वे आगे और हो सकने वाली समस्याओं कों पूर्व में ही जान सकें और उनका इस प्रकार हल खोजें जिससे समस्या भी दूर हो जाय और नियमित जीवन प्रक्रिया में कोई बाधा भी नही पडे़। अतः आज के समय में पर्यावरणीय शिक्षा की नितान्त आवश्यकता है। पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता व महत्व निम्न बिन्दुओं से और स्पष्ट होता है-1. छात्रों मे वेैज्ञानिक अभिवृत्ति का विकासः- पर्यावरणीय शिक्षा में प्रकृति अवलोकन , निरीक्षण एवं प्रयोग द्वारा पर्यावरण का ज्ञान कराया जाता है। इससे छात्रों में वैज्ञानिक अभिवृत्ति एवं अन्तदृष्टि कर विकास होता है।2. जन भागीदारी को प्रांेत्साहित करने हेतु- पर्यावरण को सन्तुलित बनानें का उत्तरदायित्व समाज के प्रत्येक व्यक्ति का है। अतः प्रदूषण नियंत्रण व निवारण के कार्यक्रमों यथा सफाई जंनसख्या नियंत्रण व जनसामान्य मंे पर्यावरणीय चेतना का विकास आदि में समाज के सभी वर्गो के लोगों की भागीदारी आवश्यक है।3. अनुसंधान एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान को प्रोत्साहन - पर्यावरणीय शिक्षा द्वारा पर्यावरण से सम्बन्धित शोधकर्ताओं को प्रोेत्साहित करने की आवश्यकता है। तथा साथ ही पर्यावरण से सम्बन्धित सूचनाओं के विश्व स्तर पर आदान-प्रदान को सम्भव बनाने के लिए सूचना के विश्व स्तरीय तंत्र को विकसित करना अति आवश्यक है।4. मानव एवं पर्यावरण के सम्बन्धों का ज्ञान- पृथ्वी पर रहने वालें समस्त जीवधारी पर्यावरण पर आश्रित है। पर्यावरण शिक्षा से मानव एवं पर्यावरण के बीच के अन्तः सम्बन्धों का ज्ञान प्राप्त करते है। इस प्रकार दोनों एक-दुसरे पर निर्भर है।5. भावी पीढ़ीयों के प्रति दायित्व की जानकारी - प्रकृति द्वारा मानव जाति को प्रदान किए गए उपहार वर्तमान पीढ़ी के लिए ही नही अपितु भावी पीढ़ी के लिए भी उपयोगी हैं आज बुद्धिमान मनुष्य अपने थोडे से निजी स्वार्थों को पूरा करनें के लिए पर्यावरण को जो क्षति पहुॅचा रहा हैं उसका दुष्परिणाम भावी पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है। पर्यावरण शिक्षा समाज कों इस सत्य की जानकारी प्रदान करता हैं कि भावी पीढ़ी के लिए उसका क्या दायित्व है।6. सकारात्मक दूष्टिकोण का विकास-पर्यावरण के बिगड़ते हुयेे सन्तुलन कोे बचानेे के लिए आवश्यक है कि जनसामान्य मे पर्यावरण के अवयवों जल वायु ,मूदा वूक्ष मूदा आदि के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास हो औधोगीकरण के फलस्वरुप मानव नें प्रकृति का बड़ी निष्ठुरता से शोषण किया ।पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से जन सामान्य के पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण बदलनें की आवश्यकता है।7. प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण- मनुष्य द्वारा अपने निजी स्वार्थो को पूरा करनें के लिए अनुचित एवं अन्धाधुन्ध तरीके से प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन किया जा रहा है। पर्यावरणीय शिक्षा के द्वारा प्राकृतिक सम्पदा का उपयोेग ,संरक्षणएवं संवद्र्वन की जानकारी मिलती है।8. प्रदूषण निवारणार्थ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासो्र की जानकारी-पर्यावरणीय शिक्षा के माध्यम से छात्रों को पर्यावरण प्रदूषण कों नियंत्रित करने से सम्बन्धित राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों की जानकारी देना ताकि प्रत्येक युवा उन कार्यक्रमों के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन में योगदान दे सकें ।9. जनसंख्या नियंत्रण में सहायक - जनसंख्या में जिस गति से वृद्धि प्रतिवर्ष हो रही हैं उससे सम्पूर्ण प्राकृतिक चक्र गडबड़ा गया है।प्रकृति को पुनःसन्तुलित करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण किया जा सकता है।10.सन्तुलित औधोंगिक विकास के लिए आवश्यक - आज के विज्ञान के युग में भौतिक सुख सुविधाओं के उपकरणों ने विभिन्न प्रकार के प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। पर्यावरणीय शिक्षा द्वारा प्रदूषण स्थिति को नियंत्रित करनें के विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी देना अति आवश्यक है।11.पर्यावरण प्रदूषण के विविध रूपों की जानकारी - पर्यावरण शिक्षा समाज का पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभावों एवं होने वाली हानियों की जानकारी प्रदान करती है। पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण प्रदूषण के विविध रूपों यथा-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, का अध्ययन करता है।12.पर्यावरण प्रदूषण के कारणों से अवगत कराना- पर्यावरणीय शिक्षा से पर्यावरण प्रदुषण के लिए उत्तरदायी कारणों की जानकारी मिलती है। जैसे - औधोगिकीकरण ,नगरीकरण, जनसंख्या वृद्धि ,प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित शोषण ,बढ़ते स्वचालित वाहन, नाभिकीय उत्सर्जन आदि के कारण पर्यावरण प्रदूषित होता है।
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