रविवार, 18 दिसंबर 2022

डॉ. मारिया मोंटेसरी

 डॉ. मारिया मोंटेसरी

मारिया का जन्म 31 अगस्त 1870 को प्रयानात्मक इतालवी शहर चीआरावलल में हुआ था।

मोंटेसरी परिवार काफी धनी था, और जब से मारिया परिवार में एकमात्र बच्चा था, उसके माता-पिता ने उसे अच्छी शिक्षा देने के लिए हर संभव प्रयास किया।

युवा लड़की का सपना एक व्यवसाय था बच्चों के डॉक्टर, और व्यायामशाला के अंत में, मारिया, रोम विश्वविद्यालय के मेडिकल संकाय में प्रवेश करती है, दो साल बाद उन्हें न केवल प्राकृतिक विज्ञान, भौतिकी और गणित का अध्ययन करने का अधिकार मिलता है, 

लेकिन यहां तक ​​कि ऐसा प्रतीत होता है कि दुर्गम बाधाएं मारिया को सपने के रास्ते पर नहीं रोक सकती थीं।

मोंटेसरी 24 वर्ष की अवस्था में रोम विश्वविद्यालय के चिकित्सा शास्त्र में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की उपाधि प्राप्त करने वाली प्रथम महिला थी। उसके पश्चात उन्होंने रोम विश्वविद्यालय में चिकित्सा विभाग के सहायक शिक्षक पद पर कार्य करने लगी।

चिकित्सा जगत में आने पर उन्होंने अपना कार्य मन, बुद्धि एवं विकलांग बालकों की चिकित्सा से प्रारंभ किया। 

यहां उन्हें एक अनुभव हुआ कि विकलांगों और मंदबुद्धि बालकों की मानसिक योग्यता का मूल कारण चिकित्सा का अभाव नहीं अपितु उचित शिक्षा व्यवस्था का अभाव है।

उनका विचार था कि यदि मंदबुद्धि बालकों को उचित अवसर और शिक्षण विधि के साथ प्रशिक्षित किया जाए तो वे सामान्य बुद्धि के बालकों के स्तर पर लाए जा सकते हैं।

जिस समय मोंटेसरी अपना प्रयोग कर रही थी उसी समय कुछ अन्य मानव शास्त्री भी मंदबुद्धि एवं पिछड़े बालकों की समस्याओं का मनोवैज्ञानिक अध्ययन कर रहे थे। यह थे एडवर्ड सेविंग और डॉ. इटार्ड तथा सर्गी अपने अनुभव तथा सोग्विन द्वारा लिखित “पेडगॉजिकल ट्रीटमेंट”, सर्गी द्वारा लिखित ‘साइंटिफिक पेडागोजी’ और डॉ. इटार्ड द्वारा लिखित मंदबुद्धि बालकों से संबंधित साहित्य के आधार पर एक नई शिक्षण पद्धति का प्रतिपादन किया जिसे मोंटेसरी शिक्षा पद्धति कहा गया।

इटली सरकार ने मोंटेसरी की कुशलता एवं रुचि को देखकर उन्हें विकलांग बालकों के एक स्कूल की निर्देशिका, अध्यक्ष नियुक्त किया। यहां पर उन्होंने अपने शिक्षण पद्धति का प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला कि-

यदि विकलांग और मंदबुद्धि बालकों को इस नई विधि से शिक्षा दी जाए तो वे भी सामान्य बालकों की भांति शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

1907 में इटली सरकार ने मोंटेसरी को बाल गृह नामक संस्था का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। यहीं पर मोंटेसरी ने यह निष्कर्ष निकाला कि-

3 वर्ष का सामान्य बालक 6 वर्ष के मंदबुद्धि बालक के बराबर होता है। यदि इस पद्धति का प्रयोग सामान्य बालकों के लिए किया जाए तो वह अपने स्तर से आगे जा सकते हैं। 

अल्प समय में ही इस पद्धति को इतनी सफलता मिली कि वह संपूर्ण विश्व के लिए उदाहरण बन गई। अपनी शिक्षण विधि की सफलता के कारण विश्व के कोने कोने में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित की जाने लगी । 1913 में मोंटेसरी की प्रथम अंतरराष्ट्रीय व्याख्यानमाला तैयार हुई। सन 1919 में लंदन में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर का उद्घाटन किया। सन 1940 में भारत आए और यहां कश्मीर अहमदाबाद तथा प्रशिक्षण शिविर के संगठन में सराहनीय भूमिका निभाई। उन्होंने 10 वर्ष के अमूल्य समय का योगदान किया। यहां से विदेश जाकर सन 1952 में उन्होंने हमेशा के लिए संसार को विदा ले लिया।

शैक्षिक विचार

    डॉ. मारिया मोंटेसरी चिकित्सक होते हुए भी एक  शिक्षाशास्त्री के रूप में असाधारण ख्याति प्राप्त कि वह अपने समकालीन विद्वानों के विचारों एवं  स्वयं के प्रयोग एवं अनुभवों के आधार पर शिक्षा के प्राचीन सिद्धांतों को नया रूप देने में सफल हुई मारिया मोंटेसरी पर रूसो, पेस्टोलॉजी, फ्रोबेल आदि विद्वानों का विशेष प्रभाव पड़ा इसीलिए उन्हीं की तरह मोंटेसरी ने भी शिक्षा को विकास की प्रक्रिया माना है।

शिक्षा का अर्थ

    साधारण लोग शिक्षा का अर्थ शिक्षण से लगाते हैं जिससे एक शिक्षक अपनी अर्जित ज्ञान को छात्रों को देने का प्रयास करता है और छात्र उसे उसी रूप में लेने हेतु बाध्य होता है। मोंटेसरी इस को शिक्षा नहीं मानती है बल्कि इसके विपरीत व शिक्षा को सहयोग का रूप देना चाहती हैं जो बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास में योगदान करता हूं। यहां मनोवैज्ञानिक विकास का तात्पर्य बालकों के मानसिक स्तर उसकी रूचि और अवस्था संबंधी व्यवहार में हैं।

शिक्षा के संबंध में मोंटेसरी ने लिखा है कि- 

बालकों के जीवन के सामान्य विकास के लिए दी जाने वाली सक्रिय सहायता को ही शिक्षा समझना चाहिए। 

मोंटेसरी के विचारों से स्पष्ट होता है कि-

शिक्षा द्वारा ही बालकों का शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक विकास संभव है। यह गुण प्रत्येक प्राणी के लिए सामान्य है इसलिए इसका विकास करने वाली प्रक्रिया ही शिक्षा कही जा सकती हैं।

शिक्षा के उद्देश्य

जन्मजात शक्तियों का विकास-

    अपनी पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ दी चाइल्ड में कहा है कि शिक्षा का उद्देश्य बालक की अंतर्निहित शक्तियों का विकास करना है।

सम विकास का उद्देश्य- मोंटेसरी ने शिक्षा का उद्देश्य बालक की शारीरिक, बौद्धिक भावात्मक, सामाजिक, नैतिक एवं चरित्र का विकास करना माना है।

जीवन उपयोगी कुशलता का विकास- मोंटेसरी शिक्षा द्वारा बालक का शारीरिक, बौद्धिक, भावात्मक, सामाजिक, नैतिक, आदि विकास इसलिए करना चाहती थी ताकि बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके और कुशलता के साथ जीवन यापन करें। इससे वह अपना एवं समाज दोनों का कल्याण करने में समर्थ हो जाएगा।

कर्मेंद्रियों एवं ज्ञानेंद्रियों का प्रशिक्षण- मोंटेसरी के अनुसार सभी उद्देश्यों की पूर्ति तभी हो सकती है। जब बालक अपनी कर्मेंद्रियों एवं ज्ञानेंद्रियों का ठीक प्रकार से कार्य करें। इस दृष्टि से शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक की कर्मेंद्रियों एवं ज्ञानेंद्रियों का विकास करना है।

पाठ्यक्रम

1 बालक की नैसर्गिक योग्यता और उच्च एवं आवश्यकताओं के अनुसार हो।

2 बालक की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला हो।

3 पाठ्यक्रम में वातावरण की प्रधानता हो।

4 पाठ्यक्रम ऐसा हो जिससे बालक को संपूर्ण जगत का ज्ञान प्राप्त हो।

5 बालकों पर किसी निश्चित पाठ्यक्रम का बंधन ना हो।

मोंटेसरी विधि

    मोंटेसरी द्वारा प्रस्तावित शैक्षिक पद्धति आत्म-दिशा, अन्वेषण, खोज, अभ्यास, सहयोग, खेल, गहरी एकाग्रता, कल्पना या संचार के माध्यम से छात्रों के दृष्टिकोण के प्राकृतिक विकास का पक्ष लेने की आवश्यकता पर जोर देता हैl

    यह शैक्षणिक दर्शन पारंपरिक शैक्षिक तरीकों से तेजी से दूर जाता है क्योंकि कठोर प्रणाली के बजाय सहजता और छात्रों की पसंद पर आधारित है और कुछ अकादमिक मूल्यांकन मानदंडों की पूर्ति पर आधारित है। मोंटेसरी के लिए, बच्चे की स्वतंत्रता का सम्मान और संवर्धन महत्वपूर्ण हैl

    मोंटेसरी प्रस्ताव को मानव विकास पर एक सैद्धांतिक मॉडल माना जाता है। हम पर्यावरण के साथ बातचीत के माध्यम से मनोवैज्ञानिक रूप से खुद का निर्माण करते हैं, और हमारे पास व्यक्तिगत विकास की एक सहज प्रवृत्ति हैl

मूलभूत सिद्धांत

मोंटेसरी पद्धति को इसकी लोकप्रियता के कारण अलग-अलग तरीकों से लागू किया गया है, यह संभव है कि इस शैक्षणिक शैली के कम से कम 8 मूलभूत सिद्धांतों को मोंटेसरी के काम के आधार पर और बाद में लोकप्रिय विकास के रूप में पाया।

1. खोज द्वारा सीखना

2. शैक्षिक वातावरण तैयार करना

3. विशिष्ट सामग्री का उपयोग

4. छात्र की व्यक्तिगत पसंद

5. आयु समूहों के लिए कक्षाएं

6. सहयोगात्मक शिक्षा और खेल

7. बिना किसी रुकावट के कक्षाएं

8. शिक्षक एक मार्गदर्शक और पर्यवेक्षक के रूप में 

 मोंटेसरी पद्धति 

मोंटेसरी की अध्यापन में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है "मुझे यह स्वयं करने में सहायता करें"। यही है, एक वयस्क को यह समझना चाहिए कि बच्चा किस चीज में दिलचस्पी है, उसे कक्षाओं के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करें और बच्चे को इसका उपयोग करने के लिए सिखाएं। वयस्क बच्चे को प्रकृति के द्वारा निहित क्षमताओं को प्रकट करने में मदद करता है, और विकास के अपने तरीके से भी जाना जाता है। ध्यान दें कि मोंटेसरी प्रणाली के छात्र ऐसे बच्चे हैं जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं। 

  • बच्चे की गतिविधि एक बच्चे के प्रशिक्षण में, वयस्क एक माध्यमिक भूमिका निभाता है, ट्यूटर नहीं, बल्कि एक सहायक।
  • कार्रवाई की स्वतंत्रता और बच्चे की पसंद
  • बड़े बच्चे छोटे बच्चों को पढ़ते हैं इस मामले में, वे स्वयं युवाओं की देखभाल करना सीखते हैं यह संभव है, क्योंकि, मोंटेसरी के अध्यापन के अनुसार, विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों से समूह बनते हैं।
  • बच्चे खुद ही निर्णय लेते हैं।
  • कक्षाएं एक विशेष रूप से तैयार वातावरण में आयोजित की जाती हैं।
  • एक वयस्क का काम करने के लिए बच्चे को नाज है इसके अलावा बच्चा खुद को विकसित करता है
  • एक बच्चे को पूरी तरह से विकसित करने के लिए, उसे सोच, क्रिया और भावनाओं की स्वतंत्रता देने के लिए आवश्यक है।
  • प्रकृति के निर्देशों के खिलाफ मत जाओ, आपको इन निर्देशों का पालन करना होगा, फिर बच्चे खुद होंगे
  • अप्रासंगिक आलोचना, निषेध अस्वीकार्य हैं।
  • बच्चे को गलती करने का अधिकार है वह सब कुछ खुद तक पहुंचने में काफी सक्षम है।

  • मोंटेसरी पद्धति में विकासशील वातावरण की भूमिका
  • विकासशील वातावरण कड़ाई से परिभाषित तर्क के अनुसार बनाया गया है। परंपरागत रूप से, इसमें 5 ज़ोन हैं:
  • रोज़मर्रा के जीवन का क्षेत्र यहां बच्चे अपने कामों को सीखता है।
  • क्षेत्र मातृभाषा- आपको शब्दावली का विस्तार करने, अक्षरों, ध्वन्यात्मकता से परिचित करने, शब्दों की संरचना और वर्तनी को समझने की अनुमति देता है
  • संवेदी शिक्षा का क्षेत्र- भावनाओं का विकास, आकार, आकार, वस्तुओं के आकार का अध्ययन करने का अवसर प्रदान करता है।
  • कॉसमॉस का क्षेत्र- शरीर विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, जूलॉजी, भूगोल, खगोल विज्ञान, भौतिकी के मूलभूत विषयों के साथ आसपास के विश्व से परिचित।
  • गणितीय क्षेत्र संख्याओं की समझ, गणना में क्रम, संख्याओं की संरचना, साथ ही बुनियादी गणितीय क्रियाओं - अतिरिक्त, घटाव, गुणन और विभाजन को सीखना सीखता है।

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                Dr. D R BHATNAGAR   

गिजुभाई बधेका

गिजुभाई बधेका


  • गिजुभाई का जन्म 15 नवम्बर, 1885 को सौराष्ट्र के चित्तल नामक स्थान में हुआ था।
  • उनका असली नाम 'गिरिजा शंकर बधेका' था, लेकिन वे गीजू के नाम से ही प्रसिद्ध हुए।
  • बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण लोग उन्हें 'मोछाई माँ' अर्थात् मूछों वाली माँ भी कहते थे। 
  • छोटे बच्चों की शिक्षा को नई दिशा देने ने इनका अत्याधिक योगदान रहा है।
  • बारदोली सत्याग्रह के समय लोगों की सहायता के लिए बच्चों की 'वानर सेना' संगठित की।
  • गीजू भाई को कॉलेज की शिक्षा बीच में छोड़ कर आजीविका के लिए 1907 में पूर्वी अफ्रीका जाना पड़ा। 
  • वहाँ से वापस आने पर उन्होंने कानून की शिक्षा पूरी की और वकालत करने लगे थे।

दक्षिणमूर्ति छात्रावास की स्थापना

गिजुभाई अपने पुत्र की शिक्षा के सिलसिले में जब छोटे बच्चों के विद्यालय में गए तो उन्हें मांटेसरी पद्धति की एक पुस्तक मिली। उसका गिजुभाई पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उस पद्धति को तथा पश्चिम की कुछ अन्य शिक्षा पद्धतियों को मिलाकर भारतीय परिस्थितियों के अनुसार बच्चों की आरंभिक शिक्षा को नया रूप देने का काम उन्होंने हाथ में लिया। 

सर्वप्रथम भावनगर में 'दक्षिणमूर्ति' नाम से एक छात्रावास की स्थापना हुई। अपनी वकालत छोड़कर गिजूभाई इसी काम में जुट गए। नाना भाई भट्ट इसमें उनके सहयोगी थे। शिक्षा की नई पद्धति के प्रयोग के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण आवश्यक समझ कर गीजू भाई के आचार्यत्व में 'दक्षिणमूर्ति' को अध्यापक प्रशिक्षण केन्द्र का रूप दे दिया गया।

1920 में एक बाल मंदिर की स्थापना हुई। साथ ही यह भी आवश्यक था कि बच्चों के लिए रोचक ढंग की उपयुक्त पाठ्य-सामग्री तैयार की जाए। गिजुभाई ने यह काम भी अपने हाथ में ले लिया। इसके लिए उन्होंने विभिन्न शैलियों में एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी इन पुस्तकों में से अनेक आज भी काम में आ रही हैं।

गिजुभाई बालकों के गांधी माने जाते थे। गांधी जी ने जो काम  अहिंसक नीति से देश के लिए किया। बाल शिक्षा के क्षेत्र में वही काम गिजुभाई ने उस समय में कर दिखाया। बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु गिजुभाई ने अपने जीवन काल में जो कार्य किया उसका उदाहरण ढूंढना कठिन है।

शिक्षा साहित्य
गिजुभाई की शिक्षा संबंधी 15 मौलिक रचनाएं हैं। इसके अतिरिक्त अपने अन्य साथियों के सहयोग से उन्होंने लगभग 223 पुस्तके लिखी थी। उनका साहित्य गुजराती में है उनका अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। उनका साहित्य बाल मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र एवं किशोर साहित्य से संबंधित है।



शिक्षण पत्रिका 
माता-पिता और शिक्षक-शिक्षिका का सही मानस जानने के लिए गिजुभाई ने गुजराती में एक छोटी शिक्षण पत्रिका निकाली थी। इस पत्रिका ने बाल-संगोपन, बाल-शिक्षण, बाल-संस्कार और बाल-जीवन के मर्म की जो शिक्षा दी, उससे हजारों परिवारों में प्रकाश फैला। इस साहित्य में जो मौलिकता, मर्मस्पर्शी, सरलता, प्रेरणा और प्राण है, उसी से गिजुभाई अविस्मरणीय रहेंगे। गुजराती की भांति इस पत्रिका के मराठी और हिंदी संस्करण भी निकलते रहे।

दिवास्वप्न 
बाल शिक्षा के जगत में गिजुभाई की एक अनुपमकृति ‘दिवास्वप्न’ 
दिवास्वप्न की चर्चा करते हुए गिजुभाई ने एक समकालीन साथी और सहयोगी स्वर्गीय श्री हरि भाई द्विवेदी ने लिखा था- 
दिवास्वप्न क्या है? 
यह प्राथमिक शाला की एक स्वल्प समालोचना है और भविष्य की नवीन प्राथमिक पाठशाला के मनोहर और स्पष्ट रूप की एक सुंदर झांकी हैं। 
इसकी विशेषता यह है कि यह सारी पुस्तक कहानी की शैली में लिखी गई हैl

 

शिक्षण विधि
गिजुभाई की एक अनुपम कृति है। “प्राथमिक शाला में भाषा शिक्षा” इस पुस्तक में एक शिक्षक और बालक के बीच उस प्रक्रिया की चर्चा है। जिससे बालक की भाषा शिक्षा की बुनियाद तैयार होती है। इस पुस्तक के चार खंड हैं। प्रथम खंड में माइकल वेस्ट सन 1920 की भांति सबसे पहले वाचन पर बल दिया गया है। इसके पश्चात वे रेखा चित्रण से लेखन को प्रारंभ करते हैं।

        बालकों का उद्धार कर कर गिजुभाई ने अनगिनत माता-पिता ओं को बाल स्वातंत्र्य की बाल भक्ति की और बाल पूजा की दीक्षा दी हैं। गुजरात में बाल भक्ति के पागलपन को फैलाने वाले इंदु मिशनरियों ने समाज के मध्यम वर्ग के समुचित शुरू को ही बदल डाला है और गुजरात में असम के बाल मंदिरों की स्थापना करके इन्होंने पनपाया और परिपुष्ट किया है।

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                Dr. D R BHATNAGAR   

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